कोरोनारूपी रावण का होगा दहन
नारायण सेवा समिति मंडोर के अध्यक्ष मनोहर सिंह सांखला ने बताया कि समिति की ओर से चैनपुरा में करीब 15 फुट कोरोनारूपी रावण पुतले का दहन प्रतीकात्मक रूप से किया जाएगा।
नारायण सेवा समिति मंडोर के अध्यक्ष मनोहर सिंह सांखला ने बताया कि समिति की ओर से चैनपुरा में करीब 15 फुट कोरोनारूपी रावण पुतले का दहन प्रतीकात्मक रूप से किया जाएगा।
छूटती थी तोपें रावण चबूतरा मैदान में रावण दहन के लिए जब मेहरानगढ़ के मुरली मनोहर मंदिर से भगवान रामचन्द्र की सवारी प्रस्थान करती तब तोप छोड़ी जाती थी। रावण दहन के समय 51 तोपें तथा सवारी गढ़ पर पहुंचने पर पुन: एक तोप छोड़ी जाती थी । इतिहासविद डॉ. एमएस तंवर के अनुसार सवारी के साथ किले से जो लवाजमा जाता था उसकी विगत भी दस्तरी बही में मिलती है । सवारी के साथ रणसिंघा खांडा भी भेजा जाता था।
बंद कर दी गई भैंसे के बलि की परम्परा
मेहरानगढ़ के चामुण्डा माता मंदिर में विजयदशमी को एक भैंसा भी बलि करने के बाद किले की दक्षिणी पश्चिमी पहाड़ी ढलान पर गिरा दिया जाता था। भारत सरकार ने जब से सार्वजनिक स्थानों पर बलि पर प्रतिबंध और उसे कानून के रूप में लागू कर दिया तब से किले पर भैंसे या अन्य पशु का बलि की प्रथा बंद कर दी गई।
मेहरानगढ़ के चामुण्डा माता मंदिर में विजयदशमी को एक भैंसा भी बलि करने के बाद किले की दक्षिणी पश्चिमी पहाड़ी ढलान पर गिरा दिया जाता था। भारत सरकार ने जब से सार्वजनिक स्थानों पर बलि पर प्रतिबंध और उसे कानून के रूप में लागू कर दिया तब से किले पर भैंसे या अन्य पशु का बलि की प्रथा बंद कर दी गई।
रावण का चबूतरा ही गायब इस बार रावण का चबूतरा मैदान में नगर निगम के दशहरा महोत्सव समिति की ओर से किसी भी तरह के आयोजन नहीं होने के कारण दहन स्थल के लिए चबूतरा का निर्माण ही नहीं किया गया।
द्वितीय विश्वयुद्ध के समय दहन स्थल पर गिरा था बम
मेरी उम्र 81 वर्ष की हो चुकी है। बचपन से ही रावण चबूतरा मैदान में दशानन दहन देखता रहा हूं। अस्सी साल में यह पहला मौका है जब दशानन दहन नहीं हो रहा है। मेरे बचपन में दहन स्थल पर सिर्फ एक दीवार बनी थी उस पर कुछ चित्र टांगे जाते थे। जोधपुर महाराजा तीर छोड़कर दशानन दहन करते थे। मेरे बड़े भाई कहते थे द्वितीय विश्वयुद्ध के समय दहन स्थल पर एक बम भी गिर गया था।
मेरी उम्र 81 वर्ष की हो चुकी है। बचपन से ही रावण चबूतरा मैदान में दशानन दहन देखता रहा हूं। अस्सी साल में यह पहला मौका है जब दशानन दहन नहीं हो रहा है। मेरे बचपन में दहन स्थल पर सिर्फ एक दीवार बनी थी उस पर कुछ चित्र टांगे जाते थे। जोधपुर महाराजा तीर छोड़कर दशानन दहन करते थे। मेरे बड़े भाई कहते थे द्वितीय विश्वयुद्ध के समय दहन स्थल पर एक बम भी गिर गया था।
प्रो. जहूर खां मेहर, इतिहासविद जोधपुर