बेमौसम की बारिश और आकाश में छा जाने वाले काले बादलों ने किसानों को भारी परेशानी में डाल दिया है। बची खुची निवाले की फसलें भी जाती हुई दिख रही है। किसानों की माने तो अब तक 80 फीसदी जीरा खराब हो चुका है। इस बार अच्छे भावों ने किसानों को काफी उम्मीदें बंधाई लेकिन अब तो वह आशाएं धूमिल होती नजर आने लगी हैं।
मारवाड़ की महंगी उपज के रूप में किसान प्रतिवर्ष कई दुविधाओं के बावजूद हजारों बीघा में जीरे की बुवाई करते हैं तथा किसी नन्हें शिशु की तरह इसे पाल पोस कर पकाया जाता है। पकाई पर आने तक कई बार महंगी दवाएं, कीटनाशक तथा अच्छी सेहत वाला जीरा लेने के लिए किसान कई प्रकार के टॉनिकों का छिड़काव भी करता है। यह फसल लगातार बादलों के बने रहने से या छिटपुट बूंदाबांदी से रोग ग्रस्त हो जाती है।
इस बार बुवाई के दौरान से ही बादलों के बनने बिगड़ने के बावजूद जीरे की फसल खेतों में लहलहाने लगी तो किसानों को इस बार अच्छी उपज आने की उम्मीद लगी और किसान खुशी का इजहार करने लगे ।उम्मीद बंधी कि इस बार जीरे के अच्छे दाम मिल जाएंगे लेकिन इस पखवाड़े में लगातार काले -पीले बादलों के बने रहने तथा एकाएक हुई ओलों की बारिश ने सब कुछ बिगाड़ दिया।
किसानों द्वारा अच्छी उपज के लिए महंगा बीज, खाद, निराई- गुड़ाई की मजदूरी तथा महंगे कीटनाशकों तक का उपयोग किया। इस बार अच्छे दाम मिलने की आस लगा रखी थी कि ओलों की बारिश ने किसान को कहीं का नहीं रखा। किसानों को गत वर्ष फसलों में हुए खराबे का मुआवजा भी किसी भी बीमा कंपनी की ओर से नहीं मिला और न ही सरकार की ओर से कोई सहायता ।
ओलों की मार नहीं सह पाई अन्य फसलें
जमीन से एक फुट तक की ऊंचाई तक का जीरा तो ओलों की मार से धूलधूसरित हो गया लेकिन खेतों में खड़ी सोंफ एवं गेहूं की फसल भी कई जगह जमींदोज हो गई ।
जमीन से एक फुट तक की ऊंचाई तक का जीरा तो ओलों की मार से धूलधूसरित हो गया लेकिन खेतों में खड़ी सोंफ एवं गेहूं की फसल भी कई जगह जमींदोज हो गई ।