घुड़ला पूजन का यह है इतिहास
मारवाड़ में महिलाओं के प्रमुख लोकपर्व गणगौर पूजन के आठवें दिन तीजणियों की ओर से घुड़ला पूजन किया जाता है। शीतलाष्टमी पर्व पर तीजणियां ढोल-थाली के साथ पवित्र मिट्टी से निर्मित घुड़ला लेने कुम्हार के घर लेने जाती हैं। एक पखवाड़े तक गौरी पूजन करने वाली तीजणियां छिद्रयुक्त घुड़ले में आत्म दर्शन के प्रतीक दीप प्रज्ज्वलित करने के बाद उसे गवर पूजन स्थल पर विराजित करती हैं। गणगौरी तीज तक सगे-संबंधियों के घर ले जाकर मां गौरी से जुड़े मंगल गीत गाए जाते हैं। घुड़ले से जुड़ी ऐतिहासिक घटना भी हम आपको बताते हैं। मारवाड़ के प्राचीन दस्तावेजों व बहियों के अनुसार गवर पूजन के दौरान तीजणियों को उठाकर ले जाने वाले घुड़ले खां का पीछा करते हुए राव सातल ने उसका सिर धड़ से अलग कर दिया था। उसी घुड़ले खां के सिर को लेकर आक्रोशित तीजणियां घर-घर घूमी थी। मारवाड़ में गणगौर पूजन के दौरान चैत्र वदी अष्टमी के दिन इतिहास से जुड़े वाकये को आज भी याद किया जाता है।
मारवाड़ में महिलाओं के प्रमुख लोकपर्व गणगौर पूजन के आठवें दिन तीजणियों की ओर से घुड़ला पूजन किया जाता है। शीतलाष्टमी पर्व पर तीजणियां ढोल-थाली के साथ पवित्र मिट्टी से निर्मित घुड़ला लेने कुम्हार के घर लेने जाती हैं। एक पखवाड़े तक गौरी पूजन करने वाली तीजणियां छिद्रयुक्त घुड़ले में आत्म दर्शन के प्रतीक दीप प्रज्ज्वलित करने के बाद उसे गवर पूजन स्थल पर विराजित करती हैं। गणगौरी तीज तक सगे-संबंधियों के घर ले जाकर मां गौरी से जुड़े मंगल गीत गाए जाते हैं। घुड़ले से जुड़ी ऐतिहासिक घटना भी हम आपको बताते हैं। मारवाड़ के प्राचीन दस्तावेजों व बहियों के अनुसार गवर पूजन के दौरान तीजणियों को उठाकर ले जाने वाले घुड़ले खां का पीछा करते हुए राव सातल ने उसका सिर धड़ से अलग कर दिया था। उसी घुड़ले खां के सिर को लेकर आक्रोशित तीजणियां घर-घर घूमी थी। मारवाड़ में गणगौर पूजन के दौरान चैत्र वदी अष्टमी के दिन इतिहास से जुड़े वाकये को आज भी याद किया जाता है।
धींगा गवर या बेंतमार में पिटने आते हैं युवक
जोधपुर में गणगौर के दौरान मनाएं जाने वाले एक और प्रमुख उत्सव है। इसका नाम है धींगा गवर। इस उत्सव को बेंतमार गणगौर के रूप में भी जाना जाता है। इस उत्सव में रात में शहर की गलियों में महिलाएं विभिन्न स्वांग रचकर निकलती हैं। इस दौरान पुरुषों के उनके पास से गुजरने पर बैंत की मार खासी प्रसिद्ध है। साल में केवल एक बार आने वाले इस मेले में जब महिलाएं शहर की गलियों में बैंत लेकर चलती हैं तो उनके पास गुजरने वाले पुरुष अपनी खैर मनाते हैं। हालांकि पुरुषों को भी महिलाओं द्वारा पिटने में अलग ही मजा आता है। ऐसी भी लोक मान्यता है कि यदि कुंआरे युवक को तीजणियों की बैंत पड़ जाए तो उसका विवाह जल्द ही हो जाता है। दरअसल लगभग 80-100 सौ पहले ये मान्यता थी कि धींगा गवर के दर्शन पुरुष नहीं करते, क्योंकि तत्कालीन समय में ऐसा माना जाता था कि जो भी पुरुष धींगा गवर के दर्शन कर लेता था उसकी मृत्यु हो जाती थी। ऐसे में धींगा गवर की पूजा करने वाली सुहागिनें अपने हाथ में बेंत या डंडा ले कर आधी रात के बाद गवर के साथ निकलती थी। वे पूरे रास्ते गीत गाती हुई और बेंत लेकर उसे फटकारती हुई चलती। बताया जाता है कि महिलाएं डंडा फटकारती थी ताकि पुरुष सावधान हो जाए और गवर के दर्शन करने की बजाय किसी गली, घर या चबूतरी की ओट ले लेते थे। कालांतर में यह मान्यता स्थापित हुई कि जिस युवा पर बेंत डंडा की मार पड़ती उसका जल्दी ही विवाह हो जाता। इसी परंपरा के चलते युवा वर्ग इस मेले का अभिन्न हिस्सा बन गया है।
