उद्यान विभाग के सहायक निदेशक शीशराम जाखड़ के अनुसार इस पौधे में माइनस डिग्री से लेकर 48 डिग्री तक तापमान सहने की क्षमता होती है। वैसे सर्दी में इसे लम्बे समय तक 10 डिग्री के आस-पास का तापमान चाहिए। इसके पौधे इजराइल, अमरीका, चीन, न्यूजीलैंड सहित अनेक देशों में बड़ी संख्या में उगाए जा रहे हैं। इसे अंग्रेजी में ओलिव भी बोलते हैं। जैतून का तेल (ओलिव ऑइल) खाना पकाने में, सौंदर्य प्रसाधन के लिए, दवाओं के निर्माण में, साबुन निर्माण में तथा पारम्परिक दीपों को जलाने के लिए तेल के रूप में काम में लिया जाता है। जैतून का तेल लगभग पूरे विश्व में प्रयुक्त होता है किन्तु भूमध्य सागरीय क्षेत्रों में इसका प्रयोग अधिक
होता है।
राजस्थान में जैतून का बड़े स्तर पर पौधरोपण मार्च 2008 से शुरू किया गया था। इजराइल के सहयोग से राज्य में शुरुआत में जैतून के 1,12,000 पौधे आयात किए थे। इजराइल की जलवायु तथा मिट्टी लगभग राजस्थान के समान ही है। वर्ष 2008-10 में राज्य के विभिन्न भागों में कुल 182 हैक्टेयर सरकारी भूमि क्षेत्र पर जैतून के 7 कृषि क्षेत्र तैयार किए गए थेे। तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने बीकानेर के लूणकरणसर क्षेत्र में 3 अक्टूबर, 2014 को जैतून की रिफाइनरी शुरू की थी।
बस्सी (जयपुर)
बाकलिया (नागौर)
सांथु (जालौर)
बारोर (बीकानेर)
तिनकिरूडी (अलवर)
लूणकरणसर (बीकानेर)
बासबिसना (झुंझुनू) दो साल बाद जैतून के पौधों की बढ़वार होने पर इसकी पत्तियों को काटकर बेचा जा सकता है। वर्तमान में पत्तियां 50 से 60 रुपए प्रति किलो बिक रही है। उगाने के चार या पांच साल के बाद इसमें फल लगने शुरू हो जाते हैं, जिसे कई कंपनियां खरीद लेती हैं। इस पेड़ की उम्र 800 से एक हजार साल तक की होती है। कई जगह इससे ज्यादा उम्र भी देखी गई है। राजस्थान के कई जिलों में सरकार इसके पौधे उगाने पर अनुदान भी दे
रही है।
-डॉ दयानंद, मुख्य वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष, कृषि विज्ञान केन्द्र आबूसर