जोधपुर ( jodhpur news current news ) . होली ( Holi 2020 ) के रंग खुशियां लाते हैं। इंद्रधनुषी छटा से सजी लोक की होली ( Happy Holi 2020 ) का अपना ही मजा है। राजस्थान में होली ( Holi Latest News ) पर रम्मत व लूर लोक नाट्य और ख्याल गायन की परंपरा रही है। होली ( Holi news in hindi ) पर इस बारे में रोचक, मनोरंजक और ज्ञानवृद्धक आलेख में हिन्दी व राजस्थानी भाषा की प्रख्यात साहित्यकार ( litterateur ) डॉ. सुमन बिस्सा बता रही हैं ( NRI news in hindi ) : .. त्योहारों का राजा है होली का मनमोहक त्योहार चारों ओर हर्ष, उमंग, चारों ओर रंग ही रंग। इस त्योहार पर मनुष्य तो क्या, कुदरत का मन भी रंगीन हो जाता है। रंग, रस, सौरभ और रंगीनियों का मेला लग जाता है। किसी बाग में चल कर देखा जाय कि कुदरत क्या करतब दिखा रही है। चारों ओर फूल ही फूल, हवा के साथ बिखरती सौरभ और मुस्कुराते भोले-भाले चेहरे। एक ओर सफेद, नीले और बैंगनी कचकार तो दूसरी और लाल पलाश। एक ओर गेंदे और गुलाब तो दूसरी ओर केतकी चम्पा और अशेक के फूलं। चारों ओर सफेद, गुलाबी, लाल, पीले, हरे, बैंगनी रंगों के इन्द्रधनुष देख कर उदास मन में भी उमंग की हिलोरें उठने लगती हैं। होली में बच्चे, जवान और वृद्ध सभी मस्ती के मूड में दिखाई देते हैं। होली आये और पिचकारियां न छूटे ये कैसे संभव हो सकता है। पिचकारी से तर रंगबिरंगे कपड़े पहने चेहरे पहचान में भी नहीं आते। एक ओर गेरों की मस्ती, रसिकों के हाथों में ढोल, मंजीरे, झांझर और डांडिये। नाचते, झूमते, गाते और रंग बिखेरते रसिये। होली में सबको मस्ती की छूट मिल जाती है। मस्ती और मनवार का त्योहार है होली। भिन्न-भिन्न तरह की मिठाइयों का त्योहार है होली। मन खोल कर मिलने का त्योहार है होली। मौसम बदलते ही फसलें भी झूमने लगती है और झूमने लगते हैं किसानों के मन। नई उमंग,नया जोश, नया हौसला, नई उम्मीद। न शीत लहर, न लू के थपेड़े और न ही मच्छरों का प्रकोप। जलवायु इतनी सुखद कि मन प्रसन्न हो जाये। होली के त्यौहार में चारों ओर धमा चौकड़ी। कहीं नाट्य मंडलियां नाटक खेलती हैं तो कहीं रम्मत के नजारे, कहीं कवि सम्मेलनों की धूम तो कहीं डांडियों की धमचक। गरीब से लेकर अमीर तक सब एक रंग में एक जैसे। कोई भेद नजर नहीं आता। कोई्र सेठ बनता तो काई मदारी, कोई्र दुल्हन बनता है तो कोई आधुनिक मेम साहब। जितने लोग उतने रूप। पुस्तकों का ज्ञान भी फीका पड़ जाता है, जहां होली के ख्यालों में ज्ञान की गंगा बहती है। सदियों से बहती आई है नैतिकता की, परम्परा की ज्ञान गंगा। इसीलिए होली जन-मन का मनभावन त्यौहार है। होली के अवसर पर खेली जाने वाली रम्मत बहुत प्रचलित लोक नाट्य है। रावळा जाति की इस रम्मत के बीच बीच में कई स्वांग जैसे कि बनिये का, दर्जी का, जोगी का कान्हा गूजरी का, अधनारी का, सूरदास का, राजा-रानी का स्वांग रात भर चलता है। रम्मत होली के साथ-साथ मानवता का संदेश देती है और संस्कृति की ध्वजा को ऊंचा रखती है। भाईचारा, साम्प्रदायिक एकता के संदेश का एक उदाहरण देखिए : लोही मांस को रंग एक है, सुणले बात हमारीपाणी पी र किस्यौ घर पूछूं म्हैं नोकर सजगारी।’ यही बात अमरसिंह राठौड़ की रम्मत में सामने आती है: खुदा कहेंगे पाक रहेंगे, तसबी हाथ कुरानअमन चैन से रहें देस में, हिन्दू मुसलमान।’ रात भर खेली जाने वाली रम्मत में अखण्ड मानवता के मूल्य, न्याय पर अटल विश्वास, पाखण्ड व अंधविश्वास से दूरी, उज्जवल चरित्र की बातें, जीव रक्षा का भाव, महिला का तेजोमय रूप, आदर व सत्कार का भाव, सद्गुणों की पूजा, सच की पैरवी, एक-दूसरे के प्रति समर्पण भाव आदि सद्गुणों का महत्व सामने आता है। लूर लोक नाट्य होली पर किया जाता है। महिलाएं लूरां लेती हुई गांव-गांव गली-गली निकालती हैं। इसके बोल हैं: लूरां री उमाई म्हैं तो कडियां कूंची घाली रेअेडी रे धम्मौड़ै म्हारी कूंची गमगी ओकूंची जोव दोवा वा कूंची जोव दोजेठजी रै छाने आई ओ कूंची जोव दो। एक ओर लूर लेती महिलाएं दूसरी ओर गेर गाते हुए रसिक चंग की थाप पर नाचते ग्रामीण-नगरीय जन रिझाने वाले गीत गाते हुए निकलते हैं। बारह महीनों में से फागुन को हटा कर देखें तो यूं लगता है जैसे जीवन में रस, रूप, गंध और ताजगी विलुप्त हो गई है। उस पर होली का त्यौहार लोक गीतों में रचा हुआ भारत का रसरंगा त्यौहार है, जिसमें मानवता की सच्ची रंगत है। यहां चारों ओर फैले झूठ-फरेब, भ्रष्टाचार, रिश्वत, घोटाले व आपाधापी को होली में जलाने की जरूरत है। प्रहलाद को बचाना है तो होली में इन दुर्गुणों को जलाना ही पड़ेगा। होली का त्योहार यह संदेश देता है कि पाप का अंत निश्चित है। होलिका का जलना और प्रहलाद का बचना इसी संदेश को दर्शाता है। फागुन के महीने का इंतजार बारह महीनों में सबसे अधिक रहता है। चारों ओर रंग, गुलाल पिचकारी, गेर, ख्याल, रम्मतों का जोर। चंग पर गीत, घूचम और धमाल, गींदड़ और डांडिया नौटंकी और रम्मतें। कुल मिलाकर फागुन की मस्ती,चहल-पहल, हर्ष-उमंग और ताजगी। गीतों के बहाने सीख देने वाला त्योहार है होली। होली पर गाये-जाने वाले ख्याल जन शिक्षण के आधार है। यदि अपनी परम्पराओं को जीवित रखना है मानवता की ध्वजा फहराना है तो होली के त्योहार की दरकार है। आज के दिन का यही संदेश है। (जैसा साहित्यकार डॉ. सुमन बिस्सा ने पत्रिका के एम आई जाहिर को बताया।)
जोधपुर ( jodhpur news current news ) . होली ( Holi 2020 ) के रंग खुशियां लाते हैं। इंद्रधनुषी छटा से सजी लोक की होली ( Happy Holi 2020 ) का अपना ही मजा है। राजस्थान में होली ( Holi Latest News ) पर रम्मत व लूर लोक नाट्य और ख्याल गायन की परंपरा रही है। होली ( Holi news in hindi ) पर इस बारे में रोचक, मनोरंजक और ज्ञानवृद्धक आलेख में हिन्दी व राजस्थानी भाषा की प्रख्यात साहित्यकार ( litterateur ) डॉ. सुमन बिस्सा बता रही हैं ( NRI news in hindi ) : .. त्योहारों का राजा है होली का मनमोहक त्योहार चारों ओर हर्ष, उमंग, चारों ओर रंग ही रंग। इस त्योहार पर मनुष्य तो क्या, कुदरत का मन भी रंगीन हो जाता है। रंग, रस, सौरभ और रंगीनियों का मेला लग जाता है। किसी बाग में चल कर देखा जाय कि कुदरत क्या करतब दिखा रही है। चारों ओर फूल ही फूल, हवा के साथ बिखरती सौरभ और मुस्कुराते भोले-भाले चेहरे। एक ओर सफेद, नीले और बैंगनी कचकार तो दूसरी और लाल पलाश। एक ओर गेंदे और गुलाब तो दूसरी ओर केतकी चम्पा और अशेक के फूलं। चारों ओर सफेद, गुलाबी, लाल, पीले, हरे, बैंगनी रंगों के इन्द्रधनुष देख कर उदास मन में भी उमंग की हिलोरें उठने लगती हैं। होली में बच्चे, जवान और वृद्ध सभी मस्ती के मूड में दिखाई देते हैं। होली आये और पिचकारियां न छूटे ये कैसे संभव हो सकता है। पिचकारी से तर रंगबिरंगे कपड़े पहने चेहरे पहचान में भी नहीं आते। एक ओर गेरों की मस्ती, रसिकों के हाथों में ढोल, मंजीरे, झांझर और डांडिये। नाचते, झूमते, गाते और रंग बिखेरते रसिये। होली में सबको मस्ती की छूट मिल जाती है। मस्ती और मनवार का त्योहार है होली। भिन्न-भिन्न तरह की मिठाइयों का त्योहार है होली। मन खोल कर मिलने का त्योहार है