विक्रम संवत 1802 का एक 8.5 मीटर लंबा एवं 30 सेमी चौड़ा खरड़ानुमा ( स्क्रॉल) सचित्र चातुर्मास निमंत्रण पत्र है जिसमें भवन, हाथी, घोड़े, जैन साधु, बाजार, माता त्रिशला के 14 स्वप्न, मेले का दृश्य और श्रीनाथ मंदिर का सुंदर चित्रांकन है। मेवाड़ चित्रशैली के निमंत्रण पत्र को विनयसागर ने लाशुनाक्य नगर में चातुर्मास आराधाना के लिए कल्याण सूरि को प्रेषित किया था। इसी तरह जोधपुर के जैन संगठन की ओर से विक्रम संवत 1892 को सूरत में विराजित विजयदेव सूरि को प्रेषित चातुर्मास निमंत्रण में जोधपुर नगर का सांस्कृतिक चित्रण किया गया। राजा मानसिंह के शासन का उल्लेख भी है। विक्रम संवत 1880 में मेड़ता के शिवचंद ने गुजरात पालनपुर में विराजित मुनि विजेन्द्र सूरि को चौमासा करने के लिए आमंत्रण पत्र में सचित्र वर्णन किया था। चौमासा विज्ञप्ति पत्रों में सन 1942 बड़ौदा ग्रंथमाला से प्रकाशित एनसिएन्ट विज्ञप्ति पत्र में एक ऐसा भी संदर्भ मिलता है जिसमें अकबर के समकालीन चितेरे शालिवाहन की ओर से जहांगीर के फरमान के आंखों देखा चित्रण किया गया है। इसमें जैन चातुर्मास के महत्वपूर्ण पर्युषण पर्व पर पशुओं की हत्या पर प्रतिबंध लगाने का वर्णन चित्रित है।
भंवर लाल मेहरा, निदेशक राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर
जैन मुनियों यतियों अर्थात साधु समाज को नगर के समृद्ध लोगों की ओर से चातुर्मास व्यतीत करने के लिए जो निमंत्रण पत्र तैयार कर प्रेषित किए जाते थे वे विज्ञप्ति पत्र कहलाते हैं । दो प्रकार के विज्ञप्ति पत्र में एक खरड़ानुमा लिखे जाते थे। पत्र के मुख्य भाग पर विभिन्न चित्रांकन में चातुर्मास बिताने के लिए आचार्य से प्रार्थना और अच्छे कार्यों का वर्णन आदि का भी वर्णन मिलता है।
डॉ कमल किशोर सांखला (वरिष्ठ अनुसंधान अधिकारी) राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर