गुलाबपुरा (gulabpura of bhilwara distt.) में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (एडीजे) के सामने पिछले साल 8 अगस्त को एक कांस्टेबल द्वारा जिरह के दौरान अधिवक्ता को थप्पड़ मारने के मामले में सोमवार को राजस्थान हाईकोर्ट (rajasthan highcourt) में सुनवाई पूरी हो गई।
कांस्टेबल के खिलाफ आरोप तय करने के बिंदु पर फैसला बुधवार को आएगा। एडीजे ने आरोपी कांस्टेबल के खिलाफ आपराधिक अवमानना की कार्यवाही शुरू करने के लिए मामला हाईकोर्ट में रेफर किया था।
न्यायाधीश संदीप मेहता तथा न्यायाधीश अभय चतुर्वेदी की खंडपीठ में सोमवार को सुनवाई के दौरान कोर्ट में पेश हुए आरोपी कांस्टेबल की ओर से अधिवक्ता सुनील जोशी ने पैरवी की। इस मामले में पीडि़त अधिवक्ता भीलवाड़ा निवासी एडवोकेट कमल ने भी पक्षकार बनने के लिए प्रार्थना पत्र पेश किया था, जिसमें बताया गया है कि पिछले साल 8 अगस्त को वह एडीजे कोर्ट, गुलाबपुरा में एनडीपीएस एक्ट के तहत दर्ज मामले में एक कांस्टेबल रमेशचंद्र से जिरह कर रहा था।
इस दौरान कांस्टेबल ने अपना आपा खो दिया और उसे थप्पड़ मार दिया। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने प्रकरण की ऑर्डर शीट में उसी तारीख को घटना का उल्लेख करते हुए लिखा कि कांस्टेबल का कृत्य न केवल आपराधिक अवमानना के दायरे में आता है, बल्कि न्यायिक कार्यवाही में भी हस्तक्षेप करने का प्रयास है।
पीडि़त अधिवक्ता के अनुसार, थप्पड़ से उसके कान के अंदरुनी हिस्सों को चोट पहुंची और उसे तीन महीने तक इलाज करवाना पड़ा। आश्चर्यजनक यह है कि इस मामले में पीडि़त पक्ष द्वारा दर्ज करवाई गई एफआइआर पर पुलिस ने केवल आइपीसी की धारा 323 का मामला मानते हुए अंतिम रिपोर्ट पेश कर दी।
पीडि़त अधिवक्ता का कहना है कि कई बार प्रतिवेदन देने के बावजूद पुलिस ने निष्पक्ष जांच नहीं की। कोर्ट रूम में मौजूद एलडीसी, सहायक कर्मचारी, एडीपी आदि कार्मिकों ने पुलिस को दिए अपने बयानों में बताया कि उन्होंने इस घटना को नहीं देखा और यहां तक कि कुछ कर्मचारियों ने कहा कि ऐसी कोई घटना नहीं हुई है।
अधिवक्ता के अनुसार या तो कर्मचारी जांच अधिकारी के प्रभाव में हैं, क्योंकि आरोपी पुलिस कांस्टेबल है या कर्मचारी जानबूझकर झूठ बोल रहे हैं। जबकि न्यायाधीश ने स्वयं घटना का उल्लेख ऑर्डर शीट में किया है। हालांकि, कांस्टेबल ने पुलिस जांच के आधार पर इन तथ्यों को नकारा। खंडपीठ 21 अगस्त को फैसला सुनाएगी, जिस दौरान कांस्टेबल को उपस्थित रहना होगा।