होली। मौसम बदलते ही फसलें भी झूमने लगती है और झूमने लगते हैं किसानों के मन। नई उमंग,नया जोश, नया हौसला, नई उम्मीद। न शीत लहर, न लू के थपेड़े और न ही मच्छरों का प्रकोप। जलवायु इतनी सुखद कि मन प्रसन्न हो जाये। होली के त्यौहार में चारों ओर धमा चौकड़ी। कहीं नाट्य मंडलियां नाटक खेलती हैं तो कहीं रम्मत के नजारे, कहीं कवि सम्मेलनों की धूम तो कहीं डांडियों की धमचक। गरीब से लेकर अमीर तक सब एक रंग में एक जैसे। कोई भेद नजर नहीं आता। कोई्र सेठ बनता तो काई मदारी, कोई्र दुल्हन बनता है तो कोई आधुनिक मेम साहब। जितने लोग उतने रूप। पुस्तकों का ज्ञान भी फीका पड़ जाता है, जहां होली के ख्यालों में ज्ञान की गंगा बहती है। सदियों से बहती आई है नैतिकता की, परम्परा की ज्ञान गंगा। इसीलिए होली जन-मन का मनभावन त्यौहार है। होली के अवसर पर खेली जाने वाली रम्मत बहुत प्रचलित लोक नाट्य है। रावळा जाति की इस रम्मत के बीच बीच में कई स्वांग जैसे कि बनिये का, दर्जी का, जोगी का कान्हा गूजरी का, अधनारी का, सूरदास का, राजा-रानी का स्वांग रात भर चलता है। रम्मत होली के साथ-साथ मानवता का संदेश देती है और संस्कृति की ध्वजा को ऊंचा रखती है। भाईचारा, साम्प्रदायिक एकता के संदेश का एक उदाहरण देखिए : लोही मांस को रंग एक है, सुणले बात हमारीपाणी पी र किस्यौ घर पूछूं म्हैं नोकर सजगारी।’ यही बात अमरसिंह राठौड़ की रम्मत में सामने आती है: खुदा कहेंगे पाक रहेंगे, तसबी हाथ कुरानअमन चैन से रहें देस में, हिन्दू मुसलमान।’ रात भर खेली जाने वाली रम्मत में अखण्ड मानवता के मूल्य, न्याय पर अटल विश्वास, पाखण्ड व अंधविश्वास से दूरी, उज्जवल चरित्र की बातें, जीव रक्षा का भाव, महिला का तेजोमय रूप, आदर व सत्कार का भाव, सद्गुणों की पूजा, सच की पैरवी, एक-दूसरे के प्रति समर्पण भाव आदि सद्गुणों का महत्व सामने आता है। लूर लोक नाट्य होली पर किया जाता है। महिलाएं लूरां लेती हुई गांव-गांव गली-गली निकालती हैं। इसके बोल हैं: लूरां री उमाई म्हैं तो कडियां कूंची घाली रेअेडी रे धम्मौड़ै म्हारी कूंची गमगी ओकूंची जोव दोवा वा कूंची जोव दोजेठजी रै छाने आई ओ कूंची जोव दो। एक ओर लूर लेती महिलाएं दूसरी ओर गेर गाते हुए रसिक चंग की थाप पर नाचते ग्रामीण-नगरीय जन रिझाने वाले गीत गाते हुए निकलते हैं। बारह महीनों में से फागुन को हटा कर देखें तो यूं लगता है जैसे जीवन में रस, रूप, गंध और ताजगी विलुप्त हो गई है। उस पर होली का त्यौहार लोक गीतों में रचा हुआ भारत का रसरंगा त्यौहार है, जिसमें मानवता की सच्ची रंगत है। यहां चारों ओर फैले झूठ-फरेब, भ्रष्टाचार, रिश्वत, घोटाले व आपाधापी को होली में जलाने की जरूरत है। प्रहलाद को बचाना है तो होली में इन दुर्गुणों को जलाना ही पड़ेगा। होली का त्योहार यह संदेश देता है कि पाप का अंत निश्चित है। होलिका का जलना और प्रहलाद का बचना इसी संदेश को दर्शाता है। फागुन के महीने का इंतजार बारह महीनों में सबसे अधिक रहता है। चारों ओर रंग, गुलाल पिचकारी, गेर, ख्याल, रम्मतों का जोर। चंग पर गीत, घूचम और धमाल, गींदड़ और डांडिया नौटंकी और रम्मतें। कुल मिलाकर फागुन की मस्ती,चहल-पहल, हर्ष-उमंग और ताजगी। गीतों के बहाने सीख देने वाला त्योहार है होली। होली पर गाये-जाने वाले ख्याल जन शिक्षण के आधार है। यदि अपनी परम्पराओं को जीवित रखना है मानवता की ध्वजा फहराना है तो होली के त्योहार की दरकार है। आज के दिन का यही संदेश है। (जैसा साहित्यकार डॉ. सुमन बिस्सा ने पत्रिका के एम आई जाहिर को बताया।)