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तो इस कारण दवा और जांच के लिए जोधपुर के अस्पतालों में भटकने को मजबूर हैं मरीज!

locationजोधपुरPublished: Dec 08, 2017 02:39:21 pm

Submitted by:

Abhishek Bissa

यह परेशानी सिर्फ एक मरीज की नहीं, बल्कि अस्पताल में आने वाले हर उस मरीज की है, जो यहां इलाज के लिए आता है।

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जोधपुर . सीने में दर्द से छटपटाते बाबूलाल को मथुरादास माथुर चिकित्सालय में लाया जाता है। उनके साथ आया भतीजा बाबूलाल को पूरे रास्ते दिलासा देकर दर्द कम करता है कि बस अस्पताल पहुंचने वाले हैं। वहां जाते ही सबकुछ ठीक हो जाएगा। …लेकिन यह क्या अस्पताल पहुंचने के बाद भी बाबूलाल पीड़ा झेल रहे हैं। भतीजा पर्ची के लिए तो कभी भर्ती कार्ड के लिए दौड़ लगा रहा है। करीब डेढ़ घंटे तक पीड़ा से कराहते बाबूलाल को हिम्मत बंधाने वाला कोई नहीं है। उनके साथ आए भतीजे को तो कागजी खानापूर्ति जो करनी है।
जी हां, यह वाकया है बुधवार का। जगह है संभाग का सबसे बड़ा अस्पताल मथुरादास माथुर चिकित्सालय। यह नजारा देख लगा कि अस्पताल के चिकित्सकों और कार्मिकों को मरीज और उनके परिजनों के दर्द से कोई सरोकार नहीं है। हृदय के मरीज बाबूलाल को गंभीर हालत में लेकर आया परिजन अस्पताल के अव्यवस्थित सिस्टम के चलते डेढ़ घंटे मरीज को अकेले छोड़कर अस्पताल की जरूरी बताई गई खानापूर्ति में लगा रहा। इसके बाद मरीज का इलाज शुरू हो सका। यह परेशानी सिर्फ एक मरीज की नहीं, बल्कि अस्पताल में आने वाले हर उस मरीज की है, जो यहां इलाज के लिए आता है। अस्पताल की यह परेशानी आज राजस्थान पत्रिका उस मरीज के हवाल से प्रकाशित कर रहा है, जिसने यह परेशानी झेली।

डेढ़ घंटे तक झेलनी पड़ी पीड़ा

सीने में गंभीर दर्द उठने पर मरीज बाबूलाल को उनका भतीजा अस्पताल ले गया। ये दोपहर 1 बजे अस्पताल लेकर पहुंचे। इस दौरान गंभीर हालत में मरीज को किसी ने इमरजेंसी के बारे में नहीं बताया। आउटडोर लेकर गए, तो वहां इन्हें पर्ची कटवाने के लिए बोला गया। पर्ची कटवाने के बाद मरीज को डॉक्टर ने देखा। इसके बाद फिर मरीज का एडमिट कार्ड बनवाने के लिए करीब 400 मीटर दूर दौड़ा दिया। कॉर्डियोलॉजी विभाग गेट नंबर दो पर है और भर्ती टिकट गेट नंबर एक पर बनता है। इस दौरान मरीज अकेले ही पीड़ा भुगतता रहा। इधर, भतीजा भर्ती टिकट बनवाने में जुट गया। भर्ती टिकट के लिए भी लंबी लाइन में इंतजार करना पड़ा। इसके बाद मरीज को सीसीयू में ले जाया गया, वहां भर्ती कर लिया गया। एडमिट करने के बाद इनके ब्लड सैंपल लिए गए, लेकिन इसके लिए फिर से इन्हें गेट नंबर दो से गेट नंबर एक की दौड़ लगानी पड़ी। इस दौरान करीब डेढ़ घंटे के बाद मरीज का इलाज शुरू हो सका। इलाज शुरू होने के बाद फिर से मरीज के परिजन को दवाई और इंजेक्शन के लिए फिर भागना पड़ा।

यह हो सकता है समाधान


समय की मांग और मरीजों के अनुसार एमडीएम की सेवाओं का विस्तार होता जा रहा है, लेकिन व्यवस्थाओं को जिस तरह केंद्रीयकृत किया जाना चाहिए। वह अब तक नहीं हुआ है। इसके चलते कार्डियोलॉजी ही नहीं, बल्कि अन्य बीमारी से पीडि़तों को भी अस्पताल में चक्कर काटने पड़ते हैं। अस्पताल से अनजान व्यक्ति तो जानकारी के अभाव में विभाग ही ढूंढते फिरते हैं। इसकी जानकारी देने के लिए स्वागत कक्ष पर भी अस्पताल प्रशासन की ओर से कोई व्यवस्था नहीं होती है।

जल्द ही सुधरेगा सिस्टम

हम अस्पताल को केंद्रीयकृत करने में लगे हुए हैं। न्यू ओपीडी और जनाना में भी कुछ इस तरह की परेशानियां थी, जिनका समाधान किया है। हालांकि अस्पताल आर्किटेक्चर के अनुसार बिखरा हुआ है। फिर भी कम्प्यूटराइज्ड सिस्टम कर रहे हैं। थोड़ी बजट की परेशानी आ रही है। अतिशीघ्र यह करेंगे कि मरीज को कहीं से भी जानकारी मिल जाए। थोड़ा समय जरूर लगेगा, लेकिन जल्द ही मरीज की ऑनलाइन रिपोर्ट और जानकारी देख पाएंगे।

शैतानसिंह राठौड़, अधीक्षक, एमडीएम अस्पताल

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