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#Mothers Day : यहां तो पिता का भी फर्ज निभा रहीं वीरांगनाएं, रुला देनी वाली है इनके पीछे की कहानी

locationअनूपपुरPublished: May 14, 2017 12:09:00 pm

Submitted by:

dinesh rathore

मम्मी…पापा कहां गए…! कब आएंगे वो…! कैसे दिखते हैं…! बहादुर फौजी हैं ना वो…। बिलकुल ऐसे ही हैं ना…जो इस तस्वीर में दिखते हैं…जैसा आप बताती भी हो…! कभी अपने पापा को नहीं देखने वाले बच्चे के ऐसे सवाल इन मांओं के लिए बहुत दर्दभरे रहे, मगर इन्होंने हिम्मत नहीं हारी।

‘मैं इसकी मां ही नहीं बल्कि पिता भी हूं। इसने तो पिता को देखा भी नहीं, मगर मैं इसे पिता का भी प्यार देने में कभी कोई कसर नहीं छोड़ रहीÓ। यह कहना है शहीद वीरांगना बाय निवासी सुनिता पूनियां का। इनके फौजी पति बाबूलाल पूनियां वर्ष 2002 में शहीद हो गए थे। तब कोख में ढाई-तीन माह का बेटा पल रहा था। बेटा हिमांशु दसवीं में पढ़ रहा है और अब तो हिमांशु यह भी जानता है कि इसके फौजी पिता शहीद हो गए थे। बचपन में तो पिता को देखने की इसकी जिद सुनिता को रुला देती थी। बेटे के लिए मां के साथ-साथ पिता का भी फर्ज निभाने और परिवार की जिम्मेदारी का बोझ उठाने में पीहर व ससुराल वालों का भरपूर सहयोग मिला।
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बेटे को शहीद पति के नाम से खुलवा दी स्कूल

मंडावा. गांव तेतरा के शहीद रामेश्वर सिंह गढ़वाल 4 जनवरी 1966 को फौज में भर्ती हुए थे। तीन साल बाद गढ़वाल की शादी पबाना निवासी बनारसी देवी के साथ शादी हो गई। 7 दिसंबर 1971 को भारत-पाक की लड़ाई में वे शहीद हो गए। शहीद होने के पांच माह बाद वीरांगना के बेटा महेश पैदा हुआ। हर बच्चों की तरह महेश भी बचपन में मां से पिता के बारे में ढेरों सवाल पूछा करता था। पूछता था कि ‘पापा हमारे साथ क्यों नहीं रहते…। कभी घर क्यों नहीं आते…Ó। भीगी पलकों से मां उसे ‘झूठकरÓ बोलकर दिलासा देती कि उसके पिता बहादुर फौजी हैं। फौज से उनको छुट्टियां नहीं मिल रही। महेश जैसे-जैसे बड़ा हुआ हर बात को समझने लगा। कभी पिता का प्यार तो नहीं मिला, मगर मां ने पिता की कमी महसूस नहीं होने दी। खूब पढ़ाया-लिखाया। काबिल बनाया। महेश ने मंडावा में अपने पिता के नाम पर स्कूल संचालित कर रखी है। 
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पिता को समर्पित किया बेटी ने अपना जन्मदिन

झुंझुनूं. जन्मदिन का मतलब बेटी जब समझने लगी तो इस मौके पर पिता की मौजूदगी की भी ख्वाहिश करने लगी। ये तो बेटी भी ऐसी है जो पिता की शहादत के तीन माह बाद पैदा हुई थी। पता चला कि पिता की जिम्मेदारी भी मां ही निभा रही है। पिता उसके जन्मदिन पर कभी नहीं आ पाएंगे तो बेटी ने मां की आंखें नम ना हो इसके लिए अपना जन्मदिन ही शहीद पिता को समर्पित कर दिया। अब कभी जन्मदिन नहीं मनाती। ये दर्दभरी दास्तां है सौंथली निवासी शहीद दिनेश की वीरांगना शारदा पूनियां के परिवार की। शारदा ने बताया कि उनके पति वर्ष 2002 में शहीद हुए थे। बचपन में बेटी को यही दिलासा देती थी कि उसके पिता के पैर में चोट लगी है। अस्पताल में भर्ती हैं। इसके पिता तो कभी नहीं आए, लेकिन मैंने उनकी कमी पूरी करने की हरसंभव कोशिश की है। वर्तमान में बेटी रंजना पूनियां 11वीं में पढ़ रही है।
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