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एक्सक्लूसिव…मां की कोख में लड़ेगा गर्भस्थ शिशु बीमारी से जंग

locationजोधपुरPublished: Jan 26, 2018 10:51:16 am

Submitted by:

Devendra Bhati

– ‘सिस्टी फाइब्रोसिसÓ जैसी बीमारी से प्रभावित जीन की कोख में करेंगे पहचान- देश के चार संस्थान बीमारी के आनुवंशिक कारणों पर करेंगे अध्ययन

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देवेन्द्र भाटी
बासनी (जोधपुर). अब जन्म से पहले मां की कोख में गर्भस्थ शिशु आनुवांशिक बीमारी ‘सिस्टी फाइब्रोसिसÓ से जंग लड़ेगा। इसमें चिकित्सक बीमारी से प्रभावित जीन को जन्म से पहले शिशु को पेट में देखकर उसकी पहचान करेंगे।
इस बीमारी के 2 हजार प्रभावित जीन होते हैं। इनमें से भारत में अब तक 29 कॉमन जीन की पहचान हुई है। अन्य प्रभावित जीन की पहचान करने के लिए एम्स जोधपुर , पीजीआई चंडीगढ, एम्स दिल्ली, संजय गांधी पीजीआई लखनऊ सिविल हॉस्पीटल के शिशु रोग विशेषज्ञों की टीम इस बीमारी पर आनुवंशिक अध्ययन करेगी। अध्ययन में इस बीमारी से पीडि़त बच्चे के अगले भाई या बहन में इसी बीमारी की पहचान के लिए उसके जन्म से पहले मां के पेट में गर्भस्थ शिशु का रक्त व पानी का नमूना लेकर जांच की जाएगी। इसमें एम्स दिल्ली में सिस्टी फाइब्रोसिस से प्रभावित जीन की पहचान करेंगे। इससे मरीज के परिवार के दूसरे सदस्यों में भी प्रभावित जीन की पहचान करने की सुविधा मिलेगी। इस प्रोजेक्ट हो हरी झंडी मिलने के बाद कोख में प्रभावित जीन की पहचान होने पर गर्भस्थ शिशु को जन्म देने या नहीं देने का निर्णय पति-पत्नी के पास रहेगा। एम्स जोधपुर में शिशु रोग विभाग में पिछले एक साल में जोधपुर के 2, नागौर के 2, बाड़मेर से 1, चूरू से 1 मरीज सहित अब तक 10 मरीज सामने आए हैं।


भारत में टूटा भ्रम

‘सिस्टी फाइब्रोसिसÓ ब्रिटेन और अमरीका में छोटे बच्चों को होने वाली आनुवांशिक बीमारी है। 20 वीं सदी की शुरूआत में जेनेटिक कारण खाड़ी देशों से फैलते हुए अफगानिस्तान और पाकिस्तान के सिंध प्रांत में आ पहुंचा। जहां एक ही गौत्र के रिश्तेदारों में आपस में शादियां होने से इसके जीन डिफेक्टिव होते हैं। उसके बाद यह उनकी संतानों में बीमारी होती है लेकिन हालिया कुछ सालों में भारत के उत्तर और दक्षिण के राज्यों में इस बीमारी के मरीज पाए हैं। इससे यह भ्रम टूट गया कि यह रिश्तेदारों से शादियां करने से होती है।
क्या है सिस्टी फाइब्रोसिस

पीडियाट्रिक परमालॉजिस्ट डॉ. प्रवीण कुमार ने बताया कि इसके मरीज को पसीना ज्यादा निकलता है। इससे शरीर में नमक (सोडियम) और पानी की कमी हो जाती है। मां अपने बच्चे को दुलारते समय उसे चूमती है तो उसकी स्किन से नमकीन जैसा स्वाद आता है। इससे बीमारी की पहचान होती है। इसके अलावा शरीर में पाचन क्रिया भी ठीक नहीं होती है। जन्म के बाद भी इस बीमारी का इलाज किया जा सकता है। इसमें अगर पति पत्नी दोनों में अगर 1-1 जीन प्रभावित है तो उनकी संतान को 25 प्रतिशत बीमारी की संभावना होती है।
हरी झंडी मिलते ही स्टडी शुरू

इस रेयर बीमारी से जीतने के लिए बहुसांख्यिकीय आनुवंशिक अध्ययन किया जाएगा। इस प्रोजेक्ट को जल्द ही केंद्र सरकार की हरी झंडी मिलने वाली है। वर्तमान में प्रभावित जीन की पहचान अस्थाई तौर पर सीडीएफडी हैदराबाद से करा रहे हैं।
– डॉ. कुलदीप सिंह, डीन (एकेडमिक), हैड, शिशु रोग विभाग, एम्स।
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