बोयल गांव में आज भी हर्षवर्धन काल के अवशेष मौजूद हैं तथा यहां मिले सिक्कों पर भी पानी की लहरें अंकित हैं। गांव में जल संरक्षण के लिए सैकड़ों साल पुराना एक एनिकट भी बना हुआ है। जिसकी नींवों में मिट्टी की विशाल ईंटें निकली थी। एनिकट की खुदाई में करीब एक-डेढ़ दशक पुराने मिट्टी के बर्तन तथा एक हजार लीटर पानी क्षमता वाले विशाल घड़े मिले थे।
बुजुर्ग बताते हैं कि बोयल में जितने तालाब, नाडे-नाडियां हैं उतने मारवाड़ के एक अकेले गांव में कहीं नहीं हैं। नरेगा के दौरान इन तालाबों की खुदाई हो जाने से तालाबों की कायापलट हो गई है। बारिश के बाद इनमें इतना पानी संरक्षित हो गया है कि अगली बारिश तक भी खत्म नहीं हो पाएगा। इन तालाबों पर प्रतिवर्ष प्रवासी पक्षी कुरजां भी अपने समूह में डेरा डालती हैं।
यहां तालाबों के नाम हैं बोदेलाव, तोडेलाव, हाडेलाव, रड़लाई, पतालियानाडा, ढण्ड, भियासनी, तेलडिय़ा, रियानाडा, सोनारिया, कुम्हारिया, गिड़ाई, डाबला, जयसागर, हिंगाणिया, कमेडिय़ा नाडा, बेकलेनाडा, इंदियानाडा, गलवाड़ा नाडा, पीपलीनाडा, देवलीनाडा, गोगेलाई नाडा, पचायानाडा, कांकरियानाडा, भेराबानाडा, राइको का गुचिया, जियाबा का नाडा, हाथीनाडा, छतरीनाडा, खाडिय़ानाडा, समदियानाडा के अलावा दर्जनों नाडे-तालाब सामाजिक आधार पर हैं।
– जयसिंह, पूर्व सरपंच
पीढिय़ों से हमारे पूर्वजों ने हमें यही शिक्षा दी कि गांव में तालाब, नाडे और पोखर हमेशा पानी से भरे रहेंगे तो गांव में खुशहाली और संपन्नता बनी रहेगी। यही कारण है कि आज हमारे बोयल गांव में दर्जनों तालाब खुदे हुए हैं। इस बार बहुत अच्छी बारिश हुई है और सभी तालाब लबालब भर चुके हैं।
– सुखराम बोयल, ग्रामीण