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जब लाहौर के करीब पहुंच गए थे झुंझुनूं के फौजी

locationझुंझुनूPublished: Aug 18, 2022 01:32:52 pm

मैं खुद व मेरे साथी राजा रामचंद्र की जय बोलते हुए पाकिस्तान की सीमा में आठ किलोमीटर तक घुस गए थे। दो थानों की पुलिस हमें देखकर भाग गई थी। जो बचे थे, हमने उनको हमेशा के लिए सुला दिया था। लाहौर की बड़ी बड़ी फैक्ट्रियों की चिमनियां दूर से दिखाई देने लग गई थी।

जब लाहौर के करीब पहुंच गए थे झुंझुनूं के फौजी

जब लाहौर के करीब पहुंच गए थे झुंझुनूं के फौजी

When the soldiers of Jhunjhunu had reached near Lahore

राजेश शर्मा

उस समय ना विशेष हथियार थे, ना ही तकनीक। अधिकतर हथियार वो थे जो 1947 में अंग्रेज छोड़कर चले गए थे। लेकिन जज्बा गजब का था। देशभक्ति की भावना रगों में दौड़ रही थी। ना घर की चिंता ना परिवार की। ध्येय बस एक ही, दुश्मन को हराना है, इसके लिए चाहे हमें बलिदान ही क्यों नहीं देना पड़ा। युद्ध के मैदान का माहौल ही अलग
होता है।
यह बताते हुए भारत-पाक के बीच हुए 1965 व 71 का युद्ध लड़ चुके रिटायर सूबेदार नंद देव सिंह की आंखों में चमक लौट आई। उन्होंने बताया, सच मानो तो 65 का युद्ध हथियारों से नहीं हमने जज्बे से जीता था। उस समय मैं साधारण सिपाही था। ड्यूटी फिरोजपुर सैक्टर में सरहद पर थी। मेरे कई साथी शहीद भी हुए। लेकिन जज्बा कम नहीं होने दिया। मैं खुद व मेरे साथी राजा रामचंद्र की जय बोलते हुए पाकिस्तान की सीमा में आठ किलोमीटर तक घुस गए थे। दो थानों की पुलिस हमें देखकर भाग गई थी। जो बचे थे, हमने उनको हमेशा के लिए सुला दिया था। लाहौर की बड़ी बड़ी फैक्ट्रियों की चिमनियां दूर से दिखाई देने लग गई थी। सबूत के तौर पर हमारे कई सैनिक रास्ते में लाहौर लिखे हुए मील के पत्थर तक उठा लाए थे। थानों से सामान ले आए थे। इसके बाद 71 का युद्ध लड़ा। इससे पहले चीन से हुए 62 के युद्ध में भी वीरता दिखाई। पाक के खिलाफ दोनों युद्ध लडऩे पर उनको सम्मानित भी किया गया।
राजस्थान के झुंझुनूं जिले के उदयपुरवाटी उपखंड के पोषाणा गांव निवासी नंद देव सिंह अब तक 78 बसंत देख चुके, लेकिन जज्बा व उत्साह अभी भी गजब का है। पोषाणा में एक साथ पांच शहीदों का स्मारक बनवाने में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। अब स्मारक की देखरेख करने के साथ युवाओं को देशभक्ति का पाठ भी पढ़ाते हैं। उनका एक पोता दौलतसिंह सेना में है, जबकि दो अग्निवीर की तैयारी कर रहे हैं।

 

 

वेतन कम, पेंशन ज्यादा


2 अक्टूबर 1961 को सेना में भर्ती हुए नंद देव ङ्क्षसह मैकेनाइज से 31 अक्टूबर 1989 को सूबेदार पद से रिटायर हुए। वे बताते हैं, भर्ती हुए तब उनका मासिक वेतन 47 रुपए 50 पैसे था। रिटायर के समय वेतन 1200 रुपए हो गया। अब पेंशन 42 हजार रुपए मासिक ले रहे हैं।


सीख
-पार्टियों से ऊपर देश को रखें।
-देश बहुत आगे बढ़ रहा है,अब फाइटर प्लेन तक भारत में बन रहे हैं। सकारात्मक सोच रखें।
-अनुशासन को सर्वोपरि रखें,अनुशासन से ही सेना है।

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