जींद उपचुनाव के दौरान कांग्रेस पार्टी ने रणदीप सुरजेवाला को चुनाव मैदान में उतारकर पूरे चुनाव को राजनीतिक रूप से बेहद उंचाई पर पहुंचा दिया था। हालांकि पूरे चुनाव प्रचार के दौरान रणदीप लोगों को यह नहीं बता पाए थे कि वह विधायक होकर विधायक का चुनाव क्यों लड़ रहे हैं और उनके कैथल छोडऩे का कारण क्या है।
इसके बावजूद रणदीप ने जींद के लोगों को बांगर की चौधर का नारा देकर इस बात के साफ संकेत दिए थे कि वह अगर चुनाव जीत जाते हैं तो कांग्रेस में न केवल मुख्यमंत्री पद के लिए मजबूत दावेदार होंगे बल्कि उनके लिए चंडीगढ़ की राह भी आसान होगी। प्रचार के दौरान रणदीप द्वारा कैथल की अनदेखी कर जींद को तवज्जो दिए जाने से कैथल के मतदाताओं में भी रोष है।
जींद हारने के बाद हुड्डा खेमा जहां अंदरूनी रूप से सुरजेवाला के विरूद्ध लॉबिंग को तेज करते हुए अपना दावा मजबूत करेगा। दूसरी तरफ रणदीप सुरजेवाला दिल्ली दरबार में अपनी पकड़ को मजबूत रखने के उद्देश्य से इस हार का ठीकरा हुड्डा, किरण चौधरी व कुमारी सैलजा खेमे पर फोड़ सकते हैं। क्योंकि चुनाव प्रचार के दौरान नामांकन के बाद कभी कांग्रेस ने एकजुटता नहीं दिखाई और हुड्डा गुट ने सुरजेवाला के समर्थन में प्रचार के नाम पर केवल औपचारिकता ही पूरी की है।
इस चुनाव के बाद कांग्रेस पार्टी के समीकरण बेहद रोचक बनेंगे। एक तरफ हुड्डा खेमा कांग्रेस अध्यक्ष अशोक तंवर को हटवाने के लिए लॉबिंग कर रहा है तो दूसरी तरफ जींद उपचुनाव में केवल तंवर ही ऐसे नेता हैं जिन्होंने शुरू से लेकर अंत तक सुरजेवाला का साथ दिया है। ऐसे में तंवर को सुरजेवाला का साथ मिल सकता है। जिसके बल पर तंवर फिर से कुछ समय के लिए अपनी कुर्सी बचा सकते हैं।