scriptदिवाली दरबार: इतिहास की बहियों में अंकित है जोधपुर की दिवाली, राजा महाराजा यूं मनाते थे दीपों का पर्व | a glance on history of Jodhpur diwali of royal family | Patrika News

दिवाली दरबार: इतिहास की बहियों में अंकित है जोधपुर की दिवाली, राजा महाराजा यूं मनाते थे दीपों का पर्व

locationजोधपुरPublished: Oct 17, 2017 01:02:12 pm

Submitted by:

Nandkishor Sharma

इतिहास के झरोखे से एक नजर जोधपुर में लगने वाले दिवाली दरबार पर

history of Jodhpur diwali of royal family

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महाराजा मानसिंहजी के समय में दिवाली दरबार अधिकतर दौलतखाना चौक में लगता था लेकिन उनके समय के स्रोतों से जानकारी प्राप्त होती है कि पाँच वर्ष ऐसे रहे हैं। उनके शासन के दौरान जिनमें दिवाली दरबार ख्वाबगाह1 बिचला महल2 एवं मोती महल3 में लगाया गया है। वि.सं. 1893 से लेकर वि.सं. 1895 तक लगातार तीन वर्षों तक दिवाली दरबार बिचला महल में बनाया लगाया गया। संवत् 1861 में रंगसाला के सामने दिवाली दरबार लगाया गया। आइए पत्रिका डॉट कॉम की इस स्पेशल रिपोर्ट में एक नजर जोधपुर दिवाली दरबार पर… जानिए महल के किस कोने में होता था दिवाली सेलिब्रेशन और कहां होती थी आजिशबाजी…. साथ ही जानें कहां से जुटाई हमने ये जानकारी…
संवत् 1859 में महाराजा मानसिंह ने दिवाली ख्वाबगाह के झरोखे में जनाना के साथ बैठकर मनाई एवं आतिशबाजी का आनन्द लिया। इसके बारे में हमें स्पष्ट जानकारी हकीकत बही से प्राप्त होती है। काती वद 15 संवत् 1859 मु. गढ़ जोधपुर रात घड़ी सातेक आया श्रीजी साहब जाबता नै जनाना सहेत ख्वाबगाह रै झरोखे में पधार विराजिया नै नीचै सिणगार चौकी में आतसबाजी छुड़ाई सु घड़ेक छुटी।
दिवाली दरबार बिचला महल में


मिती काती वद 14 गुर संवत् 1895 मु. गढ़ जोधपुर। दीपमालका रौ दरबार दिन घड़ी अढ़ाई लार लारा बिचला म्हैल (महल) मै कनात रै ओले हुवौ सौ श्री निज सेवा ने श्रीजी रा मंदरा (मंदिर) रा दुपटा सैलीया तो श्री सदा जी कनात रै माह जाय श्रीजी साहबा रै बंदाया नै तिलक रा पाला दरजी मालै महल जाय निजर गुदराया नै मुतसदी खवास पासवान वगैर कित राक सारा नै मुजरो हुवो निजर निछरावल कीवी नै तिलक कितरा करै तो बिचला महल नै नैवा कीरा सारा रै दौलतखाना रा चौक मै हुवौ सैदांना सदामंद मुजब हुवा नै तायफ ा सदामंद माफ क हाजर था सु सूरजपोल हठै गाया दीपमालकारी रूसनाई री जलुस अवल हुई सोर रात रा सिणगांर चौकी कनै छूटो।
संदर्भ
1. हकीकत बही नम्बर 9,11, 12 वि.सं. 1881-89

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