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जोधपुर

तीसरी बार सीएम का ताज पहनने वाले गहलोत के बारे में जानें ये दिलचस्प बातें, यूं राजनीति में बढ़े कदम

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5 years ago
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जोधपुर. अशोक गहलोत का कद आज बहुत बड़ा हो गया है। जब वे केवल अशोक गहलोत थे, तब भी बहुत कुछ थे। बचपन से लेकर अब तक उनके साथ रहे लोगों के जहन में आज भी गहलोत की वो शख्सियत और उनके संस्मरण ताजा है, जो आज के दौर में लोग सुनकर अचरज ही करते हैं।

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गहलोत के फिर से मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने की खबर शहर में आई तो ऐसे संस्मरण और प्रसंग उनके करीब रहे लोगों ने एक-दूसरे को सुनाने शुरू कर दिए।

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कभी दूर की कौड़ी माने जाने वाला टेलीफोन महामंदिर क्षेत्र में केवल अशोक गहलोत के घर ही हुआ करता था। यह फोन उनके पिता बाबू लक्ष्मणसिंह के नाम था। पूरे मोहल्ले के फोन उनके घर पर ही आते थे। इस मामले में गहलोत का सेवा भाव भी देखने लायक था। जब भी किसी का फोन आता, वे फट से पड़ौसी हो या कहीं दूर रहने वाला, उसे बुलाने दौड़ पड़ते।

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इसी सेवाभाव को आगे बढ़ाते हुए उनकी अध्यक्षता में महामंदिर विकास समिति बनी, जिसने महिलाओं के लिए सिलाई केन्द्र खोला और युवाओं व बुजुर्गों के लिए वाचनालय की सुविधा मुहैया कराई। इसी समिति के तत्वावधान में महामंदिर सहकारी समिति के चुनाव हुए तो गहलोत ने खुद चुनाव नहीं लड़ अपने साथियों को पूर्ण बहुमत से विजय दिलवाई।

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शहर की पानी की समस्या को वे नजदीक से देख चुके थे। सहकारिता आंदोलन काल के दौरान गहलोत ने पानी के संकट पर आंदोलन तक छेड़ा।

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स्कूली शिक्षा के दौरान छात्र राजनीति में सक्रिय हुए गहलोत ने नगर पालिका चुनाव में अपने पिता की दावेदारी के दौरान सहपाठियों के साथ चुनाव प्रचार का प्रारम्भिक अनुभव लिया।

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राजनीति से हटकर उन्होंने कुछ काम ऐसे भी किए, जो पुराने लोग ही जानते हैं। उन्होंने कुछ समय तक वकालत की तो पीपाड़ में खाद बीज की दुकान भी लगाई थी।

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वे तैराकी भी करते थे, लेकिन मगराज जी के टांके में मित्रों के साथ नहाते वक्त दुर्घटना होते-होते बची तो इन्होंने इससे किनारा कर लिया।

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गहलोत का राजनीतिक जीवन राज्य के अन्य नेताओं के मुकाबले कोई ज्यादा लम्बा नहीं है। छात्र राजनीति में आने से पहले उन्होंने ‘स्वयंसेवक’ (वॉलिन्टियर) के रूप में कई संगठनों के साथ मिलकर काम किया और राजनीति में आए तो सफलता जैसे उनसे दूर ही भागती रही।

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जोधपुर विश्वविद्यालय छात्र संघ के चुनाव में अपने प्रभावी व्यक्तित्व के बावजूद वे जीत हासिल नहीं कर सके, लेकिन देश में आपातकाल के बाद उनका सितारा ऐसा चमका कि लोग उन्हें आज भी ‘किस्मत का धनी’ मानते हैं।

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आपातकाल के बाद हुए आम चुनाव में अच्छे अच्छे नेताओं ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लडऩे से किनारा कर रखा था तो गहलोत जोधपुर संसदीय क्षेत्र से कांग्र्रेस प्रत्याशी बने और भारी मतों से जीतकर लोकसभा पंहुचे। इसके बाद तो उन्होंने जैसे पीछे मुडकऱ भी नहीं देखा।

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