सीमावर्ती बाड़मेर-जैसलमेर जिलों के मरूस्थलीय क्षेत्र के विकास को लेकर 2015 के बजट भाषण में सरकार की ओर से जगाई गई बड़ी आशा मरू विकास बोर्ड बजट घोषणा से बाहर ही नहीं आया। मरूस्थलीय जिलों के विकास के लिए नजीर बनने वाले इस बोर्ड को राजनीतिक गुणा-भाग लगाते हुए सरकार ने आगे नहीं बढ़ाकर बड़ी घोषणा पर अरुचि की रेत डाल दी।
थार के दोनों जिले दुरूह और पिछड़े हैं। इन जिलों में सड़क, पानी, बिजली, कृषि, पशुपालन, हस्तशिल्प, पर्यटन और अन्य विकास की बड़ी संभावनाएं हैं। इसके लिए मांग रही है कि विशेष दर्जा दिया जाए और विकास के लिए अलग से योजना बने। मुख्यमंत्री वसुंधराराजे ने 2015 के बजट भाषण में मरूविकास बोर्ड के गठन की घोषणा की। साथ ही यह भी तय किया था कि इसका मुख्यालय बाड़मेर-जैसलमेर में ही होगा।
क्या होना था-
– बाड़मेर जिले की 26 लाख और जैसलमेर जिले की 7 लाख की जनसंख्या के विकास की योजना – बाड़मेर जिले में 55 लाख और जैसलमेर जिले के 28 लाख पशुधन के लिए बननी थी बड़ी स्कीम
– सीमावर्ती क्षेत्र शिव, रामसर, गडरारोड, चौहटन, जैसलमेर में सड़क, बिजली, पानी की सुविधाओं का विस्तार
– बाड़मेर जिले की 26 लाख और जैसलमेर जिले की 7 लाख की जनसंख्या के विकास की योजना – बाड़मेर जिले में 55 लाख और जैसलमेर जिले के 28 लाख पशुधन के लिए बननी थी बड़ी स्कीम
– सीमावर्ती क्षेत्र शिव, रामसर, गडरारोड, चौहटन, जैसलमेर में सड़क, बिजली, पानी की सुविधाओं का विस्तार
– जैसलमेर में पर्यटन विकास को लेकर संबल और नए पर्यटन स्थलों का विकास
– पेयजल स्त्रोतों, नाडी-तालाब के संरक्षण को लेकर कार्य – जैसलमेर-बाड़मेर में हस्तशिल्प के बड़े उद्योग को बढ़ावा देना
– बाड़मेर-जैसलमेर की सांस्कृतिक विरासत कला संस्कृति को बढ़ावा
– पेयजल स्त्रोतों, नाडी-तालाब के संरक्षण को लेकर कार्य – जैसलमेर-बाड़मेर में हस्तशिल्प के बड़े उद्योग को बढ़ावा देना
– बाड़मेर-जैसलमेर की सांस्कृतिक विरासत कला संस्कृति को बढ़ावा
सरकार ने ही नहीं दिया ध्यान
राज्य सरकार ने बजट की इस घोषणा के बावजूद मरू विकास बोर्ड के गठन को लेकर दिलचस्पी ही नहीं ली। ना ही इस मुद्दों को स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने भी चर्चा में लाया। एेसे में कम राजनीतिक दबाव के चलते मामला फाइलों में ही दफन हो गया।
राज्य सरकार ने बजट की इस घोषणा के बावजूद मरू विकास बोर्ड के गठन को लेकर दिलचस्पी ही नहीं ली। ना ही इस मुद्दों को स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने भी चर्चा में लाया। एेसे में कम राजनीतिक दबाव के चलते मामला फाइलों में ही दफन हो गया।
सरकार ही भूल गई सरकार ही जब मरू विकास बोर्ड को भूल गई है तो फिर घोषणा करने की कहां जरूरत थी? मरू विकास बोर्ड का गठन दोनों जिलों की 33 लाख की आबादी के लिए बड़ा संबल होता। पांच साल में मरू विकास बोर्ड अस्तित्व में आता तो विकास जरूर होता।
– बलराम प्रजापत, पूर्व नगरपालिका अध्यक्ष बाड़मेर