RP Bohra/जोधपुर. मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट जोधपुर जिला के पीठासीन अधिकारी देवकुमार खत्री के समक्ष चल रहे बहुचर्चित काले हिरण शिकार मामले में सलमान खान के अधिवक्ता हस्तीमल सारस्वत ने अंतिम बहस करते हुए तर्क दिया कि 11 अक्टूबर 1998 को मेडिकल बोर्ड के चिकित्सकों ने पोस्टमार्टम के दौरान एक काले हिरण की रीढ़ की हड्डी और खाल का टुकड़ा, दूसरे काले हिरण की पांव की हड्डी का टुकड़ा, मांसपेशी का टुकड़ा व खाल का टुकड़ा आदि के नमूने जांच करवाने के लिए अपने कब्जे में लिए थे जिन्हें जांच के लिए विधि विज्ञान प्रयोगशाला भेजा गया था, जिसकी जांच में हड्डी के टुकडे पर गनशॉट की कोई आलामात नहीं पाई गई।
विधि विज्ञान प्रयोगशाला ने ये नमूने डीएनए जांच के लिए हैदराबाद भेजने का सुझाव दिया,जिन्हें वन विभाग वाले जांच के लिए हैदराबाद ले गए। सारस्वत ने तर्क दिया कि पत्रावली पर ऐसी कोई साक्ष्य मौजूद नहीं है जिससे यह प्रकट होता है कि मेडिकल बोर्ड के सदस्यों अथवा वन विभाग वालों ने इन नमूनों को सीलचेपा किया हो। उन्होंने कहा कि नमूने विधिविज्ञान प्रयोगशाला व डीएनए जांच के लिए हैदराबाद भेजने के सम्बन्ध में अभियोजन पक्ष ने गवाह शिवचंद बोहरा, कैलाश गिरि व भवानीसिंह को अदालत में परीक्षित करवाया, जिनके बयानों में भारी विरोधाभास है। अभियोजन पक्ष यह साबित करने में पूरी तरह असफल रहा है कि नमूने सील हालत में सुरक्षित रूप से भेजे गए। बचाव पक्ष के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि नमूनों के जो जार हैदराबाद भेजे गए, उनमें से तीन जार तो खाली पाए गए और जिस जार में मांसपेशी का टुकड़ा होना बताया गया, उसमें हड्डी का टुकड़ा मिला। सारस्वत ने आश्चर्य प्रकट किया कि मांसपेशी का टुकड़ा आखिर हड्डी में कैसे तब्दील हो गया। उन्होंने तर्क दिया कि ऐसी संदेहास्पद परिस्थितियों से स्पष्ट रोशन होता है कि अनुसंधान अधिकारी ने अनुसंधान के दौरान हर स्तर पर हेराफेरी की है, इसलिए ऐसे फर्जी अनुसंधान के आधार पर जो झूठ का पुलिंदा रूपी परिवाद पेश किया गया है, उस पर विश्वास कर के सलमान खान को दोषी नहीं माना जा सकता। समय अभाव के कारण बहस आज पूूरी नहीं हो पाई। अब इस मामले की 2 जनवरी को फिर से सुनवाई होगी।
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विधि विज्ञान प्रयोगशाला ने ये नमूने डीएनए जांच के लिए हैदराबाद भेजने का सुझाव दिया,जिन्हें वन विभाग वाले जांच के लिए हैदराबाद ले गए। सारस्वत ने तर्क दिया कि पत्रावली पर ऐसी कोई साक्ष्य मौजूद नहीं है जिससे यह प्रकट होता है कि मेडिकल बोर्ड के सदस्यों अथवा वन विभाग वालों ने इन नमूनों को सीलचेपा किया हो। उन्होंने कहा कि नमूने विधिविज्ञान प्रयोगशाला व डीएनए जांच के लिए हैदराबाद भेजने के सम्बन्ध में अभियोजन पक्ष ने गवाह शिवचंद बोहरा, कैलाश गिरि व भवानीसिंह को अदालत में परीक्षित करवाया, जिनके बयानों में भारी विरोधाभास है। अभियोजन पक्ष यह साबित करने में पूरी तरह असफल रहा है कि नमूने सील हालत में सुरक्षित रूप से भेजे गए। बचाव पक्ष के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि