scriptझुंझुनूं के गांवों में लहलहा रहे इजराइल वाले जैतून | jaitooninjhunjhunu | Patrika News
झुंझुनू

झुंझुनूं के गांवों में लहलहा रहे इजराइल वाले जैतून

एनएसजी के रिटायर्ड सिक्यूरिटी गार्ड मुकेश मांझु ने बताया कि वर्ष 2015 में उसने चार सौ से ज्यादा जैतून के पौधे लगाए थे। वे अब पेड़ बन गए हैं। इसके लिए कृषि व उद्यान विभाग के अधिकारियों का खूब सहयोग रहा।

झुंझुनूMay 23, 2022 / 09:15 pm

Rajesh

झुंझुनूं के गांवों में लहलहा रहे इजराइल वाले जैतून

झुंझुनूं के गांवों में लहलहा रहे इजराइल वाले जैतून

#jaitooninjhunjhunu


राजेश शर्मा

झुंझुनूं. इजराइल वाले जैतून अब शेखावाटी में भी पनपने लगे हैं। झुंझुनूं, सीकर व चूरू में इसकी खेती का रकबा बढ़ता जा रहा है। पिलानी के निकट झेरली गांव के मुकेश मांझु ने जैतून के 400 पौध लगा रखे हैं।
एनएसजी के रिटायर्ड सिक्यूरिटी गार्ड मुकेश मांझु ने बताया कि वर्ष 2015 में उसने चार सौ से ज्यादा जैतून के पौधे लगाए थे। वे अब पेड़ बन गए हैं। इसके लिए कृषि व उद्यान विभाग के अधिकारियों का खूब सहयोग रहा।
वहीं चंदन वाले फौजी के नाम से चर्चित जमील पठान ने अब दुर्लभ माने जाने वाले जैतून के आठ सौ से ज्यादा पौधे लगा दिए हैं। सेना से रिटायर होने के बाद से ही वह झुंझुनूं से करीब दस से बारह किलोमीटर दूर खुद के गांव बुड़ाना में अनेक प्रकार के पेड़ पौधे लगा रहा है। पठान ने अब अपने खेत में आठ सौ से ज्यादा जैतून के पौधे लगाए थे। इनमें करीब आठ सौ पौधे जिंदा हैं। खेत में लहलहा रहे हैं। उसने बताया कि जब तक वह खुद जिंदा है एक भी पेड़ को नहीं काटेगा। राजस्थान में बड़े स्तर पर इसकी शुरुआत इजराइल से पौधे मंगवाकर की गई थी। जमील ने बताया कि जब वह सेना में था, तब से ही पौधों के प्रति उसका विशेष लगाव रहा है। दोनों ने कुल 1200 के लगभग पेड़ लगा रखे हैं।
#jaitooninjhunjhunu

तापमान सहने की क्षमता
उद्यान विभाग के सहायक निदेशक शीशराम जाखड़ के अनुसार इस पौधे में माइनस डिग्री से लेकर 48 डिग्री तक तापमान सहने की क्षमता होती है। वैसे सर्दी में इसे लम्बे समय तक 10 डिग्री के आस-पास का तापमान चाहिए। इसके पौधे इजराइल, अमरीका, चीन, न्यूजीलैंड सहित अनेक देशों में बड़ी संख्या में उगाए जा रहे हैं। इसे अंग्रेजी में ओलिव भी बोलते हैं। जैतून का तेल (ओलिव ऑइल) खाना पकाने में, सौंदर्य प्रसाधन के लिए, दवाओं के निर्माण में, साबुन निर्माण में तथा पारम्परिक दीपों को जलाने के लिए तेल के रूप में काम में लिया जाता है। जैतून का तेल लगभग पूरे विश्व में प्रयुक्त होता है किन्तु भूमध्य सागरीय क्षेत्रों में इसका प्रयोग अधिक
होता है।
इजराइल का सहयोग, शुरुआत 2008 से
राजस्थान में जैतून का बड़े स्तर पर पौधरोपण मार्च 2008 से शुरू किया गया था। इजराइल के सहयोग से राज्य में शुरुआत में जैतून के 1,12,000 पौधे आयात किए थे। इजराइल की जलवायु तथा मिट्टी लगभग राजस्थान के समान ही है। वर्ष 2008-10 में राज्य के विभिन्न भागों में कुल 182 हैक्टेयर सरकारी भूमि क्षेत्र पर जैतून के 7 कृषि क्षेत्र तैयार किए गए थेे। तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने बीकानेर के लूणकरणसर क्षेत्र में 3 अक्टूबर, 2014 को जैतून की रिफाइनरी शुरू की थी।
7 जगह लगाए थे
बस्सी (जयपुर)
बाकलिया (नागौर)
सांथु (जालौर)
बारोर (बीकानेर)
तिनकिरूडी (अलवर)
लूणकरणसर (बीकानेर)
बासबिसना (झुंझुनू)

दो साल बाद जैतून के पौधों की बढ़वार होने पर इसकी पत्तियों को काटकर बेचा जा सकता है। वर्तमान में पत्तियां 50 से 60 रुपए प्रति किलो बिक रही है। उगाने के चार या पांच साल के बाद इसमें फल लगने शुरू हो जाते हैं, जिसे कई कंपनियां खरीद लेती हैं। इस पेड़ की उम्र 800 से एक हजार साल तक की होती है। कई जगह इससे ज्यादा उम्र भी देखी गई है। राजस्थान के कई जिलों में सरकार इसके पौधे उगाने पर अनुदान भी दे
रही है।
सही देखभाल की जाए तो झुंझुनूं में यह पेड लग सकते हैं। मुकेश मांझु व जमील पठान ने जैतून के सैकड़ों पौधे लगा रखे हैं। यह दुर्लभ है। इसका तेल काफी कीमती होता है।
-डॉ दयानंद, मुख्य वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष, कृषि विज्ञान केन्द्र आबूसर
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो