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फिर आमने-सामने हुए मूलसिंह व सुनील चौधरी, 7 घण्टे चली सुनवाई में निर्वाचन अधिकारी की इस बात ने बढ़ाई चिंता

locationजोधपुरPublished: Sep 23, 2018 11:10:33 am

Submitted by:

Harshwardhan bhati

जेएनवीयू के इतिहास में पहली बार छात्रसंघ चुनाव के बाद ग्रीवेंस कमेटी ने की सुनवाई
 

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गजेंद्रसिंह दहिया/जोधपुर. जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय (जेएनवीयू) छात्रसंघ चुनाव के इतिहास में पहली बार ग्रीवेंस रिड्रेसल कमेटी ने चुनाव के बाद सुनवाई की। शनिवार को करीब साढ़े सात घंटे चली सुनवाई में 9 वोट के अंतर से छात्रसंघ अध्यक्ष पद के विजेता सुनील चौधरी और निकटतम प्रतिद्वंदी एबीवीपी के मूलसिंह राठौड़ ने आपत्तियां पेश की। सुनवाई के बाद शनिवार को कोई फैसला नहीं हो पाया, इस पर संभवत: सोमवार को निर्णय किया जाएगा।
मूलसिंह ने दो घण्टे तक करीब दो दर्जन बिंदू बताकर संपूर्ण चुनाव प्रक्रिया पर सवाल खड़े कर पुनर्मतगणना या पुनर्मतदान की मांग की। इसके बाद कमेटी ने चार घण्टे तक मतगणना के वीडियो फुटेज देखे। मूलसिंह ने कई जगह वीडियो स्टॉप कर चुनाव में बरती कथित अनियमितताओं को बताया। जबकि सुनील चौधरी ने मूलसिंह के विरुद्ध पांच साल पहले परीक्षा में नकल व सजा का आरोप लगाते हुए उनका नामांकन खारिज करने की मांग की। इस पर कमेटी ने मूलसिंह को सोमवार को लिखित जवाब देने को कहा है।
जेएनवीयू में छात्रसंघ चुनाव के लिए 10 सितम्बर को मतदान और इसके अगले दिन मतगणना हुई। रात 9 बजे एनएसयूआइ के सुनील चौधरी 39 वोट से जीते। निकटतम प्रतिद्वंदी मूलसिंह की आपत्ति पर पुनर्मतगणना के बाद रात दो बजे सुनील को 9 वोट से विजयी घोषित किया गया।
जनता तो छोडि़ए, मीडिया को भी रोका


विवि के कुलपति प्रो. राधेश्याम शर्मा ने ग्रीवेंस रिड्रेसल कमेटी की ओर से खुली सुनवाई की बात कही थी। विवि के दस्तावेजों में भी इसका उल्लेख किया लेकिन शनिवार दोपहर 12 बजे विवि के केंद्रीय कार्यालय में सुनवाई शुरू हुई तो बाहर भारी पुलिस बल तैनात था। आम जनता को छोडि़ए, एक बार तो कुलपति ने पुलिसकर्मियों को बैठक में उपस्थित मीडियाकर्मियों को भी बाहर करने के निर्देश दिए। मीडियाकर्मियों के तर्क वितर्क के बाद ग्रीवेंस कमेटी अध्यक्ष प्रो. कमलेश पुरोहित ने अनुमति दी। हालांकि जब मूलङ्क्षसह को वीडियो फुटेज दिखाए गए तब मीडिया को फिर बाहर किया गया।
मूलसिंह के दो मुख्य तर्क

मूलसिंह : विवि ने नियमों के विपरीत 564 मत खारिज किए, जिसमें सर्वाधिक मेरे थे। पुनर्मतगणना में मैंने सुनील के 83 वोट पर अंगुली उठाई थी, जिसमें से केवल 26 खारिज किए और शेष 57 वोट सुनील के खाते में डाल दिए गए। दोनों प्रत्याशियों के लिए अलग-अलग नियम क्यों?

निर्वाचन अधिकारी प्रो. आरके यादव : यह सच है कि इस बार चुनाव में खारिज मत पिछले चुनावों की तुलना में अधिक हैं। कमेटी चाहे तो खारिज मतों की पुन: जांच करा सकती है। मूल सिंह : अध्यक्ष पद के लिए 9944 मत पड़े। मतगणना में 9911 वोट ही आए। 33 वोट कम थे जो अन्य पदों की प्रत्याशियों की मतपेटियों में डाले गए थे। उन्हें क्यों नहीं गिना गया?
निर्वाचन अधिकारी प्रो. यादव : मतगणना टीम जिम्मेदार नहीं है।
मुख्य चुनाव अधिकारी प्रो. अवधेश शर्मा : यह सामान्य बात है कि कभी कभार अन्य पदों के प्रत्याशियों की मतपेटी में दूसरे पद के प्रत्याशियों के वोट भी आ जाते हैं। लेकिन ऐसे वोट अमान्य माने जाते हैं और मतगणना में शामिल नहंीं होते।
मूल सिंह : विवि के छात्रसंघ संविधान में यह नियम कहां लिखा है कि कम पड़े वोटों को अन्य फैकल्टी से मंगवाकर नहीं गिना जाएगा। 33 वोट गायब है जबकि जीत का फैसला केवल 9 वोट से हो रहा है?

(प्रो. शर्मा के पास इसका कोई जवाब नहीं था)

छात्राओं की आपत्तियों पर सवाल

केएन कॉलेज में कॉलेज अध्यक्ष पद की प्रत्याशी रेणुका भाटी और निकिता कड़वासरा ने भी मतगणना को लेकर कई बिंदुओं पर एक जैसी आपत्तियां दे रखी थी। छात्राओं की अधिकांश आपत्तियों पर कमेटी अध्यक्ष प्रो. कमलेश पुरोहित का तर्क था कि उन्होंने मतगणना के दौरान लिखित में आपत्ति क्यों नहीं दी। इस पर छात्राओं ने कहा कि, उनको समझने का मौका नहीं मिला, वे नई थी। छात्राओं की कुछेक आपत्तियों पर जरूर निर्वाचन अधिकारियों से जवाब-तलब किया गया।
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