स्मार्टफोन ने कई घरों में हंसते खेलते परिवारों, पति-पत्नी में नफरत का वो बीज बो दिया जिसके चलते दोनों के बीच सात जन्मों तक चलने वाले बंधन को तोडऩे तक की नौबत आ गई। जोधपुर ही नहीं आस-पास के अन्य जिलों में भी स्मार्टफोन ने आग में घी का काम किया। परिणाम यह हुआ कि किसी बच्चे को मां का प्यार नसीब नही हुआ तो किसी को पिता के दुलार से अलग होकर रहना पड़ रहा है।
स्मार्टफोन के इसी दुष्प्रभाव पर पेश है एक रिपोर्ट- केस- 1
जोधपुर से 40-50 किमी दूर गांव में रहने वाले हिमांशु (परिवर्तित नाम) महाराष्ट्र में आइटी कम्पनी में जॉब करता था। उसकी शादी तीन वर्ष पूर्व हुई। कुछ समय तक सबकुछ ठीक चला, लेकिन फिर स्मार्टफोन ने जिंदगी में जहर घोला। दरअसल हिमांशु की पत्नी दिन-भर स्मार्टफोन चलाने में व्यस्त रहती थी। एक दिन सास ने टोक दिया। इससे विवाद इतना गहराया कि बात तलाक लेने तक पहुंच गई। मामला यों ही शांत नहीं हुआ पत्नी ने दहेज प्रताडऩा का आरोप भी लगा दिया।
केस-2 प्रशासनिक सेवा से सेवानिवृत गोविंदलाल (परिवर्तित नाम) ने अपने इकलौते बेटे का रिश्ता सम्पन्न परिवार में किया। खुशी के मौके पर पानी की तरह पैसा बहाकर अपनी जमा पूंजी खर्च की, लेकिन यह रिश्ता भी ज्यादा नहीं चला। शादी के महज डेढ वर्ष बाद ही पति-पत्नी ने खुद को अलग करने का फैसला कर दिया। कारण दोनों ने एक दूसरे पर रिश्तों के बजाय स्मार्टफोन को अहमियत ज्यादा दी। पत्नी का आरोप था कि पति दिन-भर स्मार्टफोन पर व्यस्त रहता है। ऐसे में आपसी समझ व विश्वास पैदा नहीं होने के चलते रिश्ता तोडऩे की नौबत आ गई।
केस-3 मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब करने वाले संजीव (परिवर्तित नाम) की शादी पांच वर्ष पूर्व हुई थी। जल्द ही इस रिश्ते को भी नजर लग गई। संजीव की पत्नी विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सक्रिय रहती थी। घर के कामों में ध्यान नहीं देने, माता पिता का ध्यान नहीं रखने की बात को लेकर टोकने पर विवाद बढ़ गया। पत्नी नाराज होकर मायके चली गई। मायके वालों ने भी पत्नी का सोशल मीडिया चलाने का पक्ष लिया। नतीजा दोनों के बीच दो वर्षीय मासूम को पिता के प्यार से दूर होना पड़ रहा है।
क्या कहते हैं मनोचिकित्सक स्मार्टफोन की लत गलत है। आजकल हर कोई सोशल मीडिया पर जुड़ा हुआ है, लेकिन इंटरनेट की दुनिया के बाहर अकेला है। परिवार, समाज दोस्तों को समय नहीं देने के चले वह सामाजिक दुनिया से दूर होता चला जाता है। पति-पत्नी के मामलों में भी यही होता आया है। बात रिश्ता तोडऩे तक आ जाती है। इसलिए इन सबसे बचने के लिए स्मार्टफोन का लिमिटेड एवं सेफ उपयोग करना चाहिए।
– डॉ. नरेश नेबिनानी, एसोसिएट प्रोफेसर, मनोचिकित्सा विभाग एम्स
इन्होंने कहा
स्मार्टफोन व्यक्ति को तो स्मार्ट बना सकता है, लेकिन रिश्तों को नहीं। इसके चलते कई बार रिश्तों में खटास पड़ जाती है। इस तरह के कई मामले न्यायालय में आ रहे हैं। कई बार तो दोनों पक्षों की बात सुनकर जज भी हंस पड़ते हैं। हालांकि समझाइश व काउंसलिग के माध्यम से भी रिश्तों को जोडऩा का प्रयास किया जाता है।
केके व्यास, पारिवारिक मामलों के वकील