पत्रिका: बधाई आपको देश का मान बढ़ाने के लिए।
झाझडिय़ा: पूरे देश के लिए यह खुशी का पल है। इसमें मेरी मेहनत के साथ लाखों लोगों की दुआएं साथ थी। इस वजह से पदक जीतने में सफल हुआ हूं। पत्रिका परिवार का धन्यवाद। पत्रिका परिवार से मुझे बहुत प्यार मिला। इसके लिए दिल से आभार। पत्रिका के समाचार पढ़कर मैंने संघर्ष की शुरूआत की थी।
झाझडिय़ा: मुझे शुरूआत से ही पदक जीतने की पूरी उम्मीद थी। क्योंकि नियमित अभ्यास और मेहनत के दम पर आपको महसूस होने लग जाता है कि आप क्या कर सकते हैं। इसलिए मुझे बहुत पहले से पदक की उम्मीद थी।
पत्रिका: अब आगे के कॅरियर के बारे में क्या रणनीति है।
झाझडिय़ा: आगे भी मेरा खेल ही कॅरियर रहेगा। अभी और खेलने की इच्छा है।
झाझडिय़ा: जिंदगी ने मुझे बहुत कुछ दिया है, मेरी उम्मीदों से भी बहुत ज्यादा। फिर भी एक टीस रहती है कि यदि 2008 और 2012 के पैरा ओलंपिक में जेवलिन थ्रो गेम होता तो मुझे दूसरे पैरा ओलंपिक गोल्ड के लिए इतना इंतजार नहीं करना पड़ता और आज मैं पांचवें पैरा ओलंपिक पदक की ओर देख रहा होता। दूसरी जो बात मैं बहुत मिस करता हूं, वो यह है कि 19 साल से इंडिया टीम में हूं तो एक होस्टल लाइफ जी रहा हूं। परिवार के साथ कभी ठीक से समय नहीं बिता पाया। मम्मी, पापा, बेटी, बेटा, पत्नी को जितना समय देना था, नहीं दे पाया। बहुत सारे अवसरों पर उनके बीच नहीं पहुंच पाता। पार्टियां, शादियां एंज्वॉय नहीं कर पाता। हालांकि परिवार सपोर्ट करता है। दो बड़े भाई हैं जो ज्यादातर सामाजिक जिम्मेदारियों को निभाते हैं। बच्चों को भी पत्नी मंजू ही देखती हैं। पत्नी मंजू खुद नेशनल प्लेयर रही हैं, वो जानती हैं कि एक स्पोट्र्स पर्सन को किस तरह से काम करना होता है। पिछले दिनों पिता के निधन के बाद लोकाचार के बारह दिन ही बीते थे कि मां ने कह दिया, बेटा तू जा ट्रेनिंग कर। बेटी भी अब समझती है। बेटा जरूर जिद कर लेता है कि पापा आप कल ही आ जाओ। पर जब आप किसी बड़े मिशन पर हों तो इन चीजों के साथ कहीं न कहीं समझौता करना ही होता है।
झाझडिय़ा: मेहनत के बिना कुछ भी संभव नहीं है। जिस युवा ने मेहनत की राहें चुन ली उसको सफलता मिलनी तय है। जिदंगी में असफलता के मोड भी आते है इसलिए कभी भी हार नहीं माननी चाहिए। अगली बार हो सकता है और भी बेहतर मुकाम मिले। इसलिए मजबूती से अपनी तैयारी में जुटे रहे, भले ही फील्ड कोई सा क्यों ना हो।
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संघर्ष: देवेन्द्र ने नंगे पैर खेतों में की थी तैयारी
राजस्थान के चूरू जिले के सादुलपुर उपखण्ड की झाझडिय़ों की ढाणी में रामसिंह व जीवनी देवी के घर 10 जून 1981 को जन्मे देवेन्द्र झाझडिय़ा के पिता की पारिवारिक स्थिति ठीक नहीं थी। करीब आठ वर्ष की उम्र में एक हादसे के बाद एक हाथ गंवाना पड़ा। लेकिन देवेन्द्र ने हिम्मत नहीं हारी। सुबह-शाम और दोपहर खेतों में लकड़ी का भाला बनाकर फेंकते थे।
देवेंद्र की पत्नी मंजू ने पत्रिका से खास बातचीत में बताया कि उन्होंने ओलम्पिक में हैट्रिक लगाने का वादा किया था। वह वादा उन्होंने टोक्यो ओलम्पिक में पूरा कर दिया। मंजू ने बताया कि शनिवार को भी परिवार के सभी सदस्यों से बातचीत कर वादा किया था कि देश के लिए इस बार भी पक्का पदक लेकर आऊंगा।
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