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झुंझुनूं के इस गांव में लगे बेर मिठास में चौमूं के बेरों को दे रहे हैं टक्कर

locationझुंझुनूPublished: Feb 27, 2020 11:28:48 am

Submitted by:

gunjan shekhawat

सीथल पंचायत के केसरीपुरा गांव में लगे बेर चौमूं के बेरों को टक्कर दे रहे हैं। इसकी मिठास हर जुबान पर हो गई है। परंपरागत खेतीबाड़ी में आय कम होने के कारण मोहर सिंह महलावत ने अपने खेत में बेर का बाग लगाने की सोची।

झुंझुनूं के इस गांव में लगे बेर मिठास में चौमूं के बेरों को दे रहे हैं टक्कर

झुंझुनूं के इस गांव में लगे बेर मिठास में चौमूं के बेरों को दे रहे हैं टक्कर

झुंझुनूं/गुढागौडज़ी. सीथल पंचायत के केसरीपुरा गांव में लगे बेर चौमूं के बेरों को टक्कर दे रहे हैं।इसकी मिठास हर जुबान पर हो गई है।
परंपरागत खेतीबाड़ी में आय कम होने के कारण मोहर सिंह महलावत ने अपने खेत में बेर का बाग लगाने की सोची। करीब सौ बीघा जमीन पर मोहर सिंह ने बेर का बाग व अन्य फलों का उद्यान लगा रखा है।
इन सभी से उसको करीब 40 लाख रुपये प्रतिवर्ष आमदनी हो रही है। इनके खेत में फिलहाल 40 बीघा में बिना रासायनिक कीटनाशक व फर्टीलाइजर के बेर की बड़ी-बड़ी झाडिय़ां लहलहा रही है। जिसमें बेर की उमरान, मुंडिया, गोला, चुहारा,सेव इत्यादि किस्म की पौधे लगा रखे हैं। इसके अलावा 60 बीघा में आंवले, मौसमी, किन्नु, आम,बील,नीबूं की खेती कर रखी है। स्थानीय लोगों ने बताया कि केसरीपुरा के बेर की मिठास अलग है जिसकी वजह से इसकी मांग दूर दूर तक है। शेखावाटी ही बल्कि बड़े शहरों में भी इस बेर का निर्यात किया जा रहा है। विदेश रहने वाले गांव के लोग जाते समय अपने साथ ये बेर लेकर जाते हैं। जिसके स्वाद की तारीफ दूसरे मुल्क के लोग भी
करते है।
बेर ने कराई कई देशों की सैर
मोहरसिंह ने अपने बगीचे में बेर की विभिन्न किस्में हिसार, गुजरात व चौमूं से आयात कर लगाई है। जिले में पहली हाइटेक नर्सरी लगाने वाले मोहरसिंह अपने इस कार्य को समझने के लिए इजराइल भी गए। वहां हाइटेक कार्यप्रणाली के मॉडल को समझकर उसी की तर्ज पर ही हाइटेक नर्सरी अपने खेत में लगाई। अपनी बागवानी के हुनर की वजह से वे जर्मनी, फ्रांस, स्विटरजरलैंड, इटली सहित कई देशों की यात्रा कर चुके है।
देशी व केचुए की खाद का उपयोग
बागवानी में पूर्णत: देशी खाद व केचुए की खाद का उपयोग किया जा रहा है। करीब 40 साल से बागवानी कर रहे मोहरसिंह ने बताया कि वे अपने बेर के बाग में यूरिया का प्रयोग नहीं करते है।
इस बार सर्दी का प्रकोप ज्यादा होने से उत्पादन में कमी हुई है। बेटे विजयपाल व जयप्रकाश भी इसी कार्य को संभालते है। वे कई बार सम्मानित भी हो चुके।
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