इस मामले को राजस्थान पत्रिका ने 21 जुलाई को प्रकाशित समाचार में उजागर किया था। मामले की प्रारंभिक जांच में अनियमितताएं सामने आई, लेकिन वन विभाग के तत्कालीन अफसरों ने जांच को यह कहकर दबा दिया कि इस मामले का रिकॉर्ड विभाग के पास नहीं होकर आरोपी अफसर के पास है। वे इस मामले में कुछ नहीं कर पा रहे हैं, लेकिन अब इस मामले की जांच भी सामने आ गई है।
3 लाख 37 हजार रुपए का गबन
जांच के अनुसार वनखंड मोतीसरा के विष्णुकुंड की १०० हैक्टेयर जमीन पर एमबी के अनुसार जहां 31 हजार ६१ रनिंग मीटर वी-डिच बनाने का कार्य किया गया, जबकि मौके पर यह काम 19092 रनिंग मीटर पाया गया। इसके अलावा एमबी में पौधों के लिए गड्ढों की संख्या 18 हजार 580 दिखाई गई, जबकि मौके पर 12 हजार 688 गड्ढे ही खोदे गए। एमबी के अनुसार 22 हजार पौधे लगाना दिखाया गया, जबकि मौके पर सिर्फ 13 हजार 957 पौधे लगाए गए। इस कार्य में कुल 3 लाख 37 हजार सात सौ सैंतालीस रुपए का गबन होना पाया गया।
गबन को दोषी होने पर दर्ज कराई जाती है एफआईआर सामान्य वित्त एवं लेखा नियम 22-ए के तहत लोकसेवक गबन का दोषी पाया जाता है, तो उसके खिलाफ थाने में एफआईआर दर्ज की जाती है। इस मामले में विभाग की ओर से कोई कार्रवाई नहीं की गई है।
प्रक्रिया के अनुसार होगी कार्रवाई
यह प्रकरण लोकायुक्त मामले में विचाराधीन है। इसकी रिपोर्ट लोकायुक्त और उच्चाधिकारियों को भिजवा दी है। जो भी कार्रवाई की निश्चित प्रक्रिया है, उसके अनुसार कार्रवाई होगी। इसमें हमारी ओर से कोई कमी नहीं है।
नरेंद्रसिंह शेखावत, उपवन संरक्षक अधिकारी, जोधपुर