अंतरराष्ट्रीय पेटेंट हासिल होने के बाद आईआईटी जोधपुर मोबाइल निर्माता कम्पनियों को टेक्नोलॉजी ट्रांसफर कर सकेगा। नई बैटरी अपेक्षाकृत सस्ती होगी। वर्तमान में चीन लिथियम की बैटरियों का बड़ी संख्या में उत्पादन करता है, जो काफी महंगी पड़ती है।भारत-पुर्तगाल द्विपक्षीय अनुसंधान कार्यक्रम के अतंर्गत आईआईटी के प्रोफेसर राकेश शर्मा और उनके शोध छात्र पुराराम ने नई बैटरी विकसित की है। शोध में अमरीका स्थित सेंट्रल कनेक्टिकट स्टेट यूनिवर्सिटी के डॉ. राहुल सिंघल ने भी मदद की।
अब तक इस तकनीक का हो रहा था इस्तेमाल
मोबाइल कम्पनियां लिथियम तत्व की बैटरी का इस्तेमाल करती हैं। लिथियम का परमाणु तीसरा सबसे छोटा और अधिक क्रियाशील होता है। लिथियम बैटरी में एनोड (धनात्मक प्लेट) लिथियम तत्व का और कैथोड (ऋणात्मक प्लेट) ग्रेफाइट का होता है। बैटरी पूरी चार्ज होती है तो पूरा एनोड लिथियम से भरा रहता है। लिथियम सरक कर कैथोड पर चिपकते रहने से बैटरी डिस्चार्ज होती रहती है।
क्यों फटती है बैटरी
देर तक बात करते रहने या वीडियो गैम खेलते रहने से मोबाइल गर्म होकर बैटरी में विस्फोट की घटनाएं होती रही हैं। सबसे बड़ा खतरा वायुयान में रहता है। अधिक ऊंचाई पर हवा का कम दबाव होने से मोबाइल या टेबलेट अधिक गर्म हो जाता है। इससे कैथोड प्लेट गर्म होकर लिथियम को छोड़ देती है। यह लिथियम एनोड-कैथोड पृथक्करण प्लेट से बाहर आकर स्पार्र्किंग करते हैं और बैटरी फट जाती है।
अब नहीं रहेगा खतरा आईआईटी जोधपुर ने ग्रेफाइट के बजाय लेंथेनाइड श्रेणी के पांच तत्वों गेडुलिनियम, डिस्प्रोसियम, इट्रियम, टॢबयम और नोडिमियम से नया कैथोड बनाया है। इन तत्वों का परमाणु आकार बड़ा होता है और वे लिथियम आयन को बांधकर रख लेते हैं। इससे न तो बैटरी गर्म होगी और न ही फटेगी। चार्ज जल्द होगी और डिस्चार्ज होने में काफी समय लेगी। लेंथेनाइड का यह कैथोड सोल-जेल तकनीक से बना है, जो सस्ती है।
डॉ. राकेश शर्मा, प्रोफेसर, आईआईटी, जोधपुर