नमूनों के जो जार हैदराबाद भेजे गए, उनमें से तीन जार तो खाली पाए गए और जिस जार में मांसपेशी का टुकड़ा होना बताया गया, उसमें हड्डी का टुकड़ा मिला। सारस्वत ने आश्चर्य प्रकट किया कि मांसपेशी का टुकड़ा आखिर हड्डी में कैसे तब्दील हो गया। उन्होंने तर्क दिया कि ऐसी संदेहास्पद परिस्थितियों से स्पष्ट रोशन होता है कि अनुसंधान अधिकारी ने अनुसंधान के दौरान हर स्तर पर हेराफेरी की है, इसलिए ऐसे फर्जी अनुसंधान के आधार पर जो झूठ का पुलिंदा रूपी परिवाद पेश किया गया है, उस पर विश्वास कर के सलमान खान को दोषी नहीं माना जा सकता। समय अभाव के कारण बहस आज पूूरी नहीं हो पाई। अब इस मामले की 2 जनवरी को फिर से सुनवाई होगी।
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इंद्रा विश्नोई की ओर से चार वर्ष पूर्व दायर याचिका खारिज जोधपुर. राजस्थान हाईकोर्ट में न्यायाधीश पीके लोहरा की अदालत में एएनएम भंवरी मामले की सह आरोपी इंद्रा विश्नोई की ओर से याचिकाकर्ता को फरार घोषित करने व उसकी सम्पत्ति सीज करने को चुनौती देने के लिए वर्ष २०१३ में दायर एक आपराधिक याचिका पर सुनवाई हुई। अधिवक्ता फरजंद अली, हनुमान खोखर व संजय विश्नोई ने कहा कि मामला निचली अदालत में पुन: बिंदुवार पेश करने की स्वतंत्रता के साथ याचिका वापस लेना चाहते हैं। इस आवेदन के साथ ही न्यायाधीश लोहरा ने याचिका खारिज कर दी।
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ताकि कोई डॉक्टर तबादले पर स्थगन लेने हाईकोर्ट नहीं पहुंच जाए जोधपुर प्रदेश में सेवारत चिकित्सकों की हडताल का नेतृत्व करने वाले चूरू सीएमएचओ डॉ. अजय चौधरी सहित कुल 12 डॉक्टरो के तबादले के मामले में चिकित्सा विभाग काफी सावचेती बरत रहा है। सूत्रों के अनुसार विभाग अपने ही आदेश को लेकर गुरुवार को राजस्थान हाईकोर्ट में कैवियट दायर करेगा । इस बारे में चिकित्सा विभाग ने हाईकोर्ट में विभाग के राजकीय अधिवक्ता से मंत्रणा भी कर ली है। संभावना है कि सवेरे ही हाईकोर्ट में कैवियट दायर कर दी जाए। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह यही है कि तबादला होने के बाद चिकित्सक राजस्थान हाईकोर्ट से स्थगन आदेश प्राप्त नही कर ले, इसीलिए कैवियट दायर की जा रही है। कैवियट दायर होने से बगैर सुनवाई के स्थगन आदेश नहीं हो पाएंगे। बताया जा रहा है कि सरकार ने हड़ताल में शामिल डॉक्टर्स का सुबह औचक निरीक्षण करवाते हुए शाम को तबादला करने के आदेश जारी कर दिए थे।
———- सड़क परिवहन व राजमार्ग की अधिसूचना पर अंतरिम रोक
राजस्थान हाईकोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीश संगीत लोढ़ा व न्यायधीश विनीतकुमार माथुर की खंडपीठ ने केन्द्रीय मोटरयान अधिनियम १९८९ के नियम ३२ व ८१ के तहत अतिरिक्त शुल्क की लेवी वसूली से सम्बन्धित २९ दिसम्बर २०१६ को जारी अधिसूचना के क्रियान्वयन पर अंतरिम रोक लगाते हुए केंद्र सरकार के सड़क परिवहन व राजमार्ग विभाग और राजस्थान के यातायात आयुक्त को नोटिस जारी कर चार सप्ताह में जवाब तलब किया है। खंडपीठ ने यह आदेश याचिकाकर्ता भारतीय जनता वाहन चालक संघ, बीकानेर की ओर से दायर डीबी सिविल रिट पिटिशन की सुनवाई के लिए स्वीकार करते हुए दिए। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता वीरेंद्र आचार्य व दर्शन जैन ने कहा कि केंद्रीय सड़क परिवहन व राजमार्ग विभाग की ओर से २९ दिसंबर मोटरयान अधिनियम १९८९ के नियम ३२ व ८१ में किए गए संशोधन के बाद २९ दिसम्बर २०१६ को जारी अधिसूचना विधि व जनहित के विरुद्ध है। इससे वाहन चालकों व मालिकों को भारी नुकसान हो रहा है।
