घायल होने का प्रमुख कारण
बारिश के मौसम में नमभूमि पर दौडऩे में असमर्थ चिंकारे और काले हरिणों पर श्वान हमला करने मौत हो जाती है। तारबंदी में फंसने, सड़क दुर्घटना भी एक कारण है। माचिया जैविक उद्यान में पदस्थापित मात्र एक वन्यजीव चिकित्सक श्रवण सिंह राठौड़ को गोडावण विशेष प्रोजेक्ट के लिए जैसलमेर स्थानांतरित कर दिया गया।
वनविभाग में घायल वन्यजीवों का आंकड़ा
वर्ष—–घायल वन्यजीव
2016-2017—-1343 2017-2018—-1630
2018-2019—-1141 2019-2020—-2253
स्थाई पशु चिकित्सक को तरसता संभाग का वन्यजीव चिकित्सालय
वन्यजीवों को बचाने के लिए तीन साल पहले विशेष पायलट प्रोजेक्ट के तहत प्रत्येक पंचायत समिति स्तर पर करीब 17 रेस्क्यू वार्डों का निर्माण करवाया और प्राथमिक उपचार के लिए मेडिकल किट व वनकर्मियों के साथ-साथ वन्यजीव प्रेमी स्वयं सेवकों को प्रशिक्षण भी दिया गया, लेकिन वन विभाग के पास बजट की कमी के चलते अधिकांश वार्ड बंद हो चुके हैं अथवा दुर्दशा का शिकार हैं।
समस्या का समाधान नहीं
स्थाई चिकित्सकों एवं प्रशिक्षित पशुधन सहायकों के पद स्वीकृत करने के लिए संस्था से जुड़े पर्यावरणप्रेमी सदस्य प्रदर्शन धरना देते रहे हैं। परन्तु जिला वन्यजीव प्रभाग की संवेदनहीनता व विभागीय कार्ययोजना अभाव के कारण समस्या समाधान नहीं हो पा रहा है। पंचायतों में निर्मित रेस्क्यू वार्डों में पशु चिकित्सकों के सहयोग से चिकित्सा व्यवस्था होनी चाहिए। विभाग के पास पुराने वाहनों की मरम्मत और नए रेस्क्यू वाहन उपलब्ध कराने चाहिए।रामपाल भवाद, प्रदेशाध्यक्ष बिश्नोई टाईगर्स वन्य एवं पर्यावरण संस्था
एक साल पहले प्रधान मुख्य वन संरक्षक से लगा चुके हैं गुहार
जोधपुर के वन्यजीव चिकित्सालय में हर साल 15 सौ से अधिक गंभीर घायल वन्यजीव आने के बावजूद वेटरनरी कंपाउंडर कर्मचारी पद स्थापित नहीं होने और जोधपुर में घायल वन्यजीवों की बढ़ती संख्या को देखते हुए 2 पशु चिकित्सक और कंपाउंडर के पद एवं एक पशु चिकित्सक का पद राज्य सरकार के स्तर पर स्वीकृति जारी कराने के संबंध में जोधपुर के उप वन संरक्षक महेश चौधरी ने प्रदेश के प्रधान मुख्य वन संरक्षक, संभाग के मुख्य वन संरक्षक से लिखित में गुहार लगाई थी । लेकिन एक साल से अधिक समय बीतने के बावजूद कार्रवाई तो दूर जवाब तक नहीं मिला है। यहां तक माचिया जैविक उद्यान के वन्यजीव चिकित्सक को भी जैसलमेर भेज दिया गया।