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माता-पिता के सपनों को पूरा कर रहे शहीदों के बेटे

locationझुंझुनूPublished: Jul 26, 2020 09:52:58 pm

Submitted by:

Rajesh

जीत के बाद कोई सिर पर विजय पताका पहनकर घर आया तो अनेक अपने देश की रक्षा के लिए शहीद हो गए। अब उनके बेटे बड़े हो गए। वे अपने माता-पिता के सपनों को पूरा कर रहे हैं। कोई पिता की तरह देश की सरहद की रक्षा कर रहा है तो कोई जरूरतमंद की सेवा में जुटा है। कोई पर्यावरण को बढ़ावा दे रहा है तो कोई मरीजों की सेवा में जुटा है। करगिल विजय दिवस पर पेश विशेष रिपोर्ट।

माता-पिता के सपनों को पूरा कर रहे शहीदों के बेटे

माता-पिता के सपनों को पूरा कर रहे शहीदों के बेटे

देश में कहीं भी वीरता की बात आती है तो सबसे पहले राजस्थान के झुंझुनूं के शूरवीरों का नाम जरूर आता है। पाकिस्तान के साथ 1965 का युद्ध हो, 71 का या फिर करगिल में ऑपरेशन विजय। हर बार जिले के बेटों ने अपनी वीरता साबित की। जीत के बाद कोई सिर पर विजय पताका पहनकर घर आया तो अनेक अपने देश की रक्षा के लिए शहीद हो गए। अब उनके बेटे बड़े हो गए। वे अपने माता-पिता के सपनों को पूरा कर रहे हैं। कोई पिता की तरह देश की सरहद की रक्षा कर रहा है तो कोई जरूरतमंद की सेवा में जुटा है। कोई पर्यावरण को बढ़ावा दे रहा है तो कोई मरीजों की सेवा में जुटा है। करगिल विजय दिवस पर पेश विशेष रिपोर्ट।
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पिता के बाद बेटे ने पहनी सेना की वर्दी
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बुहाना. देश की आन-बान-शान के लिए प्राण न्योछावर करने वाले नरात गांव के शहीद गोपाल सिंह के बेटे भी अपने पिता की राह पर चलते हुए देश सेवा कर रहे हैं। अपने पिता की शहादत के बाद से उनके बेटे एवं परिवार ने एक संकल्प लिया था कि बेटे को भी देश सेवा के लिए सेना में भेजेंगे। शहीद गोपाल सिंह देश सेवा करते हुए जम्मू-कश्मीर के उरी क्षेत्र में शहीद हो गए थे। शहादत के समय उनके बेटे कंवरपाल सिंह की उम्र मात्र 4 साल थी। बेटा बड़ा होने पर पिता की राह पर चलते हुए देश सेवा में जाने के लिए सेना की भर्ती देखने लगा। कंवरपाल सिंह वर्ष 2010 में सेना में भर्ती हुआ। वर्तमान में वह राजस्थान के बीकानेर में 5 राज राइफल्स में तैनात है।
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खेलों को बढ़ावा दे रहे शहीद के बेटे
मण्ड्रेला.गांव नौरंगपुरा जिला चूरू निवासी करगिल शहीद शीशराम निमड़ के बेटे विक्रम व अमित निमड़ अपने पिता की याद में खेलों को बढ़ावा दे रहे हैं। पर्यावरण व खेल प्रेमी शहीद निमड़ के सपनों को साकार करने के लिए दोनों भाई परिवार के संग मिलकर अपने गांव में बड़ी खेल प्रतियोगिता करवाते हैं। वहीं हर वर्ष मण्ड्रेला सहित अपने गांव में पौधरोपण करते हैं।लॉकडाउन के समय में मण्ड्रेला क्षेत्र में जरूरतमंद लोगों तक भोजन के पैकेट उपलब्ध करवाए थे।
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पिता के सपनों के लिए बने डॉक्टर
बिसाऊ. कस्बे के मोहल्ला जगतपुरा निवासी शहीद रामस्वरूपसिंह के पुत्र सुनील चौधरी ने पिता व मां के सपनों को पूरा करने के लिए चिकित्सक के रूप में देश सेवा का रास्ता चुना। डॉ सुनील जयपुर से एनस्थीसिया पीजी कर रहे हैं। शहीद की पुत्री सुनीता भी दंत चिकित्सक बनकर झुंझुनंू में सेवा में जुटी हुई है। नजदीक के गांव तिलोका का बास निवासी शहीद हरफूल सिंह कुलहरि के पुत्र प्रवीण कुलहरि व प्रदीप कुलहरि अपने पिता की याद में गायों की सेवा कर रहे हैं। उन्होंने हाल ही में गोशाला में एक लाख रुपए का आर्थिक सहयोग दिया है। सरकारी स्कूल के प्रतिभावान बच्चों को सम्मान देकर प्रोत्साहित कर रहे हैं। समय-समय पर रक्तदान शिविर लगा रहे हैं। जरूरतमंदों को राशन किट का वितरण भी कर रहे हैं।
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जान देने से पहले 16 को उतारा मौत के घाट
खेतड़ी. झुंझुनंू जिले के प्रथम करगिल शहीद बंधा की ढाणी निवासी सेना मेडल विजेता शहीद भगवान सिंह की वीरांगना विजेश देवी को अभी भी कुछ मलाल है। विजेश देवी ने बताया कि उनके पति की शहादत के समय बेटे कमलदीप सिंह की उम्र 8-9 वर्ष ,भूपेन्द्रिसिंह की 6-7 वर्ष और बेटी सुप्रिया की उम्र करीब तीन वर्ष थी। तीनो बच्चों ने स्नातक स्तर की पढाई पूर्ण कर ली। राज्य व केन्द्र सरकार शहीद परिवार में एक आश्रित को नौकरी की घोषणा की हुई है। लेकिन तीनों में से किसी बच्चे की सरकारी नौकरी नहीं लगी। लांस नायक भगवानसिंह 27 राजपूत रेजीमेंट में कार्यरत थे। करगिल के सियाचीन ग्लेसियर थर्ड चौकी पर उन्होंने 16 पाक घुसपैठियो को मारकर चौकी पर तिरंगा फहराया था। तभी वहां एक बैंकर में मौजूद दुश्मन ने 28 जून 1999 को गोलीबारी कर दी। जिससे उनके सीने में गोली लगी जिसमे भगवानसिंह शहीद हो गए। उनकी वीरता को देखते हुए उनको सेना मेडल दिया गया।
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