विश्व का महत्वपूर्ण धर्म है जैन धर्म जैनधर्म विश्व का महत्वपूर्ण धर्म है । यदि भगवान ऋषभदेव , भगवान महावीर आदि महापुरुष इस धरती पर अवतरित होकर मानव समाज में अहिंसा के युग का सूत्रपात किया । आज जनतंत्रीय शासन प्रणाली को सबसे सार्थक शासन व्यवस्था माना जाता है। भारतीय संस्कृति , सभ्यता और इतिहास को समृद्धशाली बनाने में जैन धर्म का उल्लेखनीय योगदान रहा है । वर्णवाद , जातिवाद और सम्प्रदायवाद के नाम पर मनुष्य को मनुष्य से अलग किया जा रहा है । ऐसी परिस्थिति में उपरोक्त सभी समस्याओं से छुटकारा पाने का एकमात्र उपाय यही है कि हम महावीर के सिद्धांतों को जानें और उन्हें अपने जीवन में अपनाएं ।अहिंसा और अपरिग्रह की भावना के साथ तप और त्याग की भावना अनिवार्य रूप से संबंधित है । जब तक राग द्वेष आदि मलिन वृत्तियों पर विजय प्राप्त नहीं की जाए तब तक सब व्यर्थ है । जिस अहिंसा , तप - त्याग से हम राग - द्वेष पर विजय प्राप्त नहीं कर सके वह अहिंसा तप या त्याग सब बेकार एवं आध्यात्मिक दृष्टि से अनुपयोगी है । यही कारण था कि भगवान महावीर ने वीतरागता का आग्रह किया । भगवान महावीर के सिद्धांतों को अपनाकर ही मनुष्य दानव से फिर मानव तथा भक्षक के स्थान पर रक्षक बन सकता है । अहिंसा जैन दर्शन का आधार है । अहिंसा ही जगत की माता है । अतः वर्तमान युग में जैन धर्म की प्रासंगिकता कुछ कम नहीं है । विश्वशांति की स्थापना के लिए यह बहुत ही महत्वपूर्ण है ।
भगवान महावीर जीवन परिचय 1. च्यवन -आषाढ़ सुदी 6 ( प्राणत देवलोक से आए ) 2. लंबाई -सात हाथ 3. वर्ण- पीला 4. माता एवं पिता -महारानी त्रिशला एवं वैशाली नृप सिद्धार्थ
5. चिह्न ( लांछन ) - केसरीसिंह 6. वंश / कुल / गौत्र इक्वाकुवंश / ज्ञातृ - कुल / काश्यम गोत्र 7. जन्म स्थान - बिहार प्रांत स्थित कुण्डलपुर 8. जन्म कल्याणक - चैत्र शुक्ला 13 , विक्रम पूर्व 542/30 मार्च ईपू 599 अर्द्ध रात्रि
9. देहवर्ण / देहमान / चिन्ह- सुवर्ण वर्ण / सात हाथ / केसरीसिंह 10. जन्म नाम राजकुमार वर्द्धमान 11. इन्द्र द्वारा प्रदत्त नाम महावीर के नाम से अलंकृत 12. अन्य नाम सन्मति ज्ञातपुत्र , नाणपुत्र , वीर , अतिवीर , श्रमण , मतिमान
13. भाई - -राजकुमार नंदीवर्धन , बड़ी बहन सुदर्शना 14. अन्य परिजन -चाचा सुपार्श्व , मामाः चेटक , पुत्री प्रियदर्शना , जमाता -जमाली 15. विवाह - नृप समरवीर की राजकुमारी यशोदा के साथ
16. गृहवास / कुमारावस्था : 28 वर्ष / 30 वर्ष 17. राज्यावस्था- राज्य काल नहीं 18. वर्षीदान प्रतिदिन एक करोड़ आठ लाख स्वर्ण मुद्रा / कुल 399 करोड़ एवं 80 लाख स्वर्ण मुद्रा
