कलक्ट्रेट पर महापड़ाव: यहीं सोना, यहीं मिलकर भोजन बनाना और खाना
मिर्च की खेती करने वाले भोमपुरा गांव के किसान लालचंद सैनी व निर्मला सैनी ने बताया कि पहले सामान्य मिर्च की बुवाई करते थे, वह भी केवल खाने के लिए एक या दो क्यारी में खेती करते थे। एक दिन कृषि विभाग के एक अधिकारी उनके खेत में आए। उन्होंने मथानिया मिर्च उगाने की सलाह दी। इसके बाद इसकी खेती करने लगे। यह मिर्च औसत छह इंच लम्बी होती है। इसका रंग लाल सुर्ख होता है। सामान्य मिर्च बरसात व अन्य मौसम में सड़ जाती है, लेकिन मथानिया मिर्च खराब नहीं होती। यह पेड़ पर भी लाल हो जाती है। दूर से ही अलग दिखाई देती है। हालांकि मिर्च तो खेतड़ी व उदयपुरवाटी क्षेत्र में भी खूब होती है, लेकिन मथानिया की ज्यादा खेती चिड़ावा क्षेत्र में हो रही है।
पानी की भी बचत
पहले क्यारी धोरा बनाकर खेती करते थे, अब बूंदबूंद प्रणाली काम में लेने से पानी की बचत होती है। साथ ही उत्पादन भी ज्यादा होता है। यहां की मिर्च रसोई के अलावा सलाद व अचार के भी काम आ रही है। बहुराष्ट्रीय कम्पनियां कई बार सीधे खेत से भी खरीदने आती है। इसके अलावा बीकानेर, जोधपुर व दिल्ली की मंडियों में भी खूब मांग है। दिल्ली व मुम्बई के पांच सितारा होटल में भी इस मिर्च की विशेष मांग रहती है।
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कम्पनियां खरीद रही सीधे खेतों से
पिछले चार साल से किसान मथानिया मिर्च की खेती बड़े स्तर पर कर रहे हैं। यहां की मिर्च की मांग जोधपुर के मथानिया कस्बे की तरह चर्चित हो रही है। इसकी खेती से किसानों का भी जीवन स्तर सुधर रहा है। किसान आधुनिक तरीके से खेती कर रहे हैं। कई बार बहुराष्ट्रीय कम्पनियां भी सीधे खेतों से मिर्च खरीदने आती है। -अरविंद फगेडिय़ा, कृषि अधिकारी झुंझुनूं