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कैसे संरक्षित हो सकते हैं गोडावण के आश्रय स्थल : हाईकोर्ट

locationजोधपुरPublished: Sep 17, 2019 07:21:58 pm

Submitted by:

rajesh dixit

केंद्र व राज्य सरकार को संभावनाएं पता करने को कहा

कैसे संरक्षित हो सकते हैं गोडावण के आश्रय स्थल : हाईकोर्ट

कैसे संरक्षित हो सकते हैं गोडावण के आश्रय स्थल : हाईकोर्ट

जोधपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार को डेजर्ट नेशनल पार्क (डीएनपी) में राज्य पक्षी गोडावण के आश्रय स्थलों को संरक्षित घोषित करने की संभावनाओं पर जवाब देने को कहा है। कोर्ट ने कहा कि यह भी देखे जाने की जरूरत है कि क्या गोडावण के आश्रय स्थलों के संरक्षण के लिए वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत अलग से नियम बनाए जा सकते हैं।
वरिष्ठ न्यायाधीश संगीत लोढ़ा और न्यायाधीश विनित कुमार माथुर की खंडपीठ ने स्वप्रसंज्ञान के आधार पर दर्ज जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए कहा कि गोडावण के संरक्षण के लिए विस्तृत दिशा-निर्देश जारी करने से पहले यह देखना आवश्यक है कि वर्तमान में डीएनपी के किस भाग में गोडावण के आश्रय स्थलों की सुरक्षा की जा सकती है। न्यायाधीश लोढ़ा ने इस संबंध में संभावनाओं का पता लगाने के लिए सहायक सॉलिसिटर जनरल संजीत पुरोहित और अतिरिक्त महाधिवक्ता संदीप शाह को निर्देश देते हुए सोमवार को अगली सुनवाई तय की है। कोर्ट ने कहा कि आश्रय स्थल के संरक्षण का आशय समस्त पारिस्थितिकी के संरक्षण से है, ताकि उन वनस्पतियों को भी संरक्षित किया जाए, जिन पर गोडावण की निर्भरता है।
सुनवाई के दौरान न्याय मित्र विकास बलिया ने कोर्ट को बताया कि डीएनपी को आज तक नेशनल पार्क के रूप में अधिसूचित नहीं किया गया है, जिसके कारण कई गतिविधियों को विनियमित नहीं किया जा सकता। एएजी शाह ने वस्तुस्थिति बताते हुए कहा कि डीएनपी को 14 अगस्त, 1980 को एक अधिसूचना के माध्यम से एक संरक्षित क्षेत्र के रूप में अधिसूचित किया गया था। शाह ने कहा कि डीएनपी का क्षेत्रफल 3162 वर्ग किमी है, जिसमें 1762 वर्ग किलोमीटर जैसलमेर जिले में और 1400 वर्ग किलोमीटर बाड़मेर जिले में आता है। उन्होंने कहा कि डीएनपी का केवल 50.76 वर्ग किमी क्षेत्रफल ही वन भूमि है। डीएनपी क्षेत्र हालांकि एक संरक्षित क्षेत्र और एक अभयारण्य है, जिसे वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत अधिसूचित किया गया है, लेकिन इसमें 88 गांव स्थित हैं और अभयारण्य का लगभग पूरा क्षेत्र राजस्व भूमि या निजी भूमि है, जिसके चलते गोडावण के संरक्षण में कई व्यावहारिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
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