शहर में जटिया समाज के रोजग़ार के साथ आर्थिक रूप से भी महत्वपूर्ण रहे है चर्म कुंड। शुद्ध चमड़े के कुंड के पानी का उपयोग छोटे बच्चों की खुलखुलिया खांसी को खत्म करने में रामबाण की तरह माना जाता था। वहीं मिर्च की खेती करने वाले किसान कच्चे चमड़े के कुंड के पानी का छिड़काव मिर्च के पौधों को रोगों से बचाने में करते थे।
नहीं मनाई होली
हाईकोर्ट के निर्देशो के बाद जब कहीं से भी राहत और पुनर्वास की उम्मीद नहीं रही तो प्रभावित परिवारों ने गम में रंगो का पर्व होली भी नहीं मनाई। कई जगह असर पीपाड़सिटी में चर्म शोधन उद्योग के खत्म होने से दूसरे स्थानों के लोग भी प्रभावित हुए हैं। यहां पर कानपुर से कच्चा चमड़ा ट्रकों के भर आता रहा है। शुद्ध चमड़ा तैयार होने पर नसीराबाद, नागौर,
जयपुर , खाटू, कानपुर सहित देश प्रदेश के विभिन्न भागों में भेजा जाता रहा है। न्यायालय के आदेश पर काम बंद करने के बाद 30-35 ट्रक कच्चा व शुद्ध चमड़ा हटाना पड़ा। इस कारण चमड़ा मजदूरो को लाखों का घाटा सहन करना पड़ा।
मीठालाल जटिया, चमड़ा मजदूरपुनर्वास की व्यवस्था नहीं
हाईकोर्ट में 6 वर्ष पूर्व भी चमड़ा शोधन कार्य बंद करने को लेकर याचिका लगी तब पालिका ने बोयल रोड पर 5 बीघा भूमि जो शहर से बाहर है वो इन मज़दूरों को देने के साथ आवश्यक सुविधाएं देने का पत्र कोर्ट में लिखित में दिया था। लेकिन इस बार न पुनर्वास न आर्थिक सहायता और न ही रोजग़ार की गारंटी मिली। मुख्यमंत्री तक से फरियाद भी अनसुनी रही। न्यायालय के आदेश की पालना में मजदूरों ने पहले ही काम बंद कर दिया था।
मनोहरलाल चंदेल, नेता,जटिया समाज
इनका कहना है प्रभावित मजदूरों को पहले ही अपनी बात न्यायालय के समक्ष रखने का कह दिया गया था। अगर यह न्यायालय जाते तो वहीं से इनको राहत मिल सकती थी।
सुरेशचन्द्र शर्मा, अधिशाषी अधिकारी,
नगर पालिका, पीपाड़सिटी