scriptगोली लगने के बावजूद परमवीर पीरू सिंह ने नष्ठ कर दिए थे दुश्मन के ठिकाने | paramveer peeru singh shekhawat | Patrika News
झुंझुनू

गोली लगने के बावजूद परमवीर पीरू सिंह ने नष्ठ कर दिए थे दुश्मन के ठिकाने

जब पीरूसिंह को यह अहसास हुआ कि उनके सभी साथी शहीद हो गए तो वे अकेले ही आगे बढ़ चले। रक्त से लहूलुहान पीरूसिंह अपने हथगोलों से दुश्मन का सफाया कर रहे थे। इतने में दुश्मन की एक गोली आकर उनके माथे पर लगी। उन्होंने गिरते-गिरते भी दुश्मन की दो खंदक नष्ट कर दी।

झुंझुनूJul 18, 2021 / 04:23 pm

Rajesh

गोली लगने के बावजूद परमवीर पीरू सिंह ने नष्ठ कर दिए थे दुश्मन के ठिकाने

गोली लगने के बावजूद परमवीर पीरू सिंह ने नष्ठ कर दिए थे दुश्मन के ठिकाने

झुंझुनूं ञ्च पत्रिका. राजस्थान में झुंझुनंू जिले के बेरी जैसे छोटे से गांव में 20 मई 1918 को लालसिंह के घर परमवीर पीरूसिंह का जन्म हुआ था। वे चार भाइयों में सबसे छोटे थे। राजपूताना राइफल्स की छठी बटालियन की डी कंपनी में हवलदार मेजर थे। मई 1948 में छठी राजपूत बटालियन ने उरी और टिथवाल क्षेत्र में झेलम नदी के दक्षिण में पीरखण्डी और लेडी गली जैसी प्रमुख पहाडिय़ों पर कब्जा करने में विशेष योगदान दिया। इन सभी कार्यवाहियों के दौरान पीरूसिंह ने अद्भुत नेतृत्व और साहस का परिचय दिया। जुलाई 1948 के दूसरे सप्ताह में जब दुश्मन का दबाव टिथवाल क्षेत्र में बढऩे लगा तो छठी बटालियन को उरी क्षेत्र से टिथवाल क्षेत्र में भेजा गया।
#paramveer peeru singh shekhawat

टिथवाल क्षेत्र की सुरक्षा का मुख्य केन्द्र दक्षिण में 9 किलोमीटर पर रिछमार गली थी, जहां की सुरक्षा को निरंतर खतरा बढ़ता जा रहा था। टिथवाल पहुंचते ही राजपूताना राइफल्स को द्वारा पहाड़ी की बन्नेवाल दारिज पर से दुश्मन को हटाने का आदेश दिया गया था। यह स्थान पूर्णत सुरक्षित था और ऊंची-ऊंची चट्टानों के कारण यहां तक पहुंचना कठिन था। जगह तंग होने से काफी कम संख्या में जवानों को यह कार्य सौंपा गया। 18 जुलाई को छठी राइफल्स ने सुबह हमला किया, जिसका नेतृत्व हवलदार मेजर पीरूसिंह कर रहे थे। प्लाटून जैसे-जैसे आगे बढ़ती गई, उस पर दुश्मन की दोनों तरफ से लगातार गोलियां बरस रही थीं। अपनी प्लाटून के आधे से अधिक साथियों के शहीद होने पर भी पीरूसिंह ने हिम्मत नहीं हारी। वे लगातार अपने साथियों को आगे बढऩे के लिए प्रोत्साहित करते रहे एवं स्वयं अपने प्राणों की परवाह न कर आगे बढ़ते रहे। अन्त में उस स्थान पर पहुंच गए, जहां मशीनगन से गोलियां बरसाई जा रही थी। उन्होंने अपनी स्टेनगन से दुश्मन के सभी सैनिकों को भून दिया। जब पीरूसिंह को यह अहसास हुआ कि उनके सभी साथी शहीद हो गए तो वे अकेले ही आगे बढ़ चले। रक्त से लहूलुहान पीरूसिंह अपने हथगोलों से दुश्मन का सफाया कर रहे थे। इतने में दुश्मन की एक गोली आकर उनके माथे पर लगी। उन्होंने गिरते-गिरते भी दुश्मन की दो खंदक नष्ट कर दी। अपनी जान पर खेलकर पीरूसिंह ने जिस अपूर्व वीरता एवं कर्तव्य परायणता का परिचय दिया, वह भारतीय सेना के इतिहास का एक महत्त्वपूर्ण अध्याय है।
#peeru singh shekhawat
अनेक संगठनों ने दी श्रद्धांजलि
शहीद हवलदार मेजर पीरूसिंह के 73वें शहादत दिवस पर रविवार सुबह 10 बजे से ही पीरुसिंह स्मारक पर अनेक संगठनों ने श्रद्धांजलि दी। संयोजक डा. उम्मेदसिंह शेखावत ने बताया कि अपनी प्रचंड वीरता, कर्तव्य के प्रति निष्ठा और प्रेरणादायी कार्य के लिए कंपनी हवलदार मेजर पीरूसिंह को भारत के युद्ध काल के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार परमवीर चक्रसे सम्मानित किया गया।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो