प्रजातियां विलुप्त हो गई थीं पृथ्वी पर जब ६.५ करोड़ वर्ष पहले प्रलय हुआ, तब सबसे ताकतवर जीव डायनोसोर सहित ७५ फीसदी प्रजातियां विलुप्त हो गई थीं। लेकिन यहां पाई जाने वाली ‘मई मक्खियांÓ जिंदा बच गईं। मई मक्खी के विकास का क्रम बताता है कि बाड़मेर और
जैसलमेर में उष्ण कटिबंधीय जंगल थे और नदियां बहती थी।
बाड़मेर के गैहु मोहल्ले की चट्टान पर मिले दरअसल, ५.५ से ६.५ करोड़ वर्ष पहले के मई मक्खी के अस्तित्व के प्रमाण बाड़मेर के गैहु मोहल्ले की चट्टान पर मिले हैं। चट्टानों पर बादाम की आकृति के जीवाश्म हैं। एेसे जीवाश्म अमरीका, अर्जेंटीना और न्यू मैक्सिकों में हैं। यह खोज जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय के भू गर्भ विज्ञान प्रोफेसर सुरेश माथुर के निर्देशन में शोधकर्ता वीरेंद्र परिहार, शंकरलाल नामा, एनएस शेखावत, सीपी खीची, ए. सोनी और सौरभ माथुर ने की।
लोहे के खोल में संरक्षित रही मक्खी शोधकर्ताओं को ६.५ करोड़ वर्ष पहले के तने पत्थर रूप के चट्टान पर मिले हैं। इन पर मई मक्खियों की कॉलोनी लोहे के खोल में संरक्षित है। डायनासोर युग खत्म होने के साथ ही पृथ्वी पर भारी मात्रा में लोहा आया था। संभवत: इसी लोहे के कारण मई मक्खियां जिंदा रह गई। मई मक्खी दो तीन साल तक पेड़ के तने में घरोंदा बनाकर रहती हैं। बाहर आने के बाद दो तीन दिन जीवित रहती है। वर्तमान में अमरीका के मिसीसिपी नदी व झील में लाखों मई मक्खियां देखी जा सकती हैं। मई महीने में ही घरोंदे से निकलने के कारण इनका नाम मई मक्खी पड़ा।
बाड़मेर में और पेट्रोलियम भण्डार की संभावना
मई मक्खी साफ पानी में रहती है। वर्तमान में यह हिमालय के ठण्डे पानी में पाई जाती है यानी बाड़मेर में किसी समय हरे-भरे जंगल थे। मई मक्खी के जीवाश्म जिस चट्टान में मिले हैं, उसमें पेट्रोलियम पाया जाता है। यह पेट्रोलियम के भण्डार होने का प्रमाण है।