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जोधपुर के बोयल गांव से सीखें जल संरक्षण का महत्व, प्रत्येक समाज के लोगों ने यहां बनवा रखे हैं 60 तालाब

locationजोधपुरPublished: Aug 25, 2019 11:18:54 am

Submitted by:

Harshwardhan bhati

गांव के सबसे बड़े चार तालाबों का कैचमेंट यानी जलभराव क्षेत्र 900 बीघा से अधिक का है। इन चार तालाबों बोदेलाव, ताडेलाव, हाडेलाव तथा रड़लाई के अलावा छप्पन ऐसे तालाब हैं, जिनके नाम सामाजिक आधार पर रखे हुए हैं। इस गांव की आबादी के लिहाज से प्रत्येक समाज के लोगों ने यहां तालाब खुदवाए थे।

boyal village of jodhpur gives message of water conservation

जोधपुर के बोयल गांव से सीखें जल संरक्षण का महत्व, प्रत्येक समाज के लोगों ने यहां बनवा रखे हैं 60 तालाब

कल्याणसिंह राजपुरोहित/बिलाड़ा/जोधपुर. जल संरक्षण का महत्व हमारे बुजुर्गों ने सालों पहले ही समझ लिया था। जोधपुर जिले के बिलाड़ा तहसील के राजस्व गांव बोयल में कुछ ऐसा ही नायाब उदाहरण देखने को मिलता है। यहां बुजुर्गों ने खेत का पानी खेत में और गांव का पानी गांव में की तर्ज पर इस छोटे से गांव में सालों पहले 60 तालाब, नाडे-नाडियां तथा एनिकट बनवाए थे। पूर्व सरपंच जयसिंह बताते हैं कि गांव में 11 सौ बीघा जमीन गोचर के लिए है। गांव के सबसे बड़े चार तालाबों का कैचमेंट यानी जलभराव क्षेत्र 900 बीघा से अधिक का है। इन चार तालाबों बोदेलाव, ताडेलाव, हाडेलाव तथा रड़लाई के अलावा छप्पन ऐसे तालाब हैं, जिनके नाम सामाजिक आधार पर रखे हुए हैं। इस गांव की आबादी के लिहाज से प्रत्येक समाज के लोगों ने यहां तालाब खुदवाए थे।
यहां मिले थे जल संरक्षण वाले पुरातत्व अवशेष
बोयल गांव में आज भी हर्षवर्धन काल के अवशेष मौजूद हैं तथा यहां मिले सिक्कों पर भी पानी की लहरें अंकित हैं। गांव में जल संरक्षण के लिए सैकड़ों साल पुराना एक एनिकट भी बना हुआ है। जिसकी नींवों में मिट्टी की विशाल ईंटें निकली थी। एनिकट की खुदाई में करीब एक-डेढ़ दशक पुराने मिट्टी के बर्तन तथा एक हजार लीटर पानी क्षमता वाले विशाल घड़े मिले थे।
तालाबों की हुई कायापलट
बुजुर्ग बताते हैं कि बोयल में जितने तालाब, नाडे-नाडियां हैं उतने मारवाड़ के एक अकेले गांव में कहीं नहीं हैं। नरेगा के दौरान इन तालाबों की खुदाई हो जाने से तालाबों की कायापलट हो गई है। बारिश के बाद इनमें इतना पानी संरक्षित हो गया है कि अगली बारिश तक भी खत्म नहीं हो पाएगा। इन तालाबों पर प्रतिवर्ष प्रवासी पक्षी कुरजां भी अपने समूह में डेरा डालती हैं।
समाज के आधार पर तालाबों के नाम
यहां तालाबों के नाम हैं बोदेलाव, तोडेलाव, हाडेलाव, रड़लाई, पतालियानाडा, ढण्ड, भियासनी, तेलडिय़ा, रियानाडा, सोनारिया, कुम्हारिया, गिड़ाई, डाबला, जयसागर, हिंगाणिया, कमेडिय़ा नाडा, बेकलेनाडा, इंदियानाडा, गलवाड़ा नाडा, पीपलीनाडा, देवलीनाडा, गोगेलाई नाडा, पचायानाडा, कांकरियानाडा, भेराबानाडा, राइको का गुचिया, जियाबा का नाडा, हाथीनाडा, छतरीनाडा, खाडिय़ानाडा, समदियानाडा के अलावा दर्जनों नाडे-तालाब सामाजिक आधार पर हैं।
पूर्वजों से मिली सीख

यहां के लोगों को शुरू से ही जल संग्रहण की सीख उनके पूर्वजों से मिली है, क्योंकि मारवाड़ के लोगों ने अनेक बार अकाल की पीड़ा भोगी है। सभी 36 कौम के लोगों से आग्रह किया था कि सभी अपने-अपने 11 तालाब बनाएं। इससे अच्छी बारिश होने पर हमारे कुओं का जलस्तर भी ऊपर बना रहता है।
– जयसिंह, पूर्व सरपंच
पानी से ही खुशहाली
पीढिय़ों से हमारे पूर्वजों ने हमें यही शिक्षा दी कि गांव में तालाब, नाडे और पोखर हमेशा पानी से भरे रहेंगे तो गांव में खुशहाली और संपन्नता बनी रहेगी। यही कारण है कि आज हमारे बोयल गांव में दर्जनों तालाब खुदे हुए हैं। इस बार बहुत अच्छी बारिश हुई है और सभी तालाब लबालब भर चुके हैं।
– सुखराम बोयल, ग्रामीण
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