जोधपुर

Glaucoma : 40 वर्ष की आयु बाद ग्लूकोमा का खतरा, इसलिए हर साल कराएं आंखों की जांच

-देश में डेढ़ करोड़ लोग ग्लूकोमा बीमारी से पीडि़त
-समय पर इलाज लें तो बची रह सकती है आंखों की रोशनी
-विश्व ग्लुकोमा सप्ताह का समापन

जोधपुरMar 15, 2019 / 11:15 pm

Kanaram Mundiyar

Glaucoma : 40 वर्ष की आयु बाद ग्लूकोमा का खतरा, इसलिए हर साल कराएं आंखों की जांच

जोधपुर.
आपके चश्मे के नंबर बार-बार बदल रहे हैं, पूरे दिन काम करने के बाद शाम को आंख में या सिर में दर्द होता है, बल्ब के चारों तरफ इंन्द्रधनुषी रंग दिखाई दे रहा है या अंधेरे में चीजों पर फोकस करने में परेशानी हो रही है तो आपको ग्लूकोमा हो सकता है। ऐसी परेशानी 40 साल की आयु के बाद सामने आती है। इसलिए इस उम्र के बाद साल में एक बार आखों की जांच जरूर करानी चाहिए।
विश्व ग्लूकोमा सप्ताह के तहत एमडीएम अस्पताल के नेत्र रोग विभाग में नेत्र विशेषज्ञों की परिचर्चा में यह जानकारी सामने आई। जोधपुर ऑफ्थैलमिक सोसायटी की ओर से आयोजित जागरुकता कार्यक्रम में सोसायटी के सचिव डा. गुलाम अली कामदार ने कहा कि 10 साल में ग्लूकोमा के 30 फीसदी केस बढ़े हैं। दुनियाभर में आंखों की रोशनी जाने और अंधेपन का दूसरा सबसे बड़ा कारण ग्लूकोमा है। सही समय पर इसका पता न चलना घातक हो सकता है। दुनियाभर में 68 मिलियन लोग इस बीमारी से ग्रस्त हैं, इनमें से 50 फीसदी को इसका पता ही नहीं चल पाता और वे धीरे-धीरे अपनी आंखों की रोशनी खो देते हैं। भारत में लगभग 1.5 करोड़ लोग इस बीमारी से पीडि़त हैं।
प्रो. डॉ. अरविन्द चौहान ने बताया कि कई बार यह बीमारी कम उम्र में भी हो जाती है। इसमें आंखों का प्रेशर बढ़ जाता है और यह प्रेशर ऑप्टिक नर्व पर दबाव डालता है, जिससे वे धीरे-धीरे सूखती जाती हैं और उससे रोशनी कम होती जाती है। ऑप्टिक नर्व विजुअल सूचना को रेटिना से मस्तिष्क तक पहुंचाती है। कार्यक्रम में डा. संजीव देसाई, डॉ. रतन पुरोहित, डॉ. सुरेन्द्र माथुर, डा. अजीत जाखडर्,, डा. मोना वैश्य, डा. महेन्द्र पालीवाल सहित कई चिकित्सक मौजूद रहे।
40 वर्ष के बाद कराए आंखों की जांच-

नेत्र विशेषज्ञों के अनुसार ग्लूकोमा को आम भाषा में काला मोतिया भी कहा जाता है। हमारी आंख एक गुब्बारे की तरह होती है जिसके भीतर एक तरल पदार्थ भरा होता है। आंखों का यह तरल पदार्थ लगातार आंखों के अंदर बनता रहता है और बाहर निकलता रहता है। आंखों के इस तरल पदार्थ के पैदा होने और बाहर निकलने की इस प्रक्रिया में जब कभी दिक्कत आती है तो आंखों में दबाव बढ जाता है। आंखों पर बढा दबाव इन ऑप्टिक नर्व को डैमेज करने लगता है और आंखों की रोशनी धीरे-धीरे कमजोर होने लगती है। जब कभी आंखों के बढ़े प्रेशर के चलते आंख की ऑप्टिक नर्व खराब हो जाती है और उसके चलते नजर खराब होती है तो उसे ओपन ऐंगल ग्लूकोमा कहा जाता है। वहीं ओपेन एंगल ग्लूकोमा का कोई लक्षण नहीं होता है, इसमें दर्द नहीं होता और न ही नजर में कोई कमी महसूस होती है।
लाइफ स्टाइल का ध्यान रखें-

अनियमित दिनचर्या भी इस रोग का कारण है। नींद न आना, लगातार तनाव में रहना, अधिक समय तक कम्प्यूटर पर कार्य करना आदि आंखों पर तनाव डालता है। ग्लूकोमा साइलेंट किलर है। जिसका पता नहीं चलता। ऐसे में इससे बचने के लिए भोजन में अधिक से अधिक हरी सब्जियों का उपयोग करने के अलावा नियमित एक्सरसाइज, वजन पर नियंत्रण, कम्प्यूटर पर लगातार बैठने से बचना व धूप में जाने पर अच्छे सनग्लास की उपयोग करने से इस बीमारी से काफी हद तक बचा जा सकता है।
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