यही कारण है कि वर्तमान में भी सर्वाधिक शादी समारोह अक्षय तृतीया पर ही होते हैं। अक्षय तृतीया पर परिवार के सभी भाइयों की एक साथ एक ही थाली में अक्षय कलेवा करने की परम्परा भी है। जिसके पीछे का लॉजिक परिवार को एक सूत्र में बांधे रखना है।
अभी भी कई परिवार ऐसे हैं, जहां सभी भाई एक साथ एक ही स्थान पर एकत्रित होकर एक साथ अक्षय कलेवा का भोजन करते हैं और पूरे दिन एक साथ व्यतीत कर अपने जीवन के अनुभवों काे साझा करते हैं। शहर के पुष्करणा ब्राह्मण समाज के व्यक्ति अक्षय तृतीया पर अब भी एक साथ एक ही स्थान पर भोजन करते हैं।
चार दिन है अक्षय कलेवा की परम्परा
फलोदी में अक्षय तृतीया का पर्व चार दिन मनाया जाता है। वैसाख मास की अमावस्या से तृतीया तक अक्षय कलेवे का भोजन ही बनता है। अमावस्या को मूंग, चावल, दही का रायता व फली-बडी की सब्जी का पकवान बनता है, वहीं प्रथमा व द्वितीया को मूंग-बाजरी का खीच व तृतीया को मूंग-गेहूं का खीच पकवान के तौर पर बनता है।
फलोदी में अक्षय तृतीया का पर्व चार दिन मनाया जाता है। वैसाख मास की अमावस्या से तृतीया तक अक्षय कलेवे का भोजन ही बनता है। अमावस्या को मूंग, चावल, दही का रायता व फली-बडी की सब्जी का पकवान बनता है, वहीं प्रथमा व द्वितीया को मूंग-बाजरी का खीच व तृतीया को मूंग-गेहूं का खीच पकवान के तौर पर बनता है।
इसके साथ दही का रायता, इमली का खट्टा का भोजन बनता है। खीच को दही के रायते व गाय के शुद्ध घी के साथ मिक्स करके भोजन के तौर पर ग्रहण करने की परम्परा रहीं है, लेकिन अब बदले परिदृश्य में कईं परिवारों ने गेहूं की रोटी और सब्जी के साथ मिठाई परोसने की परम्परा भी शुरू की है।
परिवार को एक सूत्र में पिरोती है अक्षय तृतीया अक्षय तृतीया का पर्व परिवार को एक सूत्र में बांधे रखने का पर्व है। इस दिन पूरा परिवार एक ही स्थल पर अक्षय कलेवा करते हैं और बुजूर्गों के साथ अपने अनुभव, रीति, नीति, व्यापार और आर्थिक हालातों पर चर्चा कर अपने अनुभव साझा करते हैं। जिसका लाभ उन्हें भविष्य संवारने में मिलता है।
- प्रकाश छंगाणी, राष्ट्रीय अध्यक्ष पुष्करणा समाज वर्तमान में आवश्यक है यह परम्परा पुरातनकाल में तो सभी भाई प्रतिदिन एक साथ बैठकर भोजन करते थे, लेकिन वर्तमान में टूट रहे परिवारों के बीच सामंजस्य बनाए रखने के लिए अक्षय तृतीया की परम्पराओं का निर्वहन बहुत आवश्यक हो गया है। इस पर्व की महत्ता का प्रचार हो तो परिवारों को टूटने से बचाया जा सकता है।
- घनश्याम थानवी, पूर्व मिस्टर राजस्थान व वरिष्ठ नागरिक परम्पराओं का नहीं हो रहा निर्वहन वर्तमान हालात में परिवार टूट रहे हैं, जिसका सबसे बड़ा कारण यह है कि अक्षय तृतीया पर कायम की गई परम्पराओं का निर्वहन नहीं हो रहा। पूर्व में कैसी भी परिस्थितियां रही हो, परिवार के सभी सदस्य एक साथ एक ही स्थान पर भोजन करते थे, लेकिन अब भाग-दौड़ वाले जीवन में कुछ ही परिवार बचे हैं जो इस परम्परा का निर्वहन कर रहे हैं।
- जयराम गज्जा, परम्पराओं के जानकार