19. दीक्षा कल्याणक मृगसर वदी 10 ई . पूर्व . 599 विक्रम पूर्व 512 तीस वर्ष की तरुणाई में राज्य एवं समस्त वैभव का परित्याग करके अकिंचन भिक्षु बने । 20. दीक्षा स्थल / दीक्षासमय ज्ञातृ खण्ड उद्यान में अशोक वृक्ष के नीचे मध्याह्न में ।
21. साथ में दीक्षित - कोई नहीं , अकेले 22 . तपाराधना- साढ़े बारह वर्षों में केवल 11 माह और 19 दिन आहार ग्रहण किया 23. दीक्षा तप- बेला , दो उपवास 24. दीक्षा प्रदाता ( गुरु ) - स्वयं ।
25. प्रमुख सिद्धांत सत्य , अहिंसा , अनेकांतवाद । 26. विचरण क्षेत्र -पूर्व एवं उत्तर भारत विदेह जनपद , अंगदेश , काशीराष्ट्र , कुणालवेश , मगधंदेश आदि । 27. दीक्षा पश्चात प्रथम परमान्न खीर ( बहुलद्विज के घर में ) पारणे का द्रव्य
28. साधना काल साढ़े बारह वर्ष 29. साधना काल में कष्ट : देव , दानव , मानव , पशुओं का उपसर्ग। 30. कैवल्योत्पत्ति- वैशाख सुदी 10 ई.पू. विक्रम पूर्व ऋजु बालिका सरिता के किनारे ( कल्याणक ) जृंंभिक नगरी के बाहर छट्ठम तप के अंतर्गत गोदुहासन में स्थित शॉल वृक्ष तले ।
31. प्रथम धर्मोपदेश - मध्यम पायापुरी ( अपापानगरी ) के पवित्र प्रांगण में 32. प्रथम देशना का विषय- यतिधर्म , गृहस्थ धर्म , गणधरवाद 33. धर्मोपदेश की भाषा -अर्द्धमागधी प्राकृत -( जनसाधारण की भाषा )34. द्वितीय देशना -आपापापुरी के महासेन उद्यान में
35. विशेषोपलब्धि- एक ही दिन में मध्यम पावापुरी नगर के प्रांगण में 4411 . मुमुक्षुओं का आर्हत् धर्म से दीक्षित करना 36. कुल चातुर्मास / प्रथम एवं अंतिम चातुर्मास / अस्थिग्राम आश्रम में प्रथम एवं हस्तिपाल राजा की राजधानी पावापुरी में अंतिम
37 प्रथम शिष्य -इन्द्रभूति- ( गौतम स्वामी )38. प्रथम शिष्या- राजकन्या, चंदन बाला 39 शिष्य परिवार -गौतम प्रमुख 14 हजार जिनमें चारों वर्ण के मुमुक्षु शिष्य रूप सम्मिलित थे । 40. शिष्या परिवार -आर्या चंदनबाला आदि 36 हजार जिनमें सभी वर्ग की सन्नारियां एवं बालिकाएं थी ।
41. प्रमुख श्रावक- आनंद , कामदेव , सकडाल पुत्र आदि 42 श्राविका समाज -जयन्ती , सुलसा , रेवती आदि तीन लाख 18 हजार 43 .प्रमुख भक्तराजा - मगध नरेश बिंबसार ( श्रेनिक) वैशाली नरेश चेटक। अवंति नरेश चंड
44. संयम जीवन / आयुष्य -42 वर्ष / 72 वर्ष 45. निर्वाण कल्याणक- ई.पू. 527 विक्रम पूर्व 470 कार्तिक कृष्ण अमावस्या का पावापुरी में हस्तिपाल राजा की दानशाला में दो उपवास की स्थिति में पर्यकासन में उपदेश देते - देते मध्यरात्रि को निर्वाण