इस कार्य में पूरी शिद्दत से जुटे एम्स व मेडिकल कॉलेज दोनों में देहदान के काउंसलर मनोज मेहता कहते हैं कि शुरू में तो लोगों को समझाने में काफी दिक्कतें आती थी, लेकिन अब लोग खुद आगे बढकर देहदान को महत्व दे रहे हैं। यह बदलाव अच्छा संकेत है। मेहता यह भी बताते हैं कि यदि कोई देहदान का संकल्प पत्र भरता है तो परिवार व समाज को प्रेरणा मिलती हैं, लेकिन किसी ने देहदान का संकल्प पत्र नहीं भरा है तो भी पारिवारिक सहमति से उसका देहदान किया जा सकता है।
देहदान में उम्र कोई बाधा नहीं होती। इसी माह छह जून को जहां तीन साल की एक छोटी बच्ची का उनके परिजनों ने देहदान कराया, वहीं 13 अप्रेल 2018 को 95 वर्षीय एक व्यक्ति का एम्स में देहदान हुआ।
राजस्थान पत्रिका ने जनवरी 2013 में ‘पत्रिका पहल: देहदान करो, हो जाओ अमर’ शीर्षक से अभियान चलाया था। इसके बाद जोधपुर शहर में देहदान का सिलसिला लगातार बढ़ता गया। वर्ष 2004 से 2012 तक यानी कुल आठ साल में 16 देहदान हुए थे, वहीं पिछले वर्ष 2018 में जोधपुर के 42 लोगों ने देहदान की अलख जगाई। इस वर्ष अब तक एम्स व मेडिकल कॉलेज में कुल 23 देहदान हो चुके हैं।