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राजस्थानः जवानों की फैक्ट्री है ‘झांझोत’, हर घर में सेना के जवान

locationझुंझुनूPublished: Jan 15, 2022 04:41:58 pm

Submitted by:

Kamlesh Sharma

झुंझुनूं जिला मुख्यालय से करीब 28 किमी दूर बसे झांझोत गांव के लोगों में देश सेवा का जज्बा, सेना में जाने का जुनून और वतन पर जान न्यौछावर करने की तमन्ना कूट-कूट कर भरी हुई है।

Army personnel in every house Jhanjhot in jhunjhunu

झुंझुनूं जिला मुख्यालय से करीब 28 किमी दूर बसे झांझोत गांव के लोगों में देश सेवा का जज्बा, सेना में जाने का जुनून और वतन पर जान न्यौछावर करने की तमन्ना कूट-कूट कर भरी हुई है।

सुरेंद्र डैला/झुंझुनूं जिला मुख्यालय से करीब 28 किमी दूर बसे झांझोत गांव के लोगों में देश सेवा का जज्बा, सेना में जाने का जुनून और वतन पर जान न्यौछावर करने की तमन्ना कूट-कूट कर भरी हुई है। यहीं वजह है कि गांव के लगभग घरों से आर्मी के जवान निकलते हैं। जिसके चलते गांव को आर्मी की फैक्टरी भी कहा जाता है। चिड़ावा से महज दस किमी दूर तथा साढ़े तीन सौ घरों की आबादी वाले छोटे से इस गांव ने भारतीय सेना को दो सौ से ज्यादा जवान दिए हैं।
जिसमें से 80-90 से ज्यादा जवान देश की सेवा में फिलहाल भी कार्यरत हैं। वहीं सौ से ज्यादा सेवाएं देकर सेवानिवृत हो चुके हैं। गांव के जवान बलिदानी में भी पीछे नहीं रहे। यहां के दो लड़ाकों ने वतन के लिए जान कुर्बान कर दी। दरअसल, चिड़ावा-सुलताना रोड पर बसे झांझोत के लोगों में आजादी के पहले से ही देशसेवा में जाने का जज्बा रहा है। आजाद हिंद फौज के पहले से शुरू हुआ आर्मी में भर्ती होने का सफर फिलहाल भी जारी है। झांझोत ने सिपाही से कर्नल तक की रैंक के जवान दिए हैं। कुछ घरों से तो पांचवीं पीढ़ी के जवान भी बोर्डर पर तैनात हैं। जिससे दूसरे लोगों को भी सेना में भर्ती होने की प्रेरणा मिलती है।
दो जवान हुए वतन पर शहीद-
झांझोत गांव के जवान बलिदानी में भी पीछे नहीं रहे। गांव के खुर्शेद अली खां ने 1965 में तथा राजेश कुमार 2007 में वतन की हिफाजत करते हुए वीर गति को प्राप्त हुए। जिसमें शहीद खुर्शेद के नाम से चिड़ावा-सुलताना रोड पर सर्किल तथा शहीद राजेश कुमार के नाम पर राजकीय विद्यालय का नामकरण हो चुका है।
सिपाही से कर्नल तक मिले-

गांव में सिपाही से लेकर कर्नल तक के उच्च पदों पर भी जवान सेवा दे चुके हैं। रिटायर्ड कप्तान एजाज अली खां बताते हैं कि गांव से एक कर्नल, लेफ्टिनेंट कर्नल, दस से ज्यादा कप्तान समेत अन्य उच्च पदों पर भी जवान रहे हैं। जिसमें से कुछ फिलहाल भी कार्यरत हैं। 40 से ज्यादा जवानों ने बोर्डर पर विभिन्न युद्धों में भी हिस्सा लिया। वहीं प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध में भी 12-13 जवानों ने वीरगति प्राप्त की थी।
चार-पांच पीढिय़ां सेवा में
गांव के बहुत से परिवार तो ऐसे हैं, जिसकी तीन से पांच पीढिय़ां देश की सेवा में रही हैं। गांव के रिसालदार जहूर अली खां के खुद के अलावा दादा, पिता, पुत्र और पौत्र सेना में भर्ती हुए। जहूर अली के पुत्र कप्तान मकसूद अली खां के पुत्र ताहिर फिलहाल पांचवीं पीढ़ी के रूप में सेना में कार्यरत हैं।
जर्रे-जर्रे में देश सेवा का जज्बा-
झांझोत के रिटायर्ड कर्नल शौकत अली खां बताते हैं कि गांव ने करीब 200 से ज्यादा जवान भारतीय सेना को दिए। जिसमें से सौ के करीब फिलहाल भी ड्यूटी पर तैनात हैं। उन्होंने बताया कि यहां के युवाओं में बचपन से ही सेना में जाने का जूनुन सवार हो जाता है। गांव के बहुत से परिवारों की चौथी-पांचवीं पीढ़ी भी सेना में रही हैं।
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