वीणा शर्मा के निर्देशन में मंचित नाटक रसिक संपादक मुंशी प्रेमचंद की शुरूआती दिनों का लेखन है। ये उनकी उन कहानियों में से है जो कभी मंच पर खेली नहीं गई । कहानी रसिक संपादक एक व्यंग्य कहानी है , जो कि ऐसी मानसिकता को दर्शाती है , जिनकी मानसिकता स्त्रियों को लेकर कुछ अलग ही होती है। किन्तु इंसान को पता ही नहीं कि खूबसूरती तन की नहीं मन अथवा विचारों की होती है । रविवार को प्रस्तुत नाटक को रोचक बनाने के लिए कहानी के पात्रों को आस पास के चरित्रों से प्रेरणा लेकर मंच पर अभिनित किया गया । पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने के बावजूद भी स्त्री के तन की खूबसूरती ही देखी जाती है , मन की नहीं। कहानी हास्य और व्यंग्य के साथ साथ शिक्षा देती है ।
मंच पर सुशील शर्मा संपादक, पूजा निर्वाण पड़ोसन, सोमाली बिष्ठ रावत बंगाली पड़ोसन और कामाक्षी, आर्यश्री आर्या सलोनी की भूमिका के साथ पूरी तरह न्याय किया। विकास कुमार व मनीष सिंह पोस्टमैन व सूत्रधार, अंकुर नागर डाकिया की भूमिका में रहे। आजादी के अमृत महोत्सव एवं विश्व रंगमंच दिवस के तहत आयोजित नाट्योत्सव का समापन सोमवार को नट सम्राट ग्रुप दिल्ली के नाटक ‘कमबख्त इश्क‘ का मंचन होगा जिसका निर्देशन श्याम कुमार करेंगे।