प्रदेश के खनन उद्योग से जुड़े करीब 25 लाख खान मजदूर अपनी ही पहचान से वंचित है। राज्य सरकार ने चुनाव के समय अपने चुनावी घोषणा पत्र में प्रदेश के खान मजदूरों के कल्याण के लिए खान मजदूर कल्याण बोर्ड के गठन को प्राथमिकता दी थी, लेकिन सत्ता में आने के बाद सरकार खान मजदूरों के कल्याण व पीड़ा भूल गई। परिणामस्वरूप, दो वर्ष बाद भी कल्याण बोर्ड का गठन नहीं हो पाया। खान मजदूर न सिर्फ आजिविका का बल्कि राज्य के राजस्व का भी एक बहुत बड़ा हिस्सा है। इसके बावजूद खान मजदूरों के कल्याण व उत्थान पर अर्जित आय का नगण्य हिस्सा ही व्यय किया जाता है। इससे खान मजदूर बदहाली व दयनीय जीवन जीने को मजबूर है। पंजीकरण नहीं होने से खान मजदूर सरकारी कल्याणकारी योजनाओं का लाभ नहीं ले पाते है। ऐसे में अगर सरकार खान मजदूर कल्याण बोर्ड का गठन करती है तो ये वर्ग भी सरकारी योजनाओं का लाभ लेने का अधिकारी हो जाएगा।
—- बोर्ड गठन होने पर यह लाभ मिलेगा – बोर्ड बनने से मजदूर पंजीकृत होंगे, उन्हें भी अन्य मजदूरों को मिलने वाली योजनाओं के लाभ मिलेंगे। – खान अधिनियम 1952 में खान मजदूरों के कल्याण का प्रावधान है, वे मजदूरों को मिलेंगे।
– सरकार की ओर से बनाए गए डीएमएफटी फण्ड का लाभ मिलेगा। ——- मुख्यमंत्री, खान मंत्री तक दिए कई बार ज्ञापन खान मजदूरों की बोर्ड गठन की आशा को और मजबूत करने के उद्देश्य से खान मजदूर सुरक्षा अभियान ट्रस्ट (एमएलपीसी) की ओर से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत , खान मंत्री प्रमोद जैन भाया, श्रम मंत्री टीकाराम जूली, स्वास्थय मंत्री डॉ रघु शर्मा, राजस्व मंत्री हरीश चौधरी व सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री राजेन्द्र यादव को कई ज्ञापन सौंपे गए व खान मजदूर कल्याण बोर्ड के गठन की मांग की गई।
—– सरकार ने चुनावी घोषणा पत्र में खान मजदूर कल्याण बोर्ड के गठन को प्राथमिकता दी थी। मुख्यमंत्री, खान सहित सरकार के अन्य प्रमुख मंत्रिसों से बोर्ड गठन खान मजदूर वर्ग को राहत देने का आग्रह किया है।
डॉ राना सेनगुप्ता, प्रबंध न्यासी खान मजदूर सुरक्षा अभियान ट्रस्ट