खींचड़ ने बताया कि पहले वे गांव में रहते थे। अब खेत पर घर बना लिया। उसके पास कुल चालीस कच्ची बीघा जमीन है। पांच बीघा में मौसमी के चार सौ पेड़ लगा रखे हैं। मौसमी से हर साल करीब पांच लाख रुपए की बचत हो जाती है। चार सौ झाडिय़ां बेर की लगा रखी हैं। बेर की झांडिय़ों की पौध जोधपुर स्थित काजरी से लेकर आया था। उसके पास करीब बीस गाय हैं। इनमें से दस देसी व दस विदेशी गायें है। विदेशी नस्ल की गायों का दूध बेचते हैं। जबकि देसी गाय का घी बेचते हैं। देसी गाय का घी करीब पंद्रह सौ रुपए प्रति किलो की दर से उसके घर से डॉक्टर व अन्य व्यवसायी लेकर जाते हैं। गाय के दूध, घी व बछडिय़ों के बेचने से करीब तीन लाख रुपए की आय हो जाती है। इसके अलावा वह अपने खेतों में काले गेहूं की खेती कर रहे हैं। खींचड़ ने बताया कि काले गेहूं करीब आठ हजार रुपए प्रति क्विंटल के भाव से बिक रहे हैं। उसके लिए भी लोग अग्रिम बुकिंग करवा रहे हैं। वे देसी मुर्गियां भी रख रहे हैं। इसके दो फायदे हैं। मुर्गियां गाय व भैंस के लगने वाले छोटे कीटों को खा जाती है, इससे गाय-भैंस बीमार नहीं होती। कीट मारने की दवा नहीं लगानी पड़ती। दूसरा फायदा यह है कि देसी मुर्गी के अंडे अन्य मुर्गियों की तुलना में ज्यादा महंगे बिकते हैं। किसान ने बताया कि उसने एक माह का प्रशिक्षण कृषि विज्ञान केन्द्र पर लिया था। उसके बाद आय बढ़ती ही गई। किसान ने मोटर,ट्यूबवैल, लाइट व पंखे चलाने के लिए खेत में सौलर प्लांट लगा रखा है। इस कारण बिजली का बिल नहीं आता। खाद भी खेत पर तैयार करता है।
59 वर्ष के धर्मवीर को कृषि विभाग वर्ष 2012-13 में सम्मानित कर चुका। वर्ष 2020 में धर्मवीर की पत्नी केसरी देवी को सम्मानित किया गया था। धर्मवीर ने बताया कि खेती में असली मेहनत मेरी पत्नी की रहती है। खेती पहले भी उत्तम थी। अब भी उत्तम है। समय के साथ आधुनिक तकनीक अपनानी पड़ेगी। हवाई बाते बनाने की बजाय खुद को खेतों में मेहनत करनी पड़ेगी। हर साल लाखों युवा बेरोजगार हो रहे हैं। वे प्राइवेट छोटी नौकरी करने की बजाय नौकरी देेने की सोच रखें तो भारत में बेरोजगारी कम होने लगेगी। खेती आधुनिक तरीके से की जाए तो घाटे का सौदा नहीं है।
एक्सपर्ट व्यू किसान धर्मवीर को केवीके पर आर्गेनिक खेती का प्रशिक्षण दिया गया था। समय-समय पर सरकारी योजनाओं की जानकारी देते रहते हैं। योजनाओं का फायदा भी ले रहे हैं। पति-पत्नी दोनों को कृषि विभाग सम्मानित कर चुका। मैं खुद उनके खेत पर जाकर आया हूं। वे आधुनिक तरीके व बाजार की मांग को देखकर खेती कर
रहे हैं।
-डॉ दयानंद,कृषि वैज्ञानिक केवीके आबूसर