न्यायाधीश विनित कुमार माथुर की एकल पीठ ने याचिकाकर्ता सुनील की चौथी जमानत अर्जी पर सुनवाई करते हुए कहा कि विशेष रूप से जघन्य अपराधों की त्वरित सुनवाई के लिए संबंधित अदालतों के समक्ष पुलिस अधिकारियों की गवाही सुनिश्चित होनी चाहिए। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता लोकेश माथुर ने कहा कि तीसरी जमानत याचिका को कोर्ट ने खारिज कर दिया था। चौथी अर्जी इस आधार पर दायर की गई है कि इस कोर्ट के बार-बार निर्देशों के बावजूद मुकदमे की सुनवाई आगे नहीं बढ़ रही है। हाईकोर्ट से दो मौकों पर निर्देश डेढ़ साल से बाद भी मुकदमे की कार्यवाही समाप्त नहीं हुई है। कुल 14 में से केवल 7 गवाहों का परीक्षण किया गया है। समय-समय पर गवाही के लिए तलब करने के बावजूद हाजिर नहीं होने वालों में ज्यादातर पुलिस अधिकारी हैं।
सरकार की ओर से तर्क दिया गया कि कोविड-19 प्रकोप के चलते पुलिस अधिकारी गवाही के लिए उपस्थित नहीं हो पाए।एकल पीठ ने कहा कि ट्रायल के दौरान पुलिस अधिकारियों की गैर हाजिरी स्पष्ट रूप से निचली अदालत के आदेशों की अवहेलना और अनादर को दर्शाती है। देश महामारी का सामना कर रहा था, यह दलील विभागीय गवाहों को विशेष रूप से दोषमुक्त नहीं करती। विशेष रूप से तब, जब वे पुलिस अधिकारी हैं। जब अदालतें महामारी के दौरान भी काम कर रही थी तो गैर हाजिरी का यह बहाना उचित नहीं है।