डाॅ राजेंद्र बारहठ : एक नजर
उनका जन्म 20 जून 1969 को हुआ। डाॅ राजेंद्र बारहठ एक हजार के करीब व्याख्यान दे चुके हैं। वे राजस्थानी भाषा के टीवी चैनल्स में खबर बुलेटिन शुरू करने के प्रेरक व सक्रिय मार्गदर्शक रहे। डाॅ राजेंद्र बारहठ राजस्थानी भाषा साहित्य संस्कृति की सेवा के लिए 22 पुरस्कार से सम्मानित किए जा चुके हैं। उन्होंने राजस्थानी फिल्म उद्योग एक चिंतन"विषयक गोलमेज ज्ञान गोठ की परिकल्पना को मूर्त रूप देकर राजस्थानी फिल्म उद्योग की मजबूती के लिए प्रयत्न किए। वे केंद्रीय साहित्य अकादमी राजस्थानी राजस्थानी भाषा परामर्शदात्री समिति के सदस्य व जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय उदयपुर में 2003 से 2013 तक राजस्थानी संस्थापक विभागाध्यक्ष रहे। वहीं राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड अजमेर की ग्यारहवीं बारहवी राजस्थानी साहित्य की पुस्तकों के कई बार परीक्षक रहे। वे 24 राज्य राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय स्तर की संस्थाओं के सदस्य रहे हैं ,जिनमें जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय उदयपुर,, राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर, कोटा विश्वविद्यालय कोटा, वर्धमान महावीर कोटा खुला विश्वविद्यालय कोटा, महाराजा गंगासिंह विश्वविद्यालय बीकानेर इत्यादि की पाठ्यक्रम निर्धारण समिति में सदस्य रहे। डाॅ बारहठ 2005 में श्रीगंगानगर से दिल्ली व 2015 में मुंबई से "मायड़ भाषा राजस्थानी सम्मान जातरा"नाम से रथयात्रा के अगुवा व आयोजक रहे। बारहठ राजस्थानी मोट्यार परिषद, राजस्थानी चिंतन परिषद, राजस्थानी महिला परिषद ,राजस्थानी खेल परिषद व राजस्थानी फिलम परिषद के संस्थापक हैं। वहीं वे 30 संगोिष्ठयों के आयोजक रहे हैं। वे राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में वाचन कर चुके हैं। इसके अलावा 13 कार्यशालाओं में भागीदारी निभाई है। उन्होंने 25 पुस्तकों की समीक्षा की है।
उनकी पुस्तकें हैं-- राजस्थानी भाषा साहित्त री ख्यात, पत्रप्रकाश, पातल अर पीथल वचित्तौड़ गाइड।
पत्रिका संपादन - 1997 माणक जोधपुर, 1998 कैवाय संदेश जोधपुर, 2008 शोध पत्रिका उदयपुर, 2008 शिक्षक संवाद उदयपुर और अवतार चरित्त महाकाव्य पर पहली पीएचडी।
पुस्तकेंं प्रकाशनाधीन - राजस्थानी कैवती वातां,जगद्गुरु शंकराचार्य समीक्षा भाग दो,प्राचीन राजस्थानी गीत अनुक्रमणिका व राजस्थानी आडियां।
प्रकाशन के लिए तैयार -राजस्थानी नई कविता की तीन पुस्तकें, राजस्थानी चितार, मोदी अबतौ मानजा शतक ,6 राजस्थानी बाळ कथावां ,शोध पत्र 50 विभिन्न शोध पत्रिका।
उनका जन्म 20 जून 1969 को हुआ। डाॅ राजेंद्र बारहठ एक हजार के करीब व्याख्यान दे चुके हैं। वे राजस्थानी भाषा के टीवी चैनल्स में खबर बुलेटिन शुरू करने के प्रेरक व सक्रिय मार्गदर्शक रहे। डाॅ राजेंद्र बारहठ राजस्थानी भाषा साहित्य संस्कृति की सेवा के लिए 22 पुरस्कार से सम्मानित किए जा चुके हैं। उन्होंने राजस्थानी फिल्म उद्योग एक चिंतन"विषयक गोलमेज ज्ञान गोठ की परिकल्पना को मूर्त रूप देकर राजस्थानी फिल्म उद्योग की मजबूती के लिए प्रयत्न किए। वे केंद्रीय साहित्य अकादमी राजस्थानी राजस्थानी भाषा परामर्शदात्री समिति के सदस्य व जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय उदयपुर में 2003 से 2013 तक राजस्थानी संस्थापक विभागाध्यक्ष रहे। वहीं राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड अजमेर की ग्यारहवीं बारहवी राजस्थानी साहित्य की पुस्तकों के कई बार परीक्षक रहे। वे 24 राज्य राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय स्तर की संस्थाओं के सदस्य रहे हैं ,जिनमें जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय उदयपुर,, राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर, कोटा विश्वविद्यालय कोटा, वर्धमान महावीर कोटा खुला विश्वविद्यालय कोटा, महाराजा गंगासिंह विश्वविद्यालय बीकानेर इत्यादि की पाठ्यक्रम निर्धारण समिति में सदस्य रहे। डाॅ बारहठ 2005 में श्रीगंगानगर से दिल्ली व 2015 में मुंबई से "मायड़ भाषा राजस्थानी सम्मान जातरा"नाम से रथयात्रा के अगुवा व आयोजक रहे। बारहठ राजस्थानी मोट्यार परिषद, राजस्थानी चिंतन परिषद, राजस्थानी महिला परिषद ,राजस्थानी खेल परिषद व राजस्थानी फिलम परिषद के संस्थापक हैं। वहीं वे 30 संगोिष्ठयों के आयोजक रहे हैं। वे राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में वाचन कर चुके हैं। इसके अलावा 13 कार्यशालाओं में भागीदारी निभाई है। उन्होंने 25 पुस्तकों की समीक्षा की है।
उनकी पुस्तकें हैं-- राजस्थानी भाषा साहित्त री ख्यात, पत्रप्रकाश, पातल अर पीथल वचित्तौड़ गाइड।
पत्रिका संपादन - 1997 माणक जोधपुर, 1998 कैवाय संदेश जोधपुर, 2008 शोध पत्रिका उदयपुर, 2008 शिक्षक संवाद उदयपुर और अवतार चरित्त महाकाव्य पर पहली पीएचडी।
पुस्तकेंं प्रकाशनाधीन - राजस्थानी कैवती वातां,जगद्गुरु शंकराचार्य समीक्षा भाग दो,प्राचीन राजस्थानी गीत अनुक्रमणिका व राजस्थानी आडियां।
प्रकाशन के लिए तैयार -राजस्थानी नई कविता की तीन पुस्तकें, राजस्थानी चितार, मोदी अबतौ मानजा शतक ,6 राजस्थानी बाळ कथावां ,शोध पत्र 50 विभिन्न शोध पत्रिका।