जोधपुर में गणगौर के दौरान मनाएं जाने वाले एक और प्रमुख उत्सव है। इसका नाम है धींगा गवर। इस उत्सव को बेंतमार गणगौर के रूप में भी जाना जाता है। इस उत्सव में रात में शहर की गलियों में महिलाएं विभिन्न स्वांग रचकर निकलती हैं। इस दौरान पुरुषों के उनके पास से गुजरने पर बैंत की मार खासी प्रसिद्ध है। साल में केवल एक बार आने वाले इस मेले में जब महिलाएं शहर की गलियों में बैंत लेकर चलती हैं तो उनके पास गुजरने वाले पुरुष अपनी खैर मनाते हैं। हालांकि पुरुषों को भी महिलाओं द्वारा पिटने में अलग ही मजा आता है। ऐसी भी लोक मान्यता है कि यदि कुंआरे युवक को तीजणियों की बैंत पड़ जाए तो उसका विवाह जल्द ही हो जाता है। दरअसल लगभग 80-100 सौ पहले ये मान्यता थी कि धींगा गवर के दर्शन पुरुष नहीं करते, क्योंकि तत्कालीन समय में ऐसा माना जाता था कि जो भी पुरुष धींगा गवर के दर्शन कर लेता था उसकी मृत्यु हो जाती थी। ऐसे में धींगा गवर की पूजा करने वाली सुहागिनें अपने हाथ में बेंत या डंडा ले कर आधी रात के बाद गवर के साथ निकलती थी। वे पूरे रास्ते गीत गाती हुई और बेंत लेकर उसे फटकारती हुई चलती। बताया जाता है कि महिलाएं डंडा फटकारती थी ताकि पुरुष सावधान हो जाए और गवर के दर्शन करने की बजाय किसी गली, घर या चबूतरी की ओट ले लेते थे। कालांतर में यह मान्यता स्थापित हुई कि जिस युवा पर बेंत डंडा की मार पड़ती उसका जल्दी ही विवाह हो जाता। इसी परंपरा के चलते युवा वर्ग इस मेले का अभिन्न हिस्सा बन गया है।
हैंडीक्राफ्ट में भी ईसर-गवर की धूम
गणगौर के त्योहार की प्रतीक गवर.ईसर की पवित्र प्रेमगाथा की गंूज सात समन्दर पार विदेशों में भी है। गवर-ईसर की पूजा केवल मारवाड़ या राजस्थान में ही नहीं होती बल्कि विदेशों में इनकी पूजा की जाती है। इसके लिएए लकड़ी के हैण्डीक्राफ्ट उत्पादों के निर्यात के लिए विश्वविख्यात जोधपुर से अन्य उत्पादों के साथ गवर-ईसर की प्रतिमाएं भी निर्यात होती है। तांकि विदेशों में रहने वाले अप्रवासी राजस्थानी व भारतीय महिलाएं गणगौर का त्योहार मना सके। गणगौर के सीजन में पूजनीय गवर माता व ईसर की प्रतिमाओं की देश-विदेश में मांग बढ़ गई है।
गणगौर के त्योहार की प्रतीक गवर.ईसर की पवित्र प्रेमगाथा की गंूज सात समन्दर पार विदेशों में भी है। गवर-ईसर की पूजा केवल मारवाड़ या राजस्थान में ही नहीं होती बल्कि विदेशों में इनकी पूजा की जाती है। इसके लिएए लकड़ी के हैण्डीक्राफ्ट उत्पादों के निर्यात के लिए विश्वविख्यात जोधपुर से अन्य उत्पादों के साथ गवर-ईसर की प्रतिमाएं भी निर्यात होती है। तांकि विदेशों में रहने वाले अप्रवासी राजस्थानी व भारतीय महिलाएं गणगौर का त्योहार मना सके। गणगौर के सीजन में पूजनीय गवर माता व ईसर की प्रतिमाओं की देश-विदेश में मांग बढ़ गई है।