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साढे चार दशक से जाटलैंड में नहीं बन पाया कोई जाट विधायक

locationजींदPublished: Jan 05, 2019 05:26:00 pm

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Prateek

जिंद में पंजाबी व शहरी मतदाताओं के बावजूद भाजपा का खाता कभी नहीं खुला…

संजीव शर्मा की रिपोर्ट…

(चंडीगढ़,जिंद): हरियाणा की राजनीति भले ही जाटलैंड के नाम से प्रसिद्ध जींद से चलती है लेकिन यह जानकर हैरानी होगी कि पिछले साढे चार दशक में यहां से कोई भी जाट नेता विधायक नहीं बन पाया है। जींद विधानसभा क्षेत्र में शहरी मतदाताओं की संख्या अधिक है। जिनमें पंजाबी समुदाय के मतदाताओं की संख्या अधिक है। इसके बावजूद हरियाणा गठन से लेकर आजतक प्रदेश की सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी जींद विधानसभा में अपना खाता नहीं खोल पाई है। हालांकि वर्ष 1966 से पहले संयुक्त पंजाब के समय में जाट समुदाय के विधायक यहां का प्रतिनिधित्व करते रहे हैं।


वर्ष 1966 में हरियाणा का गठन होने के बाद 1967 व 1668 में महाजन समुदाय से संबंध रखने वाले बाबू दुयाकृष्ण जींद के विधायक बने। वहीं,चौधरी दल सिंह एक बार फिर 1972 में जींद से विधायक निर्वाचित हुए। लेकिन उनके बाद से काई भी जाट नेता इस सीट से चुनाव जीतकर विधानसभा का मुंह नहीं देख सका। 1977 में यह सीट मांगेराम गुप्ता ने आजाद उम्मीदवार के रुप में चुनाव लडकऱ जीती। वर्ष 2005 तक मांगेराम गुप्ता व बृजमोहन सिंगला में मुकाबला होता रहा। एक बार 1986 में बीसी समाज से संबंध रखने वाल परमानंद यहां से विधायक बने। 2009 व 2014 में यहां से पंजाबी समुदाय के डॉ.हरीचंद मिढा विधायक बने। उनके निधन के बाद ही अब इस सीट पर 28 जनवरी को उपचुनाव होने जा रहा है।


हरियाणा बनने के बाद से अब तक विधानसभा के लिए हुए 12 आम चुनावों में 6 चेहरे विधानसभा में पहुंचे हैं। इनमें मांगेराम गुप्ता 4 बार, दयाकृष्ण, बृजामोहन सिंगला व डॉ.हरीचंद मिढा दो-दो बार,जबकि चौधरी दलसिंह व परमानंद एक-एक बार विधायक निर्वाचित हुए। यहां अधिकतर चुनावों के दौरान मुख्य मुकाबला कांग्रेस और लोकदल के बीच होता रहा है। अब तक हुए 12 चुनाव में जींद से छह बार कांग्रेस, चार बार लोकदल, एक-एक बार हविपा व निर्दलीय प्रत्याशी विजयी हुए हैं।


आंकड़े बताते है कि 2014 के चुनाव को छोडकऱ भाजपा यहां कभी भी मुकाबले में नहीं रही। वर्ष 2014 के विधानसभा चुनाव में मोदी लहर के बावजूद भाजपा प्रत्याशी पूर्व सांसद सुरेद्र बरवाला इनेलो के डॉ.हरीचंद मिढ्ढा से करीब 2200 मतों से हारे थे। वर्ष 1991 में भाजपा के उम्मीदवार पंडित श्यामलाल ने करीब 8 हजार वोट हासिल किए थे। इस चुनाव में कांग्रेस के मांगेराम गुप्ता ने लोकदल के टेकराम कंडेला को करीब 18 हजार वोटों से मात दी थी। वर्ष 1996 में भाजपा का हविपा के साथ गठबंधन था,उस समय यह सीट हविपा के खाते में आई थी। वर्ष 2000 के चुनाव में भाजपा का सत्तासीन इनेलो से गठबंधन था। गठबंधन में जींद सीट भाजपा के खाते में आई तो भाजपा ने लाला रामेश्वर को अपना उम्मीदवार बनाया। तब गुलशन भारद्वाज इनेलो के बागी उम्मीदवार के रुप में मैदान में कूद पड़े। इस चुनाव में मांगेराम गुप्त ने गुलशन भारद्वाज को हराकर जीत हासिल की। लेकिन भाजपा उम्मीदवार चुनाव दोड़ से ही बाहर रहे।


2005 के चुनाव में भाजपा ने पिछड़ा वर्ग के नेता श्रीनिवास वर्मा को टिकट दी,जिन्हें करीब 12 हजार वोट मिले,लेकिन श्रीनिवास वर्मा भी भाजपा को चुनावी मुकाबले में नहीं ला सके। वर्ष 2009 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने स्वामी राघवानंद को टिकट दी,लेकिन हालात ऐसे बने कि स्वामी राघवांनद ने यह चुनाव बीच में ही छोड़ दिया।

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