ओढऩा, पीला, चुनरी का पहनावा केवल शेखावाटी इलाके में ही है। इनकी बंधाई और छपाई का काम पहले लीलगरों तक सीमित था। अब कुछ छपाई का काम मशीनों से भी होने लगा। लेकिन इन परिधानों पर लगने वाली बेल-बूंटी व जरी-गोटा का माल बंगाल से ही आता है। बरसों पहले कोलकाता गए मारवाड़ी लोगों ने बंगाल के कारीगरों को यह काम सिखाया था। अब वहां के हजारों परिवार के लिए यह रोजी-रोटी का मुख्य जरिया बन गया। बंगाली कारीगर बेल-बूंटी ही नहीं अपितु शादियों में पहने जाने वाले कलात्मक बरी बेस भी तैयार करते हैं। बेल-बूंटी का काम करने वाले प्रदीप जगनानी बताते हैं कि अकेले झुंझुनूं में 20-25 व्यापारी कोलकाता से बेल-बूंटी का माल मंगाते हैं। शेखावाटी की बात करें तो यह आंकड़ा सैकड़ों में पहुंच जाता है। व्यापारी अनूप कुमार के मुताबिक कोलकाता में बेल-बूंटी तैयार करने के सिद्धहस्त कारीगर हैं और उनकी मजदूरी भी वाजिब है। उनके मुकाबले में दुनिया में कहीं भी इतना बारीक और कलात्मक काम नहीं हो सकता। यही कारण है कि परंपरागत पहनावे का चलन ज्यादा नहीं बढ़ रहा लेकिन बेल-बूंटी की डिमांड दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। शादी समारोह में आज भी परंपरागत पहनावे का चलन है। आगामी शादियों की मांग के चलते बाजार ने भी तेजी पकडऩी शुरू कर दी है।