न्यायालय ने अपने आदेश में लिखा कि जब परिवादी व पीडि़ता द्वारा किसी प्रकार से अपराध घटित होने से मना कर दिया। इसके बावजूद किस आधार पर 29 अगस्त 2018 को एक लाख रुपए व 24 सितम्बर 2018 को दो लाख रुपए की सहायता राशि परिवादी को स्वीकृत की गई, जो एक गंभीर प्रश्र खड़ा करती है। न्यायालय ने लिखा की पीडि़त प्रतिकर के रूप में सरकार की ओर से जो सहायता राशि दी जाती है वह लोकधन से दी जाती है तथा यह लोकधन आमजनता का वह धन है जिसकी सरकार केवल मात्र ट्रस्टी है। न्यायालय ने यह भी लिखा कि एक जागरूक न्यायाधीश का कत्र्तव्य है कि जो तथ्य सरकार के संज्ञान में नहीं है उनसे सरकार को अवगत कराये और कानून में लूपहोल व खामियां है उसे सुधार करने के लिए सुझाव दे। इस मामले में आरोप पत्र न्यायालय में 16 जनवरी 2019 को भेजा गया था परन्तु कलक्टर के पत्र अनुसार आरोप पत्र न्यायालय में भेजे जाने से पूर्व ही 75 प्रतिशत राशि अर्थात तीन लाख रुपए का भुगतान 24 सितम्बर 2018 को किया जा चुका था जो जांच का विषय है तथा यह भी जांच का विषय है कि कहीं इस राहत राशि अदा करने में कहीं भ्रष्टाचार का खेल तो नहीं चल रहा है तथा इस सहायता राशि के बदले परिवादी से इस राशि का एक भाग वसूला तो नहीं जा रहा। अत: जिला कलक्टर को आदेशित किया जाता है कि उक्त राहत राशि का समयपूर्व भुगतान के सम्बन्ध में जांच कर इसकी रिपोर्ट दो माह में पेश करे। सरकार से पीडि़त प्रतिकर की राशि लेना तथा न्यायालय में पक्षद्रोही होना दो नावों की सवारी करने जैसा है जिसकी इजाजत नहीं दी जानी चाहिए। न्यायालय ने आदेश की एक प्रति सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग/विधि विभाग तथा रालसा को भी भेजने का आदेश दिया।