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Akshay Tritiya 2022: हाईकोर्ट ने कहा, यह नहीं है बाल विवाह का अपराध

locationजोधपुरPublished: Apr 29, 2022 12:17:43 am

Submitted by:

Suresh Vyas

अबूझ सावा माने जाने वाली आखा तीज यानी Akshay Tritiya 2022 पर बड़ी संख्या में Child Marriage की आशंकाओं और इन पर रोक के प्रयास जारी है। इसी बीच Rajasthan High Court ने व्यवस्था दी है कि किसी बच्चे की सगाई को बाल विवाह का अपराध नहीं कहा जा सकता। बेटे की सगाई के बाद बाल विवाह के मामले में दो साल पहले फंसे एक सरकारी कर्मचारी को राहत देते हुए हाईकोर्ट ने एफआईआर निरस्त कर दी।

Akshay Tritiya 2022: हाईकोर्ट ने कहा, यह नहीं है बाल विवाह का अपराध

Akshay Tritiya 2022: हाईकोर्ट ने कहा, यह नहीं है बाल विवाह का अपराध

जोधपुर। समूचे मारवाड़ में शादियों के लिए अबूझ सावे का मुहुर्त माने जाने वाली आखा तीज यानी अक्षय तृतीया पर Child Marriages की आशंकाओं बीच Rajasthan High Court का एक महत्वपूर्ण फैसला आया है। हाईकोर्ट ने दो साल पहले बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 के मामले में फंसे एक सरकारी कर्मचारी के खिलाफ दर्ज प्राथमिक सूचना रिपोर्ट (FIR) रद्द करने का आदेश देते हुए व्यवस्था दी है कि बच्चे की सगाई अधिनियम में अपराध नहीं है। अधिनियम के तहत अपराध के लिए बाल विवाह का अनुबंध अनिवार्य शर्त है।
मुकदमे के चलते याची को न केवल तीन से चार दिन सलाखों के पीछे रहना पड़ा, बल्कि राजकीय सेवा से निलंबन और विभागीय जांच की आंच भी सहनी पड़ी।न्यायाधीश दिनेश मेहता की एकल पीठ में याचिकाकर्ता ओसियां निवासी अनोप सिंह की ओर से अधिवक्ता हरिसिंह राजपुरोहित ने कहा कि याची के खिलाफ 27 मई, 2020 को प्राथमिकी दर्ज की गई थी। उसके खिलाफ अधिनियम की धारा 11 और 15 के तहत कथित अपराध के लिए प्राथमिकी के बाद आगे की विधिक कार्यवाही की जा रही है। शिकायतकर्ता और जांच अधिकारी के अनुसार भी याचिकाकर्ता ने अपने बेटे की सगाई समारोह का आयोजन किया था। कोई शादी नहीं हुई थी। ऐसे में अधिनियम की धाराओं में प्राथमिकी दर्ज नहीं की जा सकती। इस मामले में याचिकाकर्ता को गिरफ्तार किया गया और 48 घंटे से अधिक समय तक सलाखों के पीछे रहने से राजकीय सेवा से निलंबित भी किया गया। उसके खिलाफ विभागीय जांच भी शुरू की गई।
सरकार की ओर से तर्क दिया गया कि सगाई समारोह का आयोजन बाल विवाह को बढ़ावा देने के बराबर है। एकल पीठ ने कहा कि रिकॉर्ड से स्पष्ट है कि याची अपने बेटे की सगाई समारोह करवा रहा था। जबकि अधिनियम के तहत अपराध के लिए बाल विवाह का अनुबंध अनिवार्य शर्त है। किसी भी मामले में एक बच्चे की सगाई अधिनियम में अपराध नहीं है। कोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 482 के तहत अंतर्निहित शक्ति का प्रयोग करते हुए प्राथमिकी निरस्त कर दी।
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