देसी खाद से तैयार करते हैं फसल किसान सुलोचना ने बताया कि चुकंदर सहित अन्य फल व सब्जियों की खेती में देसी गाय के गोबर की खाद ही काम में ली जाती है। जरूरत पड़ने पर ऑर्गेनिक खाद भी काम में ले सकते हैं। कृषि पर्यवेक्षक प्रह्लाद जांगिड़ व पूरण प्रकाश के अनुसार नवाचार के कारण ही यह सब संभव हो रहा है।
सिंचाई कम, सर्दी-गर्मी का प्रभाव कम चुकंदर की फसल में सिंचाई की आवश्यकता कम रहती है। चुकंदर की फसल पर सर्दी व गर्मी का भी प्रभाव कम रहता है। ऐसे में बदले मौसम से नुकसान की आशंका कम रहती है।
यह है बुवाई का समय किसान कजोड़ कुमावत ने बताया कि एक वर्ष में तीन बार चुकंदर की फसल तैयार की जा सकती है। अक्टूबर-नवंबर में बुवाई करने पर जनवरी-फरवरी में फसल तैयार होती है। जनवरी में बुवाई कर अप्रैल-मई में और अगस्त में बुवाई कर अक्टूबर में फसल तैयार की जा सकती है।
कम खर्च, आमदनी ज्यादा किसान कजोड़ व सुलोचना के अनुसार चुकंदर की फसल तैयार करने के लिए प्रति बीघा 10 से 12 हजार रुपए का खर्च आता है। एक बीघा में 18 से 20 क्विंटल चुकंदर की पैदावार हो जाती है। इसका बाजार भाव 25 से 30 रुपए प्रति किलो के हिसाब से मिलता है। किसान को प्रति बीघा के हिसाब से 25 से 35 हजार रुपए आमदनी होती है।
किसान फल व सब्जियों में नवाचार कर कम लागत में अधिक मुनाफा कमा रहे हैं। पहाड़ी क्षेत्र सहित अन्य गांवों में भी किसान छोटे पैमाने पर चुकंदर की खेती कर रहे हैं।
शीशराम जाखड़, सहायक निदेशक उद्यान झुंझुनूं