पांच साल बाद राज्य सरकार ने हाल ही में राज्य के कई जिलों में बजरी खनन के लिए लीज जारी कर बतौर राजस्व करोड़ों की आय तो कर ली, लेकिन गांवों में लीज होल्डर्स व ग्रामीणों में टकराव के हालात बनने लग गए हैं। बजरी के अवैध खनन के चलते जोधपुर जिले में 15 सितम्बर को एक युवक की हत्या तक कर दी गई थी। इसी मंगलवार को खारी कला गांव में लीज होल्डर्स व ग्रामीणों में चल रहा विवाद ने बेहद उग्र रूप ले लिया। गुस्साए ग्रामीणों ने ठेकेदार के कैम्प व गाडि़यों को फूंक डाला। मारपीट व हमले से चार जनें घायल भी हुए और कुल सात वाहन जलकर स्वाह हो गए। बजरी खनन पर रोक लगने के बावजूद खनिज विभाग, पुलिस और राजनेताओं का संरक्षण मिलने से बजरी माफिया धड़ल्ले से खनन करता रहा। इतना ही नहीं, प्रदेश में अवैध बजरी खननकर्ता संगठित हो गए। बजरी खनन और परिवहन की दरें यही लोग तय करते हैं। जिसकी बदौलत मन माफिक दरों पर बजरी बेचने लग गए।लीज जारी होने के बाद उम्मीद जगी कि आमजन को बजरी उचित दरों पर मिलने लगेगी। इसके बावजूद अभी भी हालात जस के तस हैं। आम आदमी घर बनाने के सपने को पूरा करने के लिए महंगी दरों पर बजरी खरीदने को मजबूर है।
कोर्ट ने जिन उद्देश्यों से बजरी के खनन पर पूरी तरह रोक लगाई थी वो तो पूरे नहीं हुए, लेकिन अवैध खनन की वजह से गांव में न सिर्फ नदियों के आस-पास बल्कि खेत व सरकारी जमीनों में बड़े-बड़े गड्ढ़े बन गए। इसके जिम्मेदार कोई और नहीं सरकार है। जहां बजरी का अवैध खनन होता है वहां कांस्टेबल से लेकर एसएचओ तक की पोस्टिंग के कारोबार को कौन नहीं जानता है। गांवों के आस-पास अंधेरा होते ही जेसीबी मशीनों की आवाज रातभर गूंजती रहती है। बजरी से भरे डम्पर बेतहाशा रफ्तार में दौड़ते हैं, पर कानून के रखवालों को यह दिखाई नहीं देते हैं। तभी तो खारी कला गांव जैसी घटनाएं अंजाम लेती हैं।यही नहीं, सरपट दौड़ते बजरी से भरे वाहन दुर्घटनाओं का सबब बन चुके हैं। सड़कें गड्डों में बदल गईं हैं। जगह-जगह से उधड़ चुकी हैं। अभी भी वक्त रहते सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिए। ईमानदार अफसरों को नियुक्त करना चाहिए।अन्यथा परिणाम गंभीर होंगे। अवैध बजरी माफिया व लीज होल्डर्स में गैंगवार की आहट साफ सुनाई दे रही है। यही नहीं, सरकार को बजरी लीज जारी करने से पहले पंचायतों को विश्वास में लेना चाहिए। ताकि ग्रामीणों व लीज होल्डर्स में समन्वय रहे। अगर सरकार ने फिर सुस्ती दिखाई और माफियाओं पर लगाम नहीं लगाई गई तो शराब की रेड पार्टियों की तरह यह भी आतंक का पर्याय बन जाएंगे। यह अपनी अवैध गश्ती दल बना चुके हैं। जो इनके बजरी के माल वाहकों व डम्परों के साथ चलते हैं। वक्त रहते सरकार ने इन पर कार्रवाई नहीं की तो राजस्थान में बजरी माफियाओं से करहाएगा।
कोर्ट ने जिन उद्देश्यों से बजरी के खनन पर पूरी तरह रोक लगाई थी वो तो पूरे नहीं हुए, लेकिन अवैध खनन की वजह से गांव में न सिर्फ नदियों के आस-पास बल्कि खेत व सरकारी जमीनों में बड़े-बड़े गड्ढ़े बन गए। इसके जिम्मेदार कोई और नहीं सरकार है। जहां बजरी का अवैध खनन होता है वहां कांस्टेबल से लेकर एसएचओ तक की पोस्टिंग के कारोबार को कौन नहीं जानता है। गांवों के आस-पास अंधेरा होते ही जेसीबी मशीनों की आवाज रातभर गूंजती रहती है। बजरी से भरे डम्पर बेतहाशा रफ्तार में दौड़ते हैं, पर कानून के रखवालों को यह दिखाई नहीं देते हैं। तभी तो खारी कला गांव जैसी घटनाएं अंजाम लेती हैं।यही नहीं, सरपट दौड़ते बजरी से भरे वाहन दुर्घटनाओं का सबब बन चुके हैं। सड़कें गड्डों में बदल गईं हैं। जगह-जगह से उधड़ चुकी हैं। अभी भी वक्त रहते सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिए। ईमानदार अफसरों को नियुक्त करना चाहिए।अन्यथा परिणाम गंभीर होंगे। अवैध बजरी माफिया व लीज होल्डर्स में गैंगवार की आहट साफ सुनाई दे रही है। यही नहीं, सरकार को बजरी लीज जारी करने से पहले पंचायतों को विश्वास में लेना चाहिए। ताकि ग्रामीणों व लीज होल्डर्स में समन्वय रहे। अगर सरकार ने फिर सुस्ती दिखाई और माफियाओं पर लगाम नहीं लगाई गई तो शराब की रेड पार्टियों की तरह यह भी आतंक का पर्याय बन जाएंगे। यह अपनी अवैध गश्ती दल बना चुके हैं। जो इनके बजरी के माल वाहकों व डम्परों के साथ चलते हैं। वक्त रहते सरकार ने इन पर कार्रवाई नहीं की तो राजस्थान में बजरी माफियाओं से करहाएगा।