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#Mothers Day: नेत्रहीन बेटे के लिए पिता का मां जैसा संघर्ष पहले कभी नहीं देखा होगा आपने बेटे को शहीद पति के नाम से खुलवा दी स्कूल मंडावा. गांव तेतरा के शहीद रामेश्वर सिंह गढ़वाल 4 जनवरी 1966 को फौज में भर्ती हुए थे। तीन साल बाद गढ़वाल की शादी पबाना निवासी बनारसी देवी के साथ शादी हो गई। 7 दिसंबर 1971 को भारत-पाक की लड़ाई में वे शहीद हो गए। शहीद होने के पांच माह बाद वीरांगना के बेटा महेश पैदा हुआ। हर बच्चों की तरह महेश भी बचपन में मां से पिता के बारे में ढेरों सवाल पूछा करता था। पूछता था कि ‘पापा हमारे साथ क्यों नहीं रहते…। कभी घर क्यों नहीं आते…Ó। भीगी पलकों से मां उसे ‘झूठकरÓ बोलकर दिलासा देती कि उसके पिता बहादुर फौजी हैं। फौज से उनको छुट्टियां नहीं मिल रही। महेश जैसे-जैसे बड़ा हुआ हर बात को समझने लगा। कभी पिता का प्यार तो नहीं मिला, मगर मां ने पिता की कमी महसूस नहीं होने दी। खूब पढ़ाया-लिखाया। काबिल बनाया। महेश ने मंडावा में अपने पिता के नाम पर स्कूल संचालित कर रखी है।
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सीकर में यहां महिलाओं के साथ हो रहा है ऐसा काम, जिससे आपको भी आ जाएगी शर्म पिता को समर्पित किया बेटी ने अपना जन्मदिन झुंझुनूं. जन्मदिन का मतलब बेटी जब समझने लगी तो इस मौके पर पिता की मौजूदगी की भी ख्वाहिश करने लगी। ये तो बेटी भी ऐसी है जो पिता की शहादत के तीन माह बाद पैदा हुई थी। पता चला कि पिता की जिम्मेदारी भी मां ही निभा रही है। पिता उसके जन्मदिन पर कभी नहीं आ पाएंगे तो बेटी ने मां की आंखें नम ना हो इसके लिए अपना जन्मदिन ही शहीद पिता को समर्पित कर दिया। अब कभी जन्मदिन नहीं मनाती। ये दर्दभरी दास्तां है सौंथली निवासी शहीद दिनेश की वीरांगना शारदा पूनियां के परिवार की। शारदा ने बताया कि उनके पति वर्ष 2002 में शहीद हुए थे। बचपन में बेटी को यही दिलासा देती थी कि उसके पिता के पैर में चोट लगी है। अस्पताल में भर्ती हैं। इसके पिता तो कभी नहीं आए, लेकिन मैंने उनकी कमी पूरी करने की हरसंभव कोशिश की है। वर्तमान में बेटी रंजना पूनियां 11वीं में पढ़ रही है।