जोधपुर

ये कैसी स्वतंत्रता, घर में भी सुरक्षित नहीं महिलाएं और बच्चे

-ढाणी में महिलाओं पर लाठियों व सरियों से हमला प्रकरण -अपराधियों में नहीं कानून का डर

जोधपुरJun 25, 2020 / 06:46 pm

जय कुमार भाटी

ये कैसी स्वतंत्रता, घर में भी सुरक्षित नहीं महिलाएं और बच्चे

सुरेश व्यास/जोधपुर. जोधपुर के ओसियां उपखंड के एकलखोरी गांव की एक ढाणी में महिलाओं पर लाठियों व सरियों से हमले की तस्वीरों ने यह सोचने को मजबूर कर दिया है कि क्या हम आज भी पाशविक युग में जी रहे हैं? क्या आजादी के सत्तर साल बाद भी देश में गुंडाराज है ? ये कैसी आजादी है, जहां महिलाएं और बच्चे घरों में भी सुरक्षित नहीं है? आपसी पारिवारिक रंजिश को लेकर हुए हमले की ये तस्वीरें जाहिर कर रही है कि अपराधियों में कानून का डर तो शायद रहा ही नहीं। दो गाडिय़ों में भरकर आए दर्जनभर हमलावर निहत्थी महिलाओं व बच्चों को बर्बरतापूर्वक पीटने के बाद घर के बाहर खड़े चार पहिया वाहन को आग के हवाले करके भाग जाएं और पुलिस चौबीस घंटे बाद ही खाली हाथ ही रहे तो समझा जा सकता है कि गांवों में पुलिस तंत्र की स्थिति कैसी है।
कहने को भले ही ये आपसी रंजिश में हुआ झगड़ा था, लेकिन तस्वीरें और वीडियो देखकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। बिना किसी भय के हमलावरों ने दिनदहाड़े खूनी खेल खेला। दहशत फैलाई। इतना ही नहीं, चौबीस घंटे में पुलिस हमलावरों का सुराग नहीं लगा पाई और आरोपियों ने घटना के दूसरे दिन ऑडियो मैसेज वायरल कर पीडि़त परिवार के साथ गांव के लोगों को भी धमकी दे डाली। खुले आम ऐलान किया गया कि अभी तो बदला और लेंगे।
हम आजाद हिंदुस्तान में जी रहे हैं। संविधान ने सभी को सम्मान से जीने का अधिकार दिया है और कानून का पालन करवाने वाली पुलिस जैसी एजेंसियों का ये दायित्व है कि वे आम आदमी की सुरक्षा करें। मगर, विडम्बना है कि गांवों में आए दिन इस तरह की वारदातें होती होंगी और लोग मारे डर के रिपोर्ट भी नहीं करवा पाते होंगे। पुलिस थाने की देहरी चढऩे की आज भी गांवों ही क्यों कस्बों और शहरों में भी हिम्मत आसानी से नहीं होती। गांवों की स्थिति तो और भी खराब है। एक तो पुलिस थाने कई किलीमोटर दूर हैं और कोई वहां पहुंच भी जाए तो पुलिस कैसी सुनवाई करती होगी, अंदाज लगाया जा सकता है।
पुलिस का ध्येय वाक्य भले ही ‘अपराधियों में भय, आमजन में विश्वास’ हो, लेकिन हकीकत यह है कि आम आदमी आज भी पुलिस की देहरी चढऩे से डरता है। पुलिस के आम आदमी के साथ दोस्ताना सम्बन्ध कभी नहीं रहे। कहने को सरकार ने प्रत्येक थाना क्षेत्र में कम्युनिटी लाइजन ग्रुप (सीएलजी) बना रखे हैं, लेकिन न लाइजन पुलिस रख पाती है और न ही इसमें शामिल लोग। हां, राजनीतिक कार्यकर्ता या कोई रसूखदार जरूर सीएलजी के नाम पर पुलिस से नजदीकियां बढ़ा लेता है। ये स्थिति ठीक नहीं है।
पुलिस को अपने ध्येय वाक्य पर पूरा उतरने के लिए लोगों का विश्वास जीतना होगा, तभी वह अपराधियों में भी भय का माहौल पैदा कर पाएगी। वरना आपराधिक गिरोह के लोगों के साथ पुलिस की कई बार सामने आने वाली गलबहियों की तस्वीर तो अपराधियों को बेखौफ और आम आदमी को पुलिस के प्रति अविश्वासी ही बनाएगी। आखिर हम एक आजाद मुल्क के नागिरक हैं और एकलखोरी जैसी घटनाएं सोचने पर मजबूर करती हैं कि क्या आज भी हम आजाद हैं?

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