जापानी इंसफलायटिस नहीं, अन्य इंसफलायटिस का हमला
उत्तरप्रदेश और बिहार में कई बच्चों को बीमार कर चुके जापानी इंफेलाइटिस का जोधपुर में बोलबाला नहीं है। विशेषज्ञ बताते हैं कि बामुश्किल एक-दो रोगी सालाना आते हैं। इस बीमारी के रोगी मिल भी जाए तो यहां डाइग्नोसिस नहीं है। विशेषज्ञों की मानें तो इस बीमारी में केवल शिशु मरीज को संदिग्ध मान चिकित्सक इलाज करते हैं। वायरस की डाइग्नोसिस के लिए जांच रिपोर्ट दिल्ली व मुंबई जैसे महानगरों की लैब में भेजी जाती है। इसमें जोधपुर में चिकित्सक सर्पोटिव इलाज में बुखार, ताणे और दिमाग के प्रेशर को नियंत्रण में करते हैं। हालांकि उत्तरप्रदेश व बिहार में इसके लिए विशेष टीका लगाया जाता है। इस बीमारी के जोधपुर में मथुरादास माथुर जनाना विंग और उम्मेद अस्पताल में २०१५ में १५८ और २०१६ में १२८ मामले सामने आए। इनमें जापानी इंसफलायटिस के मरीज नहीं थे।
उत्तरप्रदेश और बिहार में कई बच्चों को बीमार कर चुके जापानी इंफेलाइटिस का जोधपुर में बोलबाला नहीं है। विशेषज्ञ बताते हैं कि बामुश्किल एक-दो रोगी सालाना आते हैं। इस बीमारी के रोगी मिल भी जाए तो यहां डाइग्नोसिस नहीं है। विशेषज्ञों की मानें तो इस बीमारी में केवल शिशु मरीज को संदिग्ध मान चिकित्सक इलाज करते हैं। वायरस की डाइग्नोसिस के लिए जांच रिपोर्ट दिल्ली व मुंबई जैसे महानगरों की लैब में भेजी जाती है। इसमें जोधपुर में चिकित्सक सर्पोटिव इलाज में बुखार, ताणे और दिमाग के प्रेशर को नियंत्रण में करते हैं। हालांकि उत्तरप्रदेश व बिहार में इसके लिए विशेष टीका लगाया जाता है। इस बीमारी के जोधपुर में मथुरादास माथुर जनाना विंग और उम्मेद अस्पताल में २०१५ में १५८ और २०१६ में १२८ मामले सामने आए। इनमें जापानी इंसफलायटिस के मरीज नहीं थे।
क्या है इंसफलायटिस इस बीमारी का वायरस सामान्यत दिमाग पर अटैक करता है। इस वायरस के कई प्रकार हंै। इनमें पोलियो इंसफलायटिस सहित अनेक बीमारियों के नाम शामिल हैं। मैनेनजाइटिस के मामले
जोधपुर में बच्चों के लिए घातक मेनेनजाइटिस की बीमारी जोधपुर में है। इस बीमारी के करीब जोधपुर में २०१५ में २१४ मामले और २०१६ से अब तक १९६ रोगी सामने आए हैं, जबकि इस बीमारी एंचफ्लूएंजा का टीका पेंटावेलेंट टीके साथ सरकार की ओर से नि:शुल्क लगाया जाता है। शेष इसके दो अन्य प्रकार नियमोफोक्स, मेनिंगोफोक्स के निजी में लगाए जाते है। हालांकि बीमारियों के प्रति जागरुक लोग ये टीके निजी अस्पतालों में जाकर लगाते हैं। इसमें टीबी मेनेनजायटिस के मामले भी शामिल है। इस बीमारी सही उपचार मिलने पर ७० से ८० फीसदी शिशु रोगी बच जाते है।
क्या हैं मैनेनजाइटिस दरअसल, मेनेनजाइटिस एक तरह का बैक्टिरिया है। जो दिमागी बुखार है। इसमें बैक्टिरिया सीधे दिमाग में पहुंचता है। इसको दिमाग की झिल्ली की सूजन भी कहा जाता है। इसमें भी इंसफलाइटिस की तरह रीढ़ की हड्डी में सुई डाली जाती है तो अंदर से पस्स निकलती है।
इनका कहना
जोधपुर में मेनेनजाइटिस व इंसफलाइटिस दोनों ही तरह के शिशु रोगी सामने आते हैं। जापानी इंसफलाइटिस वायरस डाइग्नोसिस पकडऩे की सुविधा यहां नहीं है। इसके बावजूद हम मरीज को समय पर आते ही संदिग्ध मान शत प्रतिशत बचाने का प्रयास करते हैं। मेनेनजाइटिस में तो सरकार खुद एक प्रकार का टीका नि:शुल्क लगाती है।
जोधपुर में मेनेनजाइटिस व इंसफलाइटिस दोनों ही तरह के शिशु रोगी सामने आते हैं। जापानी इंसफलाइटिस वायरस डाइग्नोसिस पकडऩे की सुविधा यहां नहीं है। इसके बावजूद हम मरीज को समय पर आते ही संदिग्ध मान शत प्रतिशत बचाने का प्रयास करते हैं। मेनेनजाइटिस में तो सरकार खुद एक प्रकार का टीका नि:शुल्क लगाती है।
– डॉ. प्रमोद शर्मा, विभागाध्यक्ष, शिशु रोग विभाग, डॉ. एसएन मेडिकल कॉलेज साल में एक दो मरीज जापानी इंसफटायटिस के केस साल में एक-दो आते हैं। जिनकी जांच सुविधा जोधपुर में नहीं है। इसके लिए सैंपल दिल्ली व मुंबई जैसे शहरों में भेजे जाते हैं। इंसफटाइयटिस में समय पर सही उपचार मिलते ही ५० से ६० फीसदी रोगी बच जाते हैं। मेनिनजायटिस में ७० से ८० फीसदी शिशु मरीज बच जाते हैं।
– डॉ. जेपी अग्रवाल, शिशु रोग विशेषज्ञ