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चाइनीज पर भारी हिंदुस्तानी खिलौने

locationझुंझुनूPublished: Oct 03, 2021 10:27:10 pm

Submitted by:

Rajesh

शहर में बीते एक दशक के दौरान खिलौनों की मांग सौ गुनी बढ़ गई। इसके पीछे बड़ा कारण है सीमित परिवार। आर्थिक सुदृढ़ता और परिवार में एक-दो बच्चे के चलते खिलौना का बजट भी बढऩे लगा है। जिले में खिलौनों का कारोबार 10 करोड पार होने लगा है।

चाइनीज पर भारी हिंदुस्तानी खिलौने

चाइनीज पर भारी हिंदुस्तानी खिलौने

झुंझुनूं. स्वदेशी खिलौनों का बाजार परवान चढऩे लगा है। भारत में बने खिलौने अब चीन के खिलौने पर भारी पडऩे लगे हैं। चीन के खिलौने की मांग अब लगभग खत्म हो गई है। शहर में बीते एक दशक के दौरान खिलौनों की मांग सौ गुनी बढ़ गई। इसके पीछे बड़ा कारण है सीमित परिवार। आर्थिक सुदृढ़ता और परिवार में एक-दो बच्चे के चलते खिलौना का बजट भी बढऩे लगा है। जिले में खिलौनों का कारोबार 10 करोड पार होने लगा है।
खिलौनों की दुनिया में कोरोना काल हमें नई राह दिखाकर गया है। इसकी सीधी झलक नन्हे-मुन्नों के दिलों में देखी जा सकती है। पांच साल पहले भारत के खिलौना बाजार पर चाइना का एक छत्र राज था। कोरोना ने चाइना का असली रूप दुनिया के सामने रख दिया। इससे हर दिल में चीन के प्रति नफरत पैदा हो गई। इससे हमारे नौनिहाल भी अछूते नहीं रहे। यही कारण है कि आज के बच्चे चाइनीज खिलौने लेना पसंद नहीं करते। अब नन्हे-मुन्नों के दिलों में भी हिंदुस्तान का लगाव है। वे ऐसे खिलौने लेना पसंद करते हैं जो हमारे देश में बने हुए हो।
ताल बाजार में खिलौना कारोबार करने वाले रवि चोपदार के मुताबिक लगातार घरों में रहने के कारण बच्चों में चिड़चिड़ापन आने लगा है। ऐसे में खिलौने उनका मूड बदलने के लिए कारगर साबित हो रहे हैं। संगीत का चलन बढऩे से शहर में अब इलेक्ट्रॉनिक पियानो, गिटार आदि खिलौने भी बिकने लगे हैं।
इसी प्रकार फिजिकल एक्सरसाइज के लिए कीड्स बाइसिकल की डिमांड ज्यादा होने लगी है। बैलेंसिंग सिखाने के परपज से पेरेंट्स स्केट व जायरो स्कूटर पसंद करते हैं।
शेखावाटी के लिए कोलकाता के कारीगर बनाते हैं बेल-बूंटी

झुंझुनूं। शेखावाटी के पहनावे के लिए कोलकाता के कारीगर बेल-बूंटी तैयार करते हैं। इसका कारोबार अब सालाना 50 करोड़ रुपए पार हो गया है। कोरोना के बाद इस कारोबार में तेजी से बढ़ोतरी हुई है।
ओढऩा, पीला, चुनरी का पहनावा केवल शेखावाटी इलाके में ही है। इनकी बंधाई और छपाई का काम पहले लीलगरों तक सीमित था। अब कुछ छपाई का काम मशीनों से भी होने लगा। लेकिन इन परिधानों पर लगने वाली बेल-बूंटी व जरी-गोटा का माल बंगाल से ही आता है। बरसों पहले कोलकाता गए मारवाड़ी लोगों ने बंगाल के कारीगरों को यह काम सिखाया था। अब वहां के हजारों परिवार के लिए यह रोजी-रोटी का मुख्य जरिया बन गया। बंगाली कारीगर बेल-बूंटी ही नहीं अपितु शादियों में पहने जाने वाले कलात्मक बरी बेस भी तैयार करते हैं। बेल-बूंटी का काम करने वाले प्रदीप जगनानी बताते हैं कि अकेले झुंझुनूं में 20-25 व्यापारी कोलकाता से बेल-बूंटी का माल मंगाते हैं। शेखावाटी की बात करें तो यह आंकड़ा सैकड़ों में पहुंच जाता है। व्यापारी अनूप कुमार के मुताबिक कोलकाता में बेल-बूंटी तैयार करने के सिद्धहस्त कारीगर हैं और उनकी मजदूरी भी वाजिब है। उनके मुकाबले में दुनिया में कहीं भी इतना बारीक और कलात्मक काम नहीं हो सकता। यही कारण है कि परंपरागत पहनावे का चलन ज्यादा नहीं बढ़ रहा लेकिन बेल-बूंटी की डिमांड दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। शादी समारोह में आज भी परंपरागत पहनावे का चलन है। आगामी शादियों की मांग के चलते बाजार ने भी तेजी पकडऩी शुरू कर दी है।
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