शरद पूर्णिमा पर अमृतसिद्धि योग में चंद्र किरणों से बरसेगा अमृत पंडित दिनेश मिश्रा ने बताया कि आश्विन शुक्ल पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। इस दिन धवल चांदनी में चंद्रमा अमृत की किरण बरसाता है। इस समय चंद्रमा धरती के एकदम नजदीक रहता है। शरद पूर्णिमा पर भक्त अपने इष्ट और आराध्य को खीर का भोग लगाते हैं ।धर्म, अध्यात्म व आयुर्वेद की दृष्टि यह दिन विशेष माना जा रहा है। इस दिन मध्यरात्रि में चंद्रमा की रोशनी में केसरिया दूध व खीर प्रसादी रखने तथा मध्यरात्रि के उपरांत सेवन करने की परंपरा है। मान्यता है इससे रोग प्रतिरोध क्षमता बढ़ती है तथा मनुष्य वर्षभर निरोगी रहता है।
वर्षों बाद आ रहे ऐसे संयोग में आयु व आरोग्यता के लिए आयुर्वेद का लाभ लिया जा सकता है। ज्योतिष शास्त्र में अलग-अलग योग संयोग का उल्लेख है। इनमें अमृतसिद्घि, सर्वार्थसिद्घि, त्रिपुष्कर, द्विपुष्कर या रवियोग विशिष्ट योग माने गए हैं। शरदपूर्णिमा पर मध्यरात्रि में शुक्रवार के साथ अश्विनी नक्षत्र होने से अमृतसिद्घि योग बन रहा है। इस योग में विशेष अनुष्ठान, जप, तप, व्रत किया जा सकता है।
शुक्रवार को शरद पूर्णिमा इसलिए मनेगी शुक्रवार को पूर्णिमा तिथि सायंकाल काल 5.50 से शुरू होगी जो शनिवार को रात्रि 8.20 तक रहेगी। शरद पूर्णिमा रात्रिकालीन पर्व है इसलिए पूर्णिमा तिथि शुक्रवार की रात में रहने से शरद पूर्णिमा शुक्रवार की रात को मनाई जाएगी। सत्यनारायण भगवान का व्रत शनिवार को होगा ।
पौराणिक मान्यता में तीन रात्रि विशेष मानी गई हैं। इनमें मोहरात्रि, कालरात्रि तथा सिद्धरात्रि विशेष है। शरद पूर्णिमा को मोह रात्रि कहा गया है। इसका उल्लेख श्रीमद्देवीभागवत के शिव लीला कथा में मिलता है। कथानक के अनुसार शरद पूर्णिमा पर महारास के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने शिव पार्वती का निमंत्रण भेजा। माता पार्वती ने जब शिव से आज्ञा मांगी, तो शिव ने मोहित होकर स्वयं ही वहां जाने की इच्छा वयक्त की। इसलिए इस रात्रि को मोह रात्रि भी कहा जाता है।