राजस्थान हाईकोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीश संगीत लोढ़ा व न्यायधीश विनीतकुमार माथुर की खंडपीठ ने केन्द्रीय मोटरयान अधिनियम १९८९ के नियम ३२ व ८१ के तहत अतिरिक्त शुल्क की लेवी वसूली से सम्बन्धित २९ दिसम्बर २०१६ को जारी अधिसूचना के क्रियान्वयन पर अंतरिम रोक लगाते हुए केंद्र सरकार के सड़क परिवहन व राजमार्ग विभाग और राजस्थान के यातायात आयुक्त को नोटिस जारी कर चार सप्ताह में जवाब तलब किया है। खंडपीठ ने यह आदेश याचिकाकर्ता भारतीय जनता वाहन चालक संघ, बीकानेर की ओर से दायर डीबी सिविल रिट पिटिशन की सुनवाई के लिए स्वीकार करते हुए दिए। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता वीरेंद्र आचार्य व दर्शन जैन ने कहा कि केंद्रीय सड़क परिवहन व राजमार्ग विभाग की ओर से २९ दिसंबर मोटरयान अधिनियम १९८९ के नियम ३२ व ८१ में किए गए संशोधन के बाद २९ दिसम्बर २०१६ को जारी अधिसूचना विधि व जनहित के विरुद्ध है। इससे वाहन चालकों व मालिकों को भारी नुकसान हो रहा है।
————- ट्रिब्युनल के आदेश जारी करने से पहले ही हाईकोर्ट में दायर कर दी याचिका प्रदेश में सेवारत चिकित्सकों की हड़ताल का नेतृत्व करने वाले चूरू सीएमएचओ डॉ. अजय चौधरी सहित कुल 12 डॉक्टरों के तबादले के मामले में राजस्थान हाईकोर्ट में पेश याचिका को जस्टिस अरुण भंसाली ने खारिज करते हुए कहा कि मामला पहले से ट्रिब्युनल में लंबित है। उसके निर्णय जारी करने से पहले याचिका दायर नहीं की जा सकती। उन्होंने कहा कि ऐसे में ट्रिब्युनल के समक्ष ही जल्द आदेश के लिए प्रार्थना पत्र पेश किया जाए। अदालत में याचिकाकर्ता हड़ताली चिकित्सकों की ओर से पैरवी करते हुए अधिवक्ता यशपाल खिलेरी ने बताया कि सरकार ने एक साथ इतने चिकित्सकों का आनन-फानन में तबादला कर दिया, जबकि आदेश में भी कई त्रुटियां थी। सरकार के तबादला आदेश के खिलाफ राज सिविल सर्विस अपीलांट ट्रिब्युनल में याचिका पेश की गई थी, लेकिन 14 दिसम्बर को ट्रिब्युनल ने आदेश सुरक्षित कर दिया था। इसीलिए हाईकोर्ट में याचिका दायर की है।
तबादलों के मामले में केविएट कैसे सरकार की ओर से पेश हुई अधिवक्ता श्वेता बोड़ा को संबोधित करते हुए कोर्ट ने कहा कि आमतौर पर सरकार तबादला आदेश में केवियट पेश नही करती है, लेकिन इस मामले में जल्दबाजी दिखाने की कहा आवश्यकता थी। गौरतलब है कि सरकार ने 28 नवम्बर को डॉ. अजय चौधरी सहित 12 चिकित्सकों को तबादला कर दिया था और 30 नवम्बर को हाईकोर्ट में केवियट भी पेश कर दी। शासन उप सचिव चिकित्सा एवं स्वास्थ्य ग्रुप दो विभाग की ओर से जारी तबादलों पर चिकित्सकों द्वारा स्थगन के लिए याचिका दायर करने की आशंका सता